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न्यूज क्लिपिंग्स् | पुश्तैनी रोजगार को बचाने में उपयोगी बन रही सौर ऊर्जा, आगे बढ़ाने के लिए सरकारी मदद जरूरी

पुश्तैनी रोजगार को बचाने में उपयोगी बन रही सौर ऊर्जा, आगे बढ़ाने के लिए सरकारी मदद जरूरी

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published Published on Mar 20, 2023   modified Modified on Mar 20, 2023

 

मोंगाबे हिंदी, 20 मार्च

आधा अक्टूबर करीब-करीब बीत चुका था। 44 साल के कुम्हार रघुराम कुलाल चाक पर मिट्टी का घड़ा बनाने में व्यस्त थे। किसी पारंगत कुम्हार की तरह उनकी उंगलियां तेजी से गीली मिट्टी को नया आकार दे रही थीं। लेकिन एक चीज ऐसी थी जो उनके सामने चल रहे चाक को पुराने चाक से अलग करती थी। उनका चाक सौर ऊर्जा से चल रहा था।

कुलाल का घर कर्नाटक के तटीय जिले कुंडापुर के अलूर गांव में है। उन्होंने तीन किलोवाट का सोलर पैनल लगाया है। इससे उनके काम में तेजी आई है। 

कोल्लुरु नदी के दाहिने तट पर बसा यह गांव पहले इस इलाके में मिट्टी के बर्तनों के लिए जाना जाता था। लेकिन गुजरते वक्त के साथ अधिकांश परिवारों ने आमदनी के बेहतर अवसरों के लिए यह पेशा छोड़ दिया। लेकिन कुलाल इस पारंपरिक पेशे के प्रति प्रतिबद्ध रहे। उन्हें अपने फैसले पर पछतावा नहीं है। चाक को ताकत देने वाले सोलर पैनल, बर्तन बनाने की गति को बढ़ाने में मदद करते हैं। उन्होंने चार लोगों को रोजगार भी दिया है।

तैयार बर्तनों और सजावटी सामानों के बीच बैठे कुलाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “पहले मैं हाथ से चलने वाले चाक पर हर दिन 20 बर्तन बनाता था। इससे हर दिन लगभग 600 रुपये की कमाई होती थी। साल 2016 से, मैंने अपने चाक और मड ब्लेंडर को ऑटोमैटिक तरीके से चलाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू किया। अब मैं सौर ऊर्जा से चलने वाले चाक पर हर दिन 50-60 बर्तन बना सकता हूं। मेरी कमाई दोगुनी होकर 1,200 रुपए प्रति दिन हो गई है
पूरी रपट- मोंगाबे हिंदी


मोंगाबे हिंदी, 20 मार्च https://hindi.mongabay.com/2023/03/16/decentralised-solar-is-transforming-rural-india-needs-an-extra-push/
 

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