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न्यूज क्लिपिंग्स् | कोविड-19: लॉकडाउन से साफ हो रही हवा, क्या हैं इसके संदेश और संकेत

कोविड-19: लॉकडाउन से साफ हो रही हवा, क्या हैं इसके संदेश और संकेत

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published Published on Apr 10, 2020   modified Modified on Apr 10, 2020

न्यूजलॉन्ड्री,

यह एक असाधारण समय है, लेकिन विवेक को हमेशा घबराहट की स्थिति से ऊपर रहना होता है. यह समय उसी विवेक केइस्तेमाल से एक सामाजिक दूरी रखते हुए इस दौरान मिलने वाले समय में कुछ सोचने समझने का भी है. क्या इस वक्त का इस्तेमाल कर हम विध्वंस के समय की कुछ बातों को सामान्य दिनों में लागू करने की सोच सकते हैं?

कोरोनावायरस महामारी की वजह से इस सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अपातकाल जैसे समय और इसकी अनिश्चितता ने हमें वायु प्रदूषण को देखने का एक नया नजरिया दिया है. इससे मुद्दों और चिंताओं के कई स्वरूप उभरकर हमारे सामने आए हैं. एक तरफ तो अर्थव्यवस्था की रफ्तार में भीषण कमी देखी जारही है, दूसरी तरफ इस लॉकडाउन की वजह से वायरस के फैलाव को रोकने के साथ प्रदूषण के मोर्चे पर भी सफलता मिल रही है.

जाहिर है कि सड़क पर कम वाहन, फैक्ट्रियों के बंद होनेऔर निर्माण कार्यों का रुकना इसकी वजह है. सभी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह बदलाव लंबे समय तक प्रभावी रह पाएगा. इधर वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अधिक प्रदूषण वाले इलाकों में इस महामारी का प्रसार खतरनाक तरीके से होगा और स्थिति बदतर होंगी. इसकी वजह है, ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों के फेफड़े पहले ही कई तरह की चुनौती झेलकर खराब हो चुके होते हैं और इस वायरस के खतरे को यह बात कई गुना बढ़ा देती है.

इस समस्या ने इतना तो दिखा दिया कि जब लोग स्वास्थ्य परआ रहे निकटतम खतरे को भांपते हैं तो वो कठिन से कठिन फैसले लेने के लिए एक मजबूत सामाजिक संरचना बना लेते हैं. हालांकि, ऐसा वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के लिए नहीं कर पाते, जिस प्रदूषण की वजह से देश में हर साल 12 लाख लोग असमय मरते हैं. इसका कारण है कि हम वायु प्रदूषण के खतरे को ठीक से समझ नहीं पाए हैं.

उदाहरण के लिए, इस समय की त्रासदी ने हमें सामाजिक और कार्यस्थल के काम-काज के तरीकों में नए सिरे से परिवर्तन करने की गुंजाइश के बारे में सोचने को मजबूर किया. इसने डिजिटल और आभासी के आपसी जुड़ाव की क्षमता को समझते हुए कार्यस्थल की परिकल्पना को बदला है. वाहनों के सफर में कमी आई है और पैदल व साइकल से आसपास की दूरी तय करने के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. आने वाले समय में विनिर्माण और ऊर्जा क्षेत्र फिर से अपनी रफ्तार पकड़ लेगा, लेकिन इस त्रासदी से हमें इसकी एक सीमातय करने में मदद मिलेगी जहां तक वो विकास कार्य कर उत्सर्जन को भी नियंत्रण में रख सकें.

त्रासदी कैसे कर रहा हवा की सफाई

जैसे ही देश के बड़े शहर लॉकडाउन की स्थिति में आए वहां प्रदूषण का स्तर नीचे आया है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के प्रदूषण को लेकर रोजाना विश्लेषण में सामने आया कि लॉकडाउन की वजह से अब तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलुरु की हवा में प्रदूषण का स्तर कुछ कम हुआहै.

मुंबई शहरमें दूसरे शहरों से पहले लॉकडाउन हुआ था. इसकी वजह से रोज का औसत पीएम 2.5 स्तर जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को 61 प्रतिशत कम रहा. इसी तरह इस दिन दिल्ली में यह 26 प्रतिशत, कोलकाता में 60 प्रतिशत और बैंगलुरु में 12 प्रतिशत कम रहा. मुंबई में लॉकडाउन मार्च 17 से 19 और मार्च 22 से 23 के बीच में रहा इसलिए इसकी तुलना काफी पहले से की गई.

अगर नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को देखें तो यह दिल्ली में 42 प्रतिशत, मुंबई में 68 प्रतिशत, कोलकाता में 49 प्रतिशत और बैंगलुरु में 37 प्रतिशत तक कम रहा. ये बदलाव गाड़ियों के सड़कों पर न होने, फैक्ट्रियों में बंदी रहने और निर्माण कार्यों के रुकने की वजह से हुआ है. प्रदूषित हवा महामारी की भयावहता बढ़ाती है इस कहानी का सबसे चिंताजनक हिस्सा है नोवेल कोरोनावायरस का प्रदूषित हवा में रहने वाले लोगों पर पड़ने वाला प्रभाव.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


अनुमिता रायचौधरी, https://www.newslaundry.com/2020/04/09/covid-19-lockdown-corona-pandemic-environment


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