Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 34 फीसदी देशों में नहीं हैं जरूरी कानून

वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 34 फीसदी देशों में नहीं हैं जरूरी कानून

Share this article Share this article
published Published on Sep 4, 2021   modified Modified on Sep 8, 2021

-डाउन टू अर्थ,

दुनिया के करीब एक-तिहाई देशों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी कानून नहीं हैं। वहीं जिन देशों में इस तरह के कानून मौजूद भी हैं, वहां इनमें और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों में काफी अंतर है। यह कानून काफी हद तक डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी गाइडलाइन्स से मेल नहीं खाते हैं। वहीं करीब 31 फीसदी देश ऐसे हैं जिनके पास इन वायु गुणवत्ता मानकों को लागू करने की शक्ति तो है, पर उन्होंने अभी तक इन्हें अपनाया नहीं है। यह जानकारी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा वायु गुणवत्ता कानूनों और नियमों पर जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है, जिसे कल जारी किया गया था। 

इस रिपोर्ट में दुनिया के 194 देशों और यूरोपियन यूनियन में वायु गुणवत्ता सम्बन्धी नियमों और कानूनों की जांच की गई है। इसमें इस बात का आंकलन किया गया है कि देश इन मानकों और कानूनों को लेकर कितने सजग है और देशों में इन्हें कितनी गंभीरता से कानूनी तौर पर लागू किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश अफ्रीकी देशों में इन मानकों का अभाव है।

दुनिया भर में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी विकट है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुनिया की करीब 91 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। वहीं यदि डब्ल्यूएचओ की मानें तो यह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे प्रमुख पर्यावरण सम्बन्धी खतरा है। 

भारत जैसे देशों में यह एक गंभीर समस्या बन चुका है। इस बारे में शिकागो विश्वविद्यालय के इनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि यदि इस पर गंभीरता से ध्यान न दिया गया तो इसकी वजह से हर भारतीय से उसके जीवन के 5.9 वर्ष छीन लेगा। वहीं दिल्ली, लखनऊ जैसे शहरों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर हैं। वहां यह आंकड़ा 9.5 वर्ष से ज्यादा है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार भारत में 1,16,000 से भी अधिक शिशुओं की मौत के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेवार था, जबकि इसके चलते 2019 में करीब 16.7 लाख लोगों की जान गई थी।

वायु प्रदूषण महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहा है। हाल में किए कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते कोविड-19 का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ सकता है। साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेदार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।   

डब्ल्यूएचओ के मानकों से मेल नहीं खाते देशों के कानून


गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ ने वायु गुणवत्ता को लेकर जरूरी दिशानिर्देश बहुत पहले ही जारी कर दिए थे, पर उन्हें अभी भी वैश्विक स्तर पर लागू करने के लिए कोई कानूनी ढांचा नहीं है। रिपोर्ट से पता चला है कि करीब 34 फीसदी देशों में वायु गुणवत्ता को लेकर अभी तक जरूरी कानून नहीं है। जहां कानून है भी वहां इन मानकों की तुलना करना मुश्किल है। केवल 49 फीसदी देशों ने वायु प्रदूषण को एक खतरे के रूप में मान्यता दी है।

वहीं वैश्विक स्तर पर जिन देशों में वायु गुणवत्ता को लेकर जारी मानकों को अपनाया गया है वो भी डब्ल्यूएचओ के मानकों से मेल नहीं खाते हैं वहां देशों ने इन्हें अपने आधार पर तय किया है। उदाहरण के लिए डब्लूएचओ ने हवा में पीएम 2.5 की गुणवत्ता के लिए जो मानक तय किया है वो 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। वहीं भारत सरकार ने पीएम 2.5 के लिए 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया है।

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ओपन एक्यू द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित कुल 30 देशों की सरकारें एयर क्वालिटी का रियल टाइम डाटा इकट्ठा तो करती हैं, लेकिन इसके बावजूद वो पूरी जानकारी पारदर्शिता के साथ उपलब्ध नहीं कराती हैं। यहां तक कि जिन देशों में यह डाटा सबके लिए उपलब्ध है वहां इसके फॉर्मेट में इतनी विभिन्न्नता होती है, कि उसका ठीक से विश्लेषण नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि इन देशों में डेटा होने के बावजूद भी उसका ठीक से उपयोग नहीं हो पता और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए किए जा रहे उपाय सफल नहीं होते। भारत भी उन्हीं देशों में से एक है।

यही नहीं दुनिया भर में मानकों को हासिल करने की जो जिम्मेवारी संस्थाओं को दी गई है वो काफी जर्जर स्थिति में है। केवल 33 फीसदी देशों ने कानूनी रूप से अनिवार्य मानकों को पूरा करने के दायित्वों को लागू किया है। वायु गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए यह जानना जरूरी है कि क्या इन मानकों को हासिल भी किया जा रहा है या सिर्फ बना कर छोड़ दिया गया है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि केवल 37 फीसदी देशों ने क़ानूनी रूप से इसकी जरूरत को समझा है। 

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


ललित मौर्य, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/pollution/air-pollution/in-34-percent-of-countries-ambient-air-quality-is-not-yet-legally-protected-78831


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close