Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

Share this article Share this article
published Published on May 14, 2020   modified Modified on May 14, 2020

-न्यूजलॉन्ड्री,

सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है.

पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता थे जिनमें केवल 8,86,12,171 मतदाताओं ने मतदान किया. इसमें लोकसभा की 364 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई और उसे इसके लिए 8.85 करोड़ मतदाताओं में से 44.99 प्रतिशत मत हासिल हुए यानि 3,98,66,615 वोट. यह कुल मतदान 51 प्रतिशत में 44.99 प्रतिशत हैं. यानी मतदान का भी बहुमत नहीं है.

यदि 1951 में कुल जनसंख्या 36,10,88,090 के आधार पर 1952 में 364 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के समर्थन का आंकड़ा निकाला जाए तो यह मात्र 11 से 12 प्रतिशत होता है. इसी आधार पर 2014 के चुनावी नतीजों का भी हम विश्लेषण कर सकते हैं. भाजपा को कुल मतदान का 31.34% मिला था. यह कुल आबादी के आधार पर 13 से 14 प्रतिशत होता है. 32.5 प्रतिशत आबादी 18 वर्ष से कम उम्र की थी.

ये तो लोकतंत्र में बहुमत के जानने का एक आंकड़ा हैं. लेकिन इससे भी थोड़ा गहराई में जाएं तो यह भी जानने को मिलता है कि बहुमत हासिल करने के दावेदार दल को मिलने वाले मतों का जो प्रतिशत प्रचारित किया जाता है वह उस दल के कुल उम्मीदवारों को प्राप्त मत होते हैं. जो संसद में बैठते हैं और सरकार चलाते हैं उनको प्राप्त मतों के आधार पर आंकड़ा निकाला जाय तो समर्थन का यह प्रतिशत और भी कम हो सकता है. 2019 के चुनाव नतीजों को भी इसी आधार पर विश्लेषित किया जा सकता है. भाजपा और समर्थक पार्टियों को 22,90,76,879 मत मिले हैं जो कि कुल आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है.

दलों की सीमाएं

चूंकि दलों को संसदीय चुनाव में एक निश्चित संख्या तक मत हासिल कर बहुमत का प्रमाण पत्र हासिल कर लेने का भरोसा होता है इसीलिए दल धर्मों, जातियों, वर्गों और पेशेवर समूहों आदि में बंटे मतदातओं में उन समूहों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं या एक से ज्यादा समूहों को अपने करीब लाते हैं जिसके साथ मिलकर वो सत्ता हासिल कर सकें. पार्टियां सबकी नहीं होती हैं. हर पार्टी का अपना सीमित समर्थक समूह है. जो पार्टी सत्ता संभालती है वह संविधान की शपथ लेती है कि वह सरकार के ढांचे का संचालन देश के हर नागरिक के लिए करेगी.

शपथ कोई तंत्र नहीं है कि पार्टी अपने सोचने और समर्थक समूहों के हितों के आश्वासन को भूल जाए. यह संभव नहीं होता है. पार्टियां उन समूहों के लिए सरकारी ढांचे का इस्तेमाल सबसे पहले करने की कोशिश करती हैं जिनका उन्हें चुनाव में समर्थन मिला है. यह किसी भी सरकार के फैसलों में स्पष्ट रूप से दिखता है.

सरकारी ढांचे की सीमा

एक तो दल की सीमा होती है और दूसरे सरकार के ढांचे की भी सीमाएं होती हैं. भारत में दो उदाहरणों से इसे समझा जा सकता है. राजीव गांधी ने कहा कि सरकार विभिन्न योजनाओं के लिए जो राशि मुहैया कराती है वह नीचे तक केवल दस से पन्द्रह प्रतिशत ही पहुंच पाता है. डा. राम मनोहर लोहिया ने भी सरकार के पूरे तंत्र की इस सीमा का उल्लेख किया था. समस्त समाज और सरकार का रिश्ता वैधानिक पुस्तकों में अवश्य है लेकिन व्यवहार में ऐसा संभव नहीं दिखता है.

सरकार के केवल ढांचे से नहीं चलती है. यह कल्पना करें कि यदि केरोना महामारी से निपटने के लिए सरकारी ढांचे पर निर्भरता बना लेते हैं तो क्या होता. सबसे ज्यादा मौत भूख से होती या फिर इतनी बड़ी आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसा होता जो कि लॉक डाउन के बाद चलने फिरने के भी हालात में नहीं होता. देश भर में असंख्य संस्थाओं व संगठनों ने उन लोगों को खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है जो आबादी सड़कों के बीच में फंसी हुई है या फिर अपनी झुग्गी-झोपड़ियों व कमरों में कैद कर दी गई हैं.

यह आबादी रोब ब रोज कमाने और खाने वालों की है. अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी के अध्ययन को याद करें तो असंगठित क्षेत्र की 77 प्रतिशत आबादी रोजाना बीस रुपये से कम पर अपना गुजारा करने वाली हैं. सामान्य स्थितियों में सत्ताधारी दल के समर्थक समूहों और सरकारी ढांचे के तालमेल से समाज को संचालित करने की कोशिश की जाती है. लेकिन आपदा की हालत में हम पाते हैं कि समाज का जो हिस्सा पहले से वंचित है वह सबसे ज्यादा वंचना का शिकार होता है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अनिल चमड़िया, https://www.newslaundry.com/2020/05/12/in-the-time-of-corona-a-national-government-could-be-a-great-option-to-fight-a-collective-war


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close