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न्यूज क्लिपिंग्स् | पारिवार‍िक हस्‍तक्षेप से कम हो सकता है हृदय रोग का खतरा

पारिवार‍िक हस्‍तक्षेप से कम हो सकता है हृदय रोग का खतरा

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published Published on Oct 25, 2021   modified Modified on Nov 2, 2021

-इंडिया स्पेंड,

जिन परिवारों में कई पीढ़ियों से हृदय संबंधी बीमारियां रही हों, उनमें पूरे परिवार को हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने वाला एक कार्यक्रम, कम उम्र में होने वाली कोरोनरी हार्ट डिजीज (रुकी हुई धमनियों से जुड़ी बीमारी) के खतरे को कम कर सकता है। केरल में 750 परिवारों पर की गई स्टडी से यह बात पता चली है।

अक्टूबर, 2021 में 'द लैंसेट' में प्रकाशित इस स्टडी की मानें, तो अगर किसी व्यक्ति के परिवार में कम उम्र के लोगों (55 साल की उम्र से पहले पता चलना) में दिल की बीमारियों की फैमिली हिस्ट्री रही है, तो उसे आगे चलकर दिल की बीमारी होने का खतरा 1.5 से 7 गुना तक बढ़ जाता है। इस स्टडी के लिए, हेल्थ वर्कर्स ने 368 परिवारों में हर एक से दो महीने पर नियमित जांच की। फिर उन्हें अपनी डाइट में बदलाव लाने, एक्सरसाइज करने और तंबाकू और शराब के सेवन से बचने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर) से भी जोड़ा। इसके बाद इन परिवारों की तुलना उन 382 परिवारों से की गई, जिनकी सामान्य देखभाल की गई थी और बस एक बार काउंसलिंग और सालाना स्क्रीनिंग हुई थी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य देखभाल की बजाय पूरे परिवार को लाइफस्टाइल में बदलाव करने के लिए प्रेरित करना ज्यादा प्रभावी तरीका था। ऐसा इसलिए था कि अक्सर परिवार बायोलॉजिकल और कल्चरल (सांस्कृतिक) संबंधों के ढांचे में काम करते हैं। इसलिए सेहत से जुड़ी चीजें जैसे कि डाइट और एक्सरसाइज में बदलाव करना, घर के बाकी सदस्यों की समझ और सहारे के बिना मुश्किल होता है। साथ ही स्टडी यह भी कहती है कि परिवार और पारिवारिक रिश्ते पुरानी बीमारियों से जूझ रहे अपने सदस्यों की सेहत को बेहतर बनाने में भी मदद करते हैं।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज
स्टडी 2019
 की मानें, तो दुनिया में कार्डियोवैस्कुलर (हृदय से संबंधित बीमारी) बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं। साल 1990 में ऐसे मामलों की संख्या जहां 27.1 करोड़ थी, वो बढ़कर 2019 में 52.3 करोड़ हो गई भारत में ही साल 2019 में, कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से 25 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जो कि दुनिया भर में होने वाली मौतों का 13.5 प्रतिशत है।

दरअसल, भारतीय लोगों को हृदय रोगों का खतरा ज्यादा होता है। भारतीयों में हृदय रोग की दर, पश्चिमी देशों के राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। स्टडी के मुताबिक, ज्यादा आय वाले देशों में रहने वाले लोगों के मुकाबले, भारतीय मूल के लोगों में आमतौर पर दिल की बीमारियों के ये मामले 10-12 साल पहले सामने आने लगते हैं। भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, हृदय से संबंधी बीमारियां परिवारों को वित्तीय संकट की ओर ले जाती हैं।

स्टडी के मुताबिक, इस मामले में परिवार आधारित दृष्टिकोण काफी अहम है, क्योंकि फैमिली हिस्ट्री होने पर हृदय रोग होने का खतरा सिर्फ आनुवंशिक कारणों से नहीं होता। बल्कि, साझा वातावरण के अलावा व्यवहार और विश्वास के तरीकों में समानता भी इसका एक बड़ा कारण है। अगर परिवार हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाते हैं, तो हृदय रोगों के जोखिम में कमी आ सकती है। इससे, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ-साथ अहम जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।

परिवार आधारित मॉडल अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी सफल पाया गया है। फरवरी 2020 में प्रकाशित एक और स्टडी में यह पाया गया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में इसी मॉडल की मदद से हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों में हाई ब्लड प्रेशर को कम किया गया। इस मॉडल के तहत प्रशिक्षित सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने लोगों के घर-घर जाकर, उन्हें हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

हस्तक्षेप

गैर-चिकित्सक स्वास्थ्यकर्मी, जैसे कि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और प्रशिक्षित नर्सों ने साल भर के दौरान हर परिवार में औसतन 13 बार दौरा किया। इन स्वास्थ्यकर्मियों ने लोगों के ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर की जांच की। इसके अलावा, इनकी नियमित हेल्थ डायरी की जांच की, जो कि इन परिवारों को बनाने के लिए कहा गया था। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने इन परिवारों के लोगों को अपने खाने में स्थानीय और मौसमी फलों और सब्जियों को दिन में चार-पांच बार तक बढ़ाने को कहा। साथ ही नमक के सेवन को प्रति व्यक्ति प्रति दिन एक चौथाई चम्मच तक सीमित करने की सलाह दी। इसके अलावा, चीनी के सेवन को एक दिन में दो बड़े चम्मच से कम रखने को कहा। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने लोगों को नियमित रूप से हर दिन 30 से 60 मिनट तक एक्सरसाइज करने, खास कर पैदल चलने की सलाह दी और तंबाकू उत्पादों के साथ-साथ शराब से दूर रहने की भी सलाह दी।

इसके लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को 2.5 दिनों की ट्रेनिंग दी गई थी, ताकि वे परिवारों को परामर्श देने के साथ-साथ ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर मापने वाले उपकरण चलाना सीखने में उनकी मदद कर सकें। उन्हें हर घर के हिसाब से 250 रुपये दिए गए, ताकि किराए और अन्य खर्चों की पूर्ति की जा सके।

परिवारों को पहले साल के अंत में एक बार अस्पताल जाने के लिए कहा गया और फिर इंटर्वेंशन/ प्रोग्राम के अंत में अस्पताल जाने का कहा गया, ताकि उनके स्वास्थ्य पर नजर रखी जा सके। शोधकर्ताओं ने इस दौरान चार मुख्य नतीजों पर ध्यान दिया। पहला- 140/90 mm Hg (मर्करी मिमी) से कम ब्लड प्रेशर; दूसरा- फास्टिंग ग्लूकोज (खाने से पहले का ब्लड शुगर) 110 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम; तीसरा- कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन यानी कोलेस्ट्रॉल के संतुलित स्तर को चेक करना जो कि 100 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए और चौथा- धूम्रपान या तंबाकू के सेवन से परहेज। एक स्वस्थ परिवार को कम से कम इनमें से तीन चीजों को पर खास ध्यान देना चाहिए और इन्हें बरकरार रखने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि, जिन परिवारों में पहले से ही हृदय से संबंधित बीमारी का कोई रोगी है, उनमें ये तीन स्वास्थ्य स्थितियां अलग हो सकती हैं।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


वंदिता अवस्थी, https://indiaspendhindi.com/health/how-families-can-reduce-their-risk-of-heart-disease-782781
 

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