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न्यूज क्लिपिंग्स् | यहां से देखाेः साइंटिफिक टेम्पर की “सामूहिक हत्या”!

यहां से देखाेः साइंटिफिक टेम्पर की “सामूहिक हत्या”!

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published Published on Mar 26, 2020   modified Modified on Mar 26, 2020

मीडियाविजिल,

“पिछले कुछ साल में गैर-जिम्मेदार नेताओं ने जान-बूझ कर विज्ञान, सरकारी संस्थाओं और मीडिया से जनता का विश्वास डिगाया है. ये ग़ैर-ज़िम्मेदार नेता अधिनायकवाद का रास्ता अपनाने को लालायित हैं, उनकी दलील होगी कि जनता सही काम करेगी इसका यकीन नहीं किया जा सकता.”

इज़रायली दार्शनिक युवाल नोह हरारी ने प्रसिद्ध अखबार फाइनेंशियल टाइम्स में बीते 20 मार्च को लिखे अपने लंबे लेख में कुछ बहुत ही मार्के की बातें कही हैं. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के छह साल बाद इसका परिणाम वैश्विक आपदा कोरोना के समय हमारे देश में भी बहुत साफ़-साफ़ दिखने लगा है.

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने कुछ बच्चों से बात करते हुए राज्यसभा टीवी चैनल के एक प्रोग्राम में कहा कि क्लाइमेट चेंज जैसी कोई बात नहीं होती है, दरअसल जब आपकी उम्र बढ़ जाती है तो आपको अधिक ठंड लगती है, यह प्राकृतिक सत्य है जबकि कुछ लोग इसे क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) का नाम देकर लोगों को डराते हैं.

इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने एक अवसर पर कहा कि जब भगवान गणेश के सिर पर हाथी का सिर फिट कर दिया गया था तो वह दुनिया की सबसे पहली प्लास्टिक सर्जरी थी और इसका मुझे गर्व है कि वह हमारे देश भारत में हुआ था. इसी तरह एक बार उन्होंने हारवर्ड युनिवर्सिटी का मज़ाक उड़ाते हुए उसकी जगह हार्डवर्क कहा था.

उसी तरह तब के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री व वर्तमान में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा था कि स्टीफेंन हॉकिग्स ने भी E=mc2 समीकरण में वेद की श्रेष्ठता को स्वीकार किया है.

यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. सरकारी व महत्वपूर्ण पदों पर बैठे भाजपा के नेताओं के इस तरह के बयान बराबर आते रहते हैं. भाजपा नेता व त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देव ने कहा कि महाभारत के समय भी इंटरनेट था. सबसे दुखद यह है कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के द्वारा इस तरह के अवैज्ञानिक बयान लगातार दिये जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिक समुदाय से किसी तरह का प्रतिरोध सुनाई नहीं पड़ता है.

अभी एक हफ्ता पहले देश के प्रधानमंत्री ने अपने विशेष अंदाज़ में (जो समान्यतया शाम के आठ बजे करते हैं) देश की जनता के नाम एक संदेश दिया. उस संदेश में उन्होंने देशवासियों से अपील की कि 22 मार्च, रविवार को शाम पांच बजे वे “जनता कर्फ्यू” का पालन करें और अपनी बालकनी में या छत पर खड़े होकर पांच मिनट के लिए थाली, प्लेट, घंटी और शंख बजाएं. यह शंख कोरोना बीमारी से लड़ने वाले उन लोगों के प्रति आदर व्यक्त करने का एक जरिया होगा जिसमें वे लोग रात-दिन पीड़ितों की सेवा में लगे हुए हैं. (यद्यपि यह आइडिया भी स्पेन का था जब 14 मार्च को रात के दस बजे देशवासियों ने डॉक्टरों और नर्सों के लिए तालियां बजायी थीं).

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


जितेन्द्र कुमार, https://www.mediavigil.com/op-ed/column/yahan-se-dekho-how-bjp-and-rss-collectively-killed-scientific-temper/


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