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न्यूज क्लिपिंग्स् | अनहेल्दी सीक्रेट्स - क्यों जरूरी है पीएम केयर्स फंड की जांच

अनहेल्दी सीक्रेट्स - क्यों जरूरी है पीएम केयर्स फंड की जांच

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published Published on Oct 19, 2021   modified Modified on Nov 1, 2021

-कारवां,

आजादी के बाद देश के सभी बड़े शहरों में पाकिस्तान से आने वाले हिंदू और सिख शरणार्थियों की संख्या हर बीतते दिन बढ़ रही थी. जवाहरलाल नेहरू उस समय देश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री थे और उनके आधिकारिक आवास तीन मूर्ति भवन में भी लोगों की भीड़ लगी रहती. नेहरू के निजी सचिव रहे एम. ओ. मथाई अपनी किताब रेमनिसंस ऑफ दि नेहरू ऐज में नेहरू की एक आदत का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि “नेहरू उस दौर में अपनी जेब में 200 रुपए कैश लेकर चलते थे. लेकिन यह पैसा जल्द ही गायब हो जाता. वह पीड़ितों में सारा पैसा बांट देते थे. इसके बाद नेहरू मुझसे और पैसे की मांग करते. यह रोजमर्रा की बात हो गई थी. मैंने इस पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि उनका कैश लेकर चलना मुनासिब नहीं है. नेहरू ने मुझसे कहा, ‘मैं उधार मांगकर काम चला लूंगा.’ और इसके बाद उन्होंने अपने सुरक्षा स्टाफ से पैसे उधार लेकर शरणार्थियों की मदद करनी शुरू कर दी.” मथाई बताते हैं कि उन्होंने सुरक्षा स्टाफ को चेतावनी दी कि कोई भी प्रधानमंत्री को एक बार में दस रुपए से ज्यादा उधार न दे क्योंकि वह मानते थे कि इस तरह से मदद कर पाना किसी भी आदमी के बूते के बाहर था.

बंटवारे के दौरान 35 लाख हिंदू और सिख शरणार्थी पश्चिमी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए. अमृतसर, जयपुर, अजमेर, अलवर, लुधियाना, जम्मू, लखनऊ और दिल्ली जैसे सभी बड़े शहरों में शरणार्थियों की भीड़ लगी थी. 1911 के दिल्ली के दरबार के दौरान दिल्ली के बाहरी इलाके में जो जगह देसी रजवाड़ों के शाही तंबुओं के लिए मुकर्रर थी, उसी किंग्सवे कैम्प में अब शरणार्थियों के तंबू तने हुए थे.

विभाजन के बाद जवाहरलाल नेहरू फरीदाबाद में एक शरणार्थी शिविर का दौरा करते हुए. आपातकालीन स्थितियों के दौरान राहत कार्यों के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की शुरुआत की गई थी. . विकिमीडिया कॉमन्सविभाजन के बाद जवाहरलाल नेहरू फरीदाबाद में एक शरणार्थी शिविर का दौरा करते हुए. आपातकालीन स्थितियों के दौरान राहत कार्यों के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की शुरुआत की गई थी. . विकिमीडिया कॉमन्स
विभाजन के बाद जवाहरलाल नेहरू फरीदाबाद में एक शरणार्थी शिविर का दौरा करते हुए. आपातकालीन स्थितियों के दौरान राहत कार्यों के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की शुरुआत की गई थी. विकिमीडिया कॉमन्स
24 जनवरी 1948 को प्रधानमंत्री कार्यालय से एक प्रेस नोट जारी हुआ जिसका शीर्षक था “प्राइम मिनिस्टर नेशनल रिलीफ फंड, पंडित नेहरू की अपील.” इस प्रेस नोट में लिखा था,

हमारे दुखी देशवासियों को इस समय मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है. यह सिर्फ इंसानियत की दरकार नहीं है, ये मुल्क के मुस्तकबिल पर असर डालने वाला. लाखों की तादाद में बेघर हो चुके लोग, जिनका सबकुछ छिन गया है, हमारे देश की असल दौलत हैं. इन लोगों को फिर से बसने के मौकों और मुल्क को संवारने के काम में भागीदरी देने से उनको वंचित रखकर देश को बर्बाद होने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता.

