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न्यूज क्लिपिंग्स् | घोर उपेक्षा: भारत की राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना

घोर उपेक्षा: भारत की राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना

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published Published on Jan 13, 2022   modified Modified on Jan 14, 2022

-आइडियाज फॉर इंडिया,

परिवार में कमाने वाले सदस्य की मृत्यु होने की स्थिति में परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस) कम बजट आवंटन, प्रतिबंधित कवरेज और प्रशासनिक बाधाओं से घिरी हुई है। इस लेख में, जैस्मीन नौर हाफिज इस योजना के कार्यान्वयन में आने वाली इन कठिनाइयों और अन्य मुद्दों की जांच करती हैं, और भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे के इस महत्वपूर्ण घटक को सुधारने और इसे मजबूत करने का पक्ष रखती हैं।

भारत ने 1995 में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी)1 की शुरुआत कर देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली हेतु एक नए महत्वपूर्ण अध्याय की नींव रखी। पिछले वर्षों में, कम पेंशन राशि, संकीर्ण कवरेज, और अनिष्ट प्रक्रियाओं संबंधी आलोचनाओं का सामना करने के बाद एनएसएपी में कई महत्वपूर्ण संशोधन और सुधार किये गए (ड्रेज और खेरा 2017)। इसके साथ नई योजनाओं को जोड़ा गया, पेंशन राशियों को संशोधित किया गया और दिशानिर्देशों में सुधार किया गया। आज, एनएसएपी में पांच योजनाएं शामिल हैं: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (आईजीएनओएपीएस), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडब्लूपीएस), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (आईजीएडीपीएस), राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस), और अन्नपूर्णा2

इन पांच योजनाओं में से, एनएफबीएस के सन्दर्भ में नीतिगत चर्चा और शोध साहित्य दोनों में सबसे कम ध्यान दिया गया है। यह योजना लागू किये जाने के समय से ही एनएसएपी का एक भाग थी, लेकिन वर्षों से यह रुक-सी गई है। इस लेख में, मैं इस बात की जांच करती हूं कि पिछले दशक में योजना के प्रारूप, बजट आवंटन, कवरेज और कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं से घिरी हुई एनएफबीएस योजना किस प्रकार से काफी कमजोर हो गई है।

एनएफबीएस के तहत परिवार में कमाने वाले सदस्य की मृत्यु होने की स्थिति में उसके परिवार को 20,000 रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसकी पात्रता शर्तों के अंतर्गत आवश्यक है कि संबंधित परिवार "गरीबी रेखा से नीचे" (बीपीएल) वाले परिवारों की आधिकारिक सूची में हो, और जिस कमाने वाले सदस्य की मृत्यु हुई है उसकी आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होनी चाहिए। परिवार में कमाने वाले की मृत्यु होने का प्रत्येक मामला इस प्रकार की वित्तीय सहायता के लिए पात्र है3

सबसे गरीब परिवारों तक पहुंचना

कई अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं की तरह, बीपीएल लक्ष्यीकरण के चलते एनएफबीएस योजना की इसके प्रारुप की वजह से कई लोगों तक पहुँच नहीं है। एक यह भी कि, बीपीएल सूचियाँ पुरानी हो जाती हैं और बहिष्करण त्रुटियों से व्याप्त होती हैं। बीपीएल परिवारों की पहचान करने संबंधी मानदंड गैर-पारदर्शी हैं और इन्हें सत्यापित करना मुश्किल है। गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की पहचान करने के लिए भूमि का स्वामित्व जैसे प्रॉक्सी संकेतक गरीबी और अभाव की वास्तविक सीमा को पकड़ने में विफल रहते हैं। तत्कालीन योजना आयोग के गरीबी अनुमानों और ग्रामीण विकास मंत्रालय (महामल्लिक और साहू 2011) के तरीकों का उपयोग करके गरीब के रूप में पहचाने जाने वाले बीपीएल परिवारों की संख्या के बीच भी एक बड़ा अंतर रहता है।

इन कमियों को मानते हुए, वर्ष 2014 में संशोधित किये गए एनएसएपी के दिशानिर्देशों (भारत सरकार, 2014) में कहा गया है कि यदि कोई पात्र व्यक्ति बीपीएल सूची में शामिल नहीं है, तो उस व्यक्ति को सूची में शामिल करना सुनिश्चित करना और एनएफबीएस हेतु उसकी पात्रता तय करना स्थानीय सरकारों की जिम्मेदारी है। और यह पात्रता साबित करने का दायित्व स्पष्ट रूप से लाभार्थी के बजाय स्थानीय सरकारी अधिकारियों पर रखा गया है। हालाँकि, इसके लिए उन पदाधिकारियों की ओर से मानसिकता में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी जो सरलतम अनुप्रयोगों के लिए कई दस्तावेजों की मांग करने के आदी हैं।

