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न्यूज क्लिपिंग्स् | लॉकडाउन में फैलती मर्दवाद की महामारी से कैसे निपटें?

लॉकडाउन में फैलती मर्दवाद की महामारी से कैसे निपटें?

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published Published on Apr 27, 2020   modified Modified on Apr 27, 2020

-जनपथ,

कोरोना वायरस ने भारत सहित पूरी दुनिया को बदल दिया है लेकिन दुर्भाग्य से इससे हमारी सांप्रदायिक, नस्लीय, जातिवादी और महिला विरोधी सोच और व्यवहार पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. आज दुनिया भर के कई मुल्कों से खबरें आ रही हैं कि लॉकडाउन के बाद से महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामलों में जबरदस्त उछाल आया है.

वैसे तो किसी भी व्यक्ति के लिये उसके “घर” को सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है लेकिन जरूरी नहीं है कि महिलाओं के मामले में भी यह हमेशा सही हो. लॉकडाउन से पूर्व भी दुनिया भर में महिलाएं घरेलू और बाहरी हिंसा का शिकार होती रही हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी रिपोर्ट भारत में अपराध 2018 के मुताबिक़ घरेलू हिंसा के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं जिनमें ज्यादातर पति या करीबी रिश्‍तेदार शामिल होते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक़ 2018 के दौरान घरेलू हिंसा के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गये हैं. वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम लागू होने के बाद भी इस स्थिति में कोई ख़ास सुधार देखने को नहीं मिला है.

घरेलू हिंसा की जड़ें हमारे समाज और परिवार में बहुत गहराई तक जमी हैं. परिवार को तो महिलाओं के खिलाफ मानसिकता की पहली नर्सरी कहा जा सकता है. पितृसत्तात्मक सोच और व्यवहार परिवार में ही विकसित होता है और एक तरह से यह हमारे परिवारिक ढांचे के साथ नत्थी हैं. घरेलू हिंसा के साथ दिक्कत यह है कि इसकी जड़ें इतनी गहरी और व्यापक हैं कि इसकी सही स्थिति का अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल हैं. यह एक ऐसा अपराध है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता या छुपा लिया जाता है, औपचारिक रूप से इसके बहुत कम मामले रिपोर्ट किये जाते हैं और कई बार तो इसे दर्ज करने से इनकार भी कर दिया जाता है. जयादातर महिलाएं शादी बचाने के दबाव में इसे चुपचाप सहन कर जाती हैं.

हमारे समाज और परिवारों में भी विवाह और परिवार को बचाने के नाम पर इसे मौन या खुली स्वीकृति मिली हुयी हैं. राज्य और प्रशासन के स्तर पर भी कुछ इसी प्रकार यही मानसिकता देखने को मिलती है. टाटा स्कूल ऑफ सोशल साइंस द्वारा 2014 में जारी क्वेस्ट फॉर जस्टिस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पुलिस और अदालतों दारा भी घरेलू हिंसा को अक्सर एक परिवारिक मामले के रूप में देखा जाता है और इनके द्वारा भी महिलाओं को कानूनी उपायों से आगे बढ़ने से हतोत्साहित करते हुये अक्सर “मामले” को मिल-बैठ कर सुलझा लेने का सुझाव दिया जाता है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


जावेद अनीस, https://junputh.com/open-space/increase-in-domestic-violence-cases-amidst-lockdown/


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