हम जवान हो रही नस्लों को घर, तालीम, तर्बियत और एक काबिल और प्रोडक्टिव शहरी होने के मौके से मरहूम नहीं रख सकते हैं. हमने बड़े पैमाने पर हादसे और तकलीफें झेली हैं. इससे बाहर निकलने की कोशिश भी इतने ही बड़े पैमान पर की जानी चाहिए.

भारत की सरकर अपनी ताकत और संसाधन दोनों इस तरफ ही लगाए हुए है. लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है. लोगों का सहयोग, खास तौर पर उन लोगों को जिन्होंने इस दुःख को भोगा है, उनका सहयोग बेहद जरुरी है. कुछ मदद आ भी रही है. लेकिन अभी और मदद की दरकार है.

पहले ही कई सारे रिलीफ फंड मौजूद हैं. कई लोगों ने इसमें खुले दिल से दान भी किया है ताकि परेशानहाल लोगों की तकलीफें दूर की जा सके. कई लोगों ने खुद आगे बढ़कर मेरे पास मदद भेजी है. मुझे लगता है कि एक केंद्रीय रिलीफ फंड की बनाने की जरूरत है जिससे किसी भी किस्म की आपदा या आपातकाल में लोगों की मदद के लिए काम लिया जा सके. लेकिन अभी के सूरत-ए-हाल में उस फंड को पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को राहत पहुंचाने और उनको फिर से बसाने के लिए ही उपयोग किया जाए.

इसलिए मैं “द प्राइम मिनिस्टर्स नेशनल रिलीफ फंड” नाम से एक फंड की शुरुआत कर रहा हूं. इस कोष का प्रबंधन एक समिति करेगी जिसके सदस्य होंगे : प्रधानमंत्री, इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, टाटा ट्रस्ट का एक नुमाइंदा और फिक्की का एक नुमाइंदा.

1985 में इस कोष का प्रबंधन करने के लिए बनी समिति ने इस कोष का इस्तेमाल करने के सभी अधिकार प्रधानमंत्री को दे दिए थे. फिलहाल इस फंड को इस्तेमाल करने का अधिकार प्रधानमंत्री के पास है. प्रधानमंत्री कार्यालय का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी इस फंड को प्रबंधन करने में प्रधानमंत्री की मदद करता है. पीएमएनआरएफ की वेबसाइट पर मौजूद बहीखाते के मुताबिक 2018-19 वित्तीय वर्ष में इस फंड में 3800 करोड़ रुपए जमा थे.

28 मार्च 2020 को देश में कोरोना महामारी लॉकडाउन लगे चार दिन हो चुके थे. शाम को 4.36 बजे प्रेस सूचना ब्योरो की तरफ से एक और प्रेस नोट जारी हुआ. इस नोट का शीर्षक था, 'आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ में उदारतापूर्वक दान करने की अपील." इस नोट का मजमून कुछ इस तरह से था :

कोविड-19 की महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और इसके साथ ही विश्व भर में करोड़ों लोगों की स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हो गईं हैं. भारत में भी कोरोना वायरस खतरनाक ढंग से फैलता जा रहा है और हमारे देश के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य एवं आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न  कर रहा है. इस आपातकाल के मद्देनजर सरकार को आवश्यक सहयोग देने के उद्देश्य से उदारतापूर्वक दान करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को स्वेसच्छा से अनगिनत अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं.

प्राकृतिक या किसी और तरह के संकट की स्थिति में प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम करने और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं एवं क्षमताओं को हुए भारी नुकसान में कमी करने, इत्यादि के लिए त्वरित और सामूहिक कदम उठाना जरूरी हो जाता है. अत: अवसंरचना और संस्थागत क्षमता के पुनर्निर्माण और विस्तार के साथ-साथ त्वरित आपातकालीन कदम उठाना और समुदाय की प्रभावकारी सुदृढ़ता के लिए क्षमता निर्माण करना आवश्यतक है. नई प्रौद्योगिकी और अग्रिम अनुसंधान निष्कर्षों का उपयोग भी इस तरह के ठोस कदमों का एक अविभाज्य हिस्सा बन जाता है.

कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चिंताजनक हालात जैसी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य से एक विशेष राष्ट्रीय कोष बनाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और इससे प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ के नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया गया है. प्रधानमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और इसके सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री शामिल हैं.

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यह हमेशा माना है और इसके साथ ही अपने विभिन्न मिशनों में यह बात रेखांकित की है कि किसी भी मुसीबत को कम करने के लिए सार्वजनिक भागीदारी सबसे प्रभावकारी तरीका है और यह इसका एक और अनूठा उदाहरण है. इस कोष में छोटी-छोटी धनराशियां दान के रूप में दी जा सकेंगी. इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग इसमें छोटी-छोटी धनराशियों का योगदान करने में सक्षम होंगे.

19 मई 2020 को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि मई 2020 तक पीएम केयर्स फंड में 10600 करोड़ रुपए आए हैं. यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने पब्लिक डोमेन में मौजूद दान के आंकड़ों को एकसाथ इकट्ठा किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र की  कंपनियों ने पीएम केयर्स में कुल 5565 करोड़ रुपए दिए थे. वहीं पीएसयू के कारपोरेट सोशल रेसपोंसिबिलिटी (कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) यानी सीएसआर के मद से पीएम केयर्स में कुल 3249 करोड़ रुपए आए थे. केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तनख्वाह से 1191.40 करोड़ रुपए पीएम केयर्स में जमा करवाए गए. एमपी फंड से 413 करोड़ रुपए दान में प्राप्त हुए.

पीएम केयर्स फंड का बड़ा हिस्सा (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों) पीएसयू के सीएसआर से आया था. अगस्त 2020 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार ओएनजीसी ने सबसे ज्यादा पैसा पीएम केयर्स में जमा करवाया है. अखबार ने 55 पीएसयू से सूचना के अधिकार के तहत पीएम केयर्स में दिए गए दान का आंकड़ा मांगा था. इसमें अगस्त 2020 तक 38 पीएसयू ने आंकड़े साझा किए थे. इनमें से 10 पीएसयू ऐसे थे जिन्होंने 100 करोड़ या उससे अधिक का चंदा दिया था. ओएनजीसी ने 300 करोड़, एनटीपीसी ने 250 करोड़, इंडियन ऑयल ने 225 करोड़, पावर फाइंनेस्स कॉप ने 200 करोड़, पावर ग्रिड ने 200, एनएमडीसी ने 155 करोड़, आरईसी ने 150 करोड़, बीपीसीएल ने 125 करोड़, एचपीसीएल ने 120 और कोल इंडिया ने 100 करोड़ रुपए का चंदा दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक कई पीएसयू ने अपने सीएसआर बजट से ज्यादा पैसा पीएम केयर्स में दान दिया. पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन का 2020-21 का अनुमानित सीएसआर बजट 150 करोड़ था लेकिन इसने पीएम केयर्स में पूरा 150 करोड़ दान कर दिए. 2019-20 में पीएफसी के सीएसआर बजट से कुल 29 कार्यक्रम चलते थे. इसमें आदिवासी स्वास्थ्य, आंगनवाडी, सरकारी स्कूल का उन्नतरीकरण, ऑपरेशन थियटर का निर्माण, आदिवासी स्कूलों में डिजिटल क्लासरूम जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. लेकिन 2020-21 के सीएसआर बजट का लगभग पूरा हिस्सा पीएम केयर्स फंड में चला गया.