वैकल्पिक रूप से, पात्र परिवारों की पहचान करने के अधिक समावेशी तरीके यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सामाजिक सुरक्षा लाभ अधिक जरूरतमंद परिवारों तक पहुंचे। ऐसी ही एक विधि बहिष्करण दृष्टिकोण है, जिसका उपयोग झारखंड और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के संदर्भ में किया जाता है, जिसके तहत सभी परिवार डिफ़ॉल्ट रूप से पात्र होते हैं, जब तक कि वे अच्छी तरह से परिभाषित बहिष्करण मानदंडों को पूरा नहीं करते कि वे 'विशेषाधिकार प्राप्त' परिवार हैं। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम)4 के अनुसार एक अन्य दृष्टिकोण स्व-चयन की विधि है।

घटते बजट और कवरेज

वर्षों से, एनएफबीएस का महत्व भारत के सामाजिक सहायता फ्रेमवर्क में लगातार कम हो रहा है। इसकी झलक पिछले दशक में इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में गिरावट में दिखती है। वर्ष 2014 में, जब ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एनएसएपी को "कोर ऑफ़ द कोर" योजना घोषित किया गया था, तब एनएफबीएस के लिए बजट आवंटन 862 करोड़ रुपये का था। 2021-22 तक, यह आवंटन घटकर 623 करोड़ रुपये हो गया (तालिका 1 और चित्र 1)।

तालिका 1. एनएफबीएस के लिए बजट अनुमान, संशोधित अनुमान और वास्तविक व्यय

वित्तीय वर्ष

बजट अनुमान

(करोड़ रुपये)

संशोधित अनुमान

(करोड़ रुपये)

वास्तविक व्यय

(करोड़ रुपये)

2014-15

862

आवंटित नहीं

आवंटित नहीं

2015-16

665

आवंटित नहीं

639

2016-17

787

787

623

2017-18

774

708

530

2018-19

772

675

607

2019-20

673

622

481

2020-21

623

481

आवंटित नहीं

2021-22

623

आवंटित नहीं

आवंटित नहीं

स्रोत: वार्षिक केंद्रीय बजट दस्तावेज (ग्रामीण विकास विभाग के लिए आवंटन)।

नोट: 2014-15 और 2015-16 के बजट दस्तावेजों में एनएसएपी के लिए योजनावार आवंटन के अभाव में, इन वर्षों के लिए एनएफबीएस बजट के आंकड़ों का अनुमान विस्तृत अनुदान मांग से लगाया जाना था।

चित्र 1. एनएफबीएस, 2014-15 से 2021-22 के लिए बजट अनुमान

नोट: सभी आंकड़े करोड़ रुपये में हैं।

जब हम संशोधित अनुमानों और वास्तविक व्यय को देखते हैं तो योजना का वित्तीय ठहराव स्पष्ट दिखाई देता है। 2019-20 में, 673 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के बावजूद, वास्तविक केवल 481 करोड़ रुपये हुआ है। 2020-21 के लिए भी 623 करोड़ रुपये बजट अनुमान था जिसे घटाकर संशोधित अनुमान में 481 करोड़ रुपये किया गया।

एनएफबीएस का कवरेज अन्य एनएसएपी योजनाओं की तुलना में काफी कम है (सारणी 2)। 2008-09 तक कवरेज में लगातार वृद्धि हुई, जब यह 4.2 लाख लाभार्थियों के शिखर पर पहुंच गया, और फिर अधिकांश वर्षों में लगभग 3 लाख लाभार्थियों तक पहुंच गया (चित्र 2)। वर्ष 2013-14 के बाद से, हालांकि, कुछ वर्षों (उदाहरण के लिए, 2015-16 और 2017-18) में तेज गिरावट आई, और 2020-21 के नवीनतम वर्ष में जिसका डेटा उपलब्ध है, कवरेज केवल 2.2 लाख लाभार्थियों का था।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


जस्मीन नौर नाज, https://www.ideasforindia.in/topics/poverty-inequality/fatal-oblivion-indias-national-family-benefit-scheme-hindi.html
 

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