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न्यूज क्लिपिंग्स् | अपर्याप्त क्लाइमेट फाइनेंस के बीच, परिभाषा पर जारी है विकासशील देशों का संघर्ष

अपर्याप्त क्लाइमेट फाइनेंस के बीच, परिभाषा पर जारी है विकासशील देशों का संघर्ष

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published Published on Oct 15, 2022   modified Modified on Oct 16, 2022

कार्बनकॉपी, 15 अक्टूबर

साल 2024 तक दुनिया को एक नया जलवायु वित्त लक्ष्य (क्लाइमेट फाइनेंस टार्गेट) निर्धारित करना है — यानि वह राशि जो विकसित देशों द्वारा गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए दी जानी है। भारत की मांग है कि इसे सालाना 1 लाख करोड़ डॉलर तक बढ़ाया जाए।

यह दूर की कौड़ी है, क्योंकि विकसित देश पिछले दस वर्षों में 100 अरब डॉलर सालाना प्रदान करने में ही विफल रहे हैं, जिसका वादा उन्होंने 2010 में किया था। 2015 में इस समय सीमा को 2025 तक बढ़ा दिया गया था, जिसका अर्थ है कि हम अभी भी वर्ष 2022 में उनके 2020 के लक्ष्य के बारे में बात कर रहे हैं।

लेकिन इस लक्ष्य निर्धारण का कोई खास मतलब नहीं है। जब तक विकसित देश जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल यानि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट में वैज्ञानिकों द्वारा दी गई चेतावनी पर ध्यान नहीं देंगे: 28 से अधिक वर्षों से वह जलवायु वित्त की परिभाषा ही नहीं दे पाए हैं।

फरवरी 2022 में रिलीज हुई आईपीसीसी रिपोर्ट ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं, लेकिन इसका यह महत्वपूर्ण हिस्सा — जो विकासशील देशों के लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है — इस शोर-शराबे में कहीं खो गया।

वैज्ञानिकों के पैनल का निष्कर्ष था कि “विभिन्न डेटा प्रदाताओं और कोलेटर्स द्वारा की गई प्रगति के बावजूद, क्लाइमेट फाइनेंस के प्रवाह में परिभाषा, कवरेज और विश्वसनीयता से संबंधित समस्याएं आती रहती हैं।”


पूरी रिपोर्ट- कार्बनकॉपी
 


कार्बनकॉपी, 15 अक्टूबर https://hindi.carboncopy.info/developing-nations-battle-for-clarity-as-climate-finance-remains-inadequate/
 

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