दूसरे कई पीएसयू ने पीएम केयर्स फंड में अपने योगदान को दो हिस्सों में बांट दिया ताकि सीएसआर बजट में उसे फिट किया जा सके. पॉवर ग्रिड कॉर्प ने 200 करोड़ रुपए का योगदान दिया था. इसे बाद में 130 और 70 करोड़ की किस्त में बांट दिया गया. ऑयल इंडिया ने अपने 38 करोड़ के योगदान को 25 और 13 करोड़ की किस्त में बांट दिया. रूयल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्प ने अपने 150 करोड़ के योगदान को 100 और 50 करोड़ की दो किस्तों में तोड़ दिया.

टाइम्स ऑफ इंडिया में 19 मई 2020 को छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने अपनी तनख्वाह से कुल 1091.40 करोड़ रुपए पीएम केयर्स फंड में दान किए थे. इसमें सबसे ज्यादा पैसा 29.06 करोड़ ओएनजीसी के कर्मचारियों ने जमा करवाया था. इसके अलावा भारतीय सेना के जावानों ने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा पीएम केयर्स फंड में जमा करवाया. यह रकम 203.67 करोड़ है. भारतीय वायुसेना ने 29.18 करोड़ रुपए जमा करवाए. नौसेना की तरफ से यह योगदान 12.41 करोड़ रुपए का था. भारतीय थल सेना के एडीजी पीआई ने 15 मई 2020 को एक ट्वीट के जरिए बताया कि भारतीय थल सेना अपनी सैलरी से 157. 71 करोड़ की रकम पीएम केयर्स फंड में जमा करवा रही है. भारतीय रेल के कर्मचारियों की सैलरी से 146.72 करोड़ रुपए का योगदान दिया गया.

यह सब आंकड़े पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारियों से जुटाए गए हैं. लेकिन असल आंकड़ा अभी जानकारी से बहार है. ऐसा क्यों हैं?

2.

18 जून 2020 को सूचना अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई दायर की. इसमें पीएम केयर्स फंड से जुड़े सभी उपलब्ध दस्तावेजों की कॉपी मांगी गई थी. 26 जून 2020 को आरटीआई के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने लिखा, "पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट 2005 के सेक्शन 2(एच) के तहत पब्लिक अथोरिटी नहीं हैं. फिर भी पीएम केयर्स फंड से जुड़ी प्रासंगिक जानकारियां www.pmcares.gov.in पर देखी जा सकती हैं.'' प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले इस जवाब ने पीएम केयर्स को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए.

19 जनवरी 2020 को 100 सेवानिवृत नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत लिखकर पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता की कमी पर अपनी चिंता जाहिर की. खत में लिखा था, “तुरंत यह खत लिखने का कारण 24 दिसंबर 2020 को भारत सरकार द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत विवरण को इस आधार पर प्रकट करने से इनकार करना है कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम, 2005 के 2(एच) धारा के दायरे में एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है. अगर यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, तो सरकार के सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री ने अपने पदनाम और आधिकारिक पदों को कैसे दिया है? वे क्यों अपनी आधिकारिक क्षमता में इसके ट्रस्टी हैं, बतौर नागरिक नहीं?”

2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि ट्रस्ट, सोसाइटी और गैर-सरकारी संगठन चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी अगर उन्हें पर्याप्त सरकारी फंडिग होती है तो उन्हें पब्लिक अथोरिटी के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. जब पीएसयू और केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सैलरी से पैसा पीएम केयर्स फंड में डाला गया, तो इसे पब्लिक अथोरिटी के तौर पर क्यों नहीं देखा जाना चाहिए.

पीएम केयर्स फंड के बनने के अगली ही रोज 28 मार्च 2020 को कारपोरट कार्य मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी किया. मंत्रालय ने साफ तौर पर बताया कि पीएम केयर्स फंड में दिया गया चंदा कंपनी अधिनियम 2013 के सेक्शन 135 के सेड्यूल VII के तहत आने वाले कारपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी या सीएसआर के तौर पर देखा जाएगा. सर्कुलर में लिखा गया है, "आइटम नंबर. (viii) कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII, जो उन गतिविधियों का विश्लेषण करती है जिन्हें कंपनियां अपने सीएसआर दायित्वों के तहत कर सकती हैं, परस्पर इस बात को भी निर्धारित करती है कि सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित कोई भी कोष सीएसआर की श्रेणी में रखा जाता है. किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट की स्थिति में प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई है. तदनुसार, यह स्पष्ट किया जाता है कि केयर्स फंड में किया गया कोई भी दान कंपनी अधिनियम 2013 के तहत सीएसआर व्यय के योग्य होगा. इसे सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन से जारी किया जाता है.

कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII, आइटम नंबर. (viii) में किस किस्म के दान को सीएसआर व्यय में गिना जाएगा उसका ब्यौरा कुछ इस तरह से है, “अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत और कल्याण के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किसी अन्य कोष में योगदान.”

इसमें साफ लिखा था कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अलावा सामाजिक और आर्थिक विकास और एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक/महिलाओं के विकास के लिए स्थापित केंद्र सरकार के किसी भी फंड में योगदान सीएसआर के मद में गिना जाएगा. 28 मार्च 2020 को जिस समय कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने सर्कुलर जारी करके पीएम केयर्स फंड को सीएसआर के दायरे में लाया, तब यह अनुसूची VII, आइटम नंबर. (viii) की किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता था. पीएम केयर्स फंड एक सार्वजनिक ट्रस्ट के तौर पर स्थापित हुआ था. ऐसे में इसमें दिए गए दान को सीएसआर व्यय के तौर पर देखना कितना तार्किक है?

इस विसंगति से बचने के लिए 26 मई 2020 को कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन के जरिए कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII में बदलाव करके पीएम केयर्स फंड को भी  आइटम नंबर. (viii) में जोड़ दिया. यह साफ था कि कारपोरेट कार्य मंत्रालय कानून में मन मुताबिक बदलाव कर रहा था ताकि पीएम केयर्स फंड में सीएसआर के योगदान में कोई कानूनी अड़चन ना आए.

1 मई 2020 को नौजवान वकील सम्यक गंगवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में पीएम केयर्स फंड की जानकारी मंगाते हुए एक आरटीआई डाली. 2 जून 2020 को उन्हें भी अंजलि भारद्वाज की तरह जवाब मिला कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक अथोरिटी नहीं है. इसे चुनौती देते हुए गंगवाल ने दिल्ली उच्च न्यायलय में एक जनहित याचिका दाखिल की. इस केस में उनके वकील देबोप्रियो मौलिक कहते हैं, “प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक अथोरिटी नहीं है. लेकिन आप देख लीजिए कि पीएम केयर्स फंड में कार्यालय का पता भी प्रधानमंत्री कार्यालय का दिया हुआ है. पीएम केयर्स फंड की वेबसाईट को .gov डोमेन हासिल है जोकि सरकारी वेबसाईट के लिए ही होता है. पीएम केयर्स फंड अपनी वेबसाईट पर राष्ट्रिय प्रतीक अशोक स्तम्भ का इस्तेमाल करता है. तो क्या आप कह पाएंगे कि सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है? पीएम केयर्स फंड अच्छी मंशा से बना फंड हो सकता है. लेकिन हर नागरिक को जानने का अधिकार है कि इसमें कहां से पैसा आ रहा है और कहां जा रहा है. अगर मंशा अच्छी ही है तो इसे सूचना के अधिकार के दायरे में लाने में क्या हर्ज है?”

हालांकि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं दिखती. 10 जून 20220 को इस मामले में सुनवाई के दौरान पीएमओ का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने इस पीआईएल की मेंटेनीबिलिटी पर ही सवाल खड़े कर दिए. कोर्ट को दिए जवाब में मेहता ने कहा कि वह जल्द ही इस मामले में अपना जवाब दाखिल करते हुए साफ करेंगे कि क्यों इस किस्म की पीआईएल को तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए.

सार्क एंड एसोसिएट के प्रमुख सुनील कुमार गुप्ता के मोदी सरकार से घनिष्ठ संबंध हैं.. 

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


विनय सुल्तान, https://hindi.caravanmagazine.in/government/why-pm-cares-fund-investigated-hindi
 

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