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न्यूज क्लिपिंग्स् | जलस्रोतों में छिपा है पहाड़ के भू-कटाव का समाधान

जलस्रोतों में छिपा है पहाड़ के भू-कटाव का समाधान

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published Published on Jul 31, 2020   modified Modified on Aug 3, 2020

-वाटर पोर्टल,

पहाड़ हमेशा से संवेदनशील रहे हैं। हर कदम पर संघर्ष और चुनौती यहां के लोगों के जीवन का हिस्सा रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन बढ़ने के साथ-साथ पहाड़ पर चुनौतियों का स्वरूप ही बदलता जा रहा है। बादल फटना, बाढ़, भूस्खलन और भू-कटाव आदि एक तरह से लोगों के जीवन का हिस्सा ही बन गए हैं, जिनसे हर साल उन्हें दो-चार होना पड़ता है। इससे न केवल यहां के लोगों का जीवन अव्यवस्थित होता है, बल्कि खेती की जमीन बर्बाद होने से उनके सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो जाता है। बाढ़ और भू-कटाव आदि घटनाएं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड आदि हिमालयी राज्यों में हर साल बरसात के दौरान देखने को मिलती हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में इनमे इजाफा देखने को मिला है। विशेषकर उत्तराखंड़ में ये काफी तेजी से बढ़ रही हैं, जो कई बार आपदा का रूप भी धारण कर लेती हैं। इन्हीं आपदाओं में से एक केदारनाथ आपदा भी थी। हालांकि, इन घटनाओं को इंसानों द्वारा ‘प्राकृतिक आपदा’ का नाम दे दिया जाता है, किंतु ये सभी परेशानियां मानवीय गतिविधियों से जन्मी हैं, जिनका समाधान ड्रेनेज सिस्टम को सुधार कर और जलस्रोतों को पुनर्जीवित कर किया जा सकता है।

भारत में करीब 5 मिलियन स्प्रिंग्स हैं, जिनमें से 3 मिलियन स्प्रिंग्स इंडियन हिमालय रीजन में हैं, लेकिन अधिकांश स्प्रिंग्स सूख चुके हैं या सूखने की कगार पर हैं। उत्तराखंड़ में लगभग ढाई लाख नौले-धारे / स्प्रिंग्स हैं, जिन पर पर्वतीय गांव पानी के लिए निर्भर हैं। उत्तराखंड़ में 12 हजार से ज्यादा नौले-धारे व स्प्रिंग्स या तो सूख गए हैं या सूखने की कगार पर हैं। अकेले अल्मोड़ा जिले में 83 प्रतिशत स्प्रिंग्स सूख चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला में जल संकट गहराने का कारण भी जलस्रोतों का सूखना ही है, जबकि उत्तराखंड के मसूरी और नैनीताल आदि पर्वतीय शहर भी भीषण जलसंकट की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। जम्मू कश्मीर और शिलांग के भी कई इलाकों में जल संकट बढ़ गया है। 

वैसे तो जलस्रोतों के सूखने के कई कारण हैं, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप के कारण स्रोतों के कैचमेंट क्षेत्र में हुआ अतिक्रमण अहम कारण है, तो वहीं वनों के कटान ने इसे काफी बढ़ा दिया है। जिस कारण सैंकड़ों स्रोत तो धरातल पर अब नजर ही नहीं आते हैं और न ही उनके कोई निशान दिखते हैं। स्रोतों के समाप्त होने से बरसात के पानी को निकासी का पर्याप्त मार्ग नहीं मिल पाता है और पानी इधर-उधर बहने लगता है। इसके अलावा व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम के अभाव के कारण भी ऐसा होता है। हमारे यहां वर्तमान में भी ड्रेनेज की जो व्यवस्था है, वो समस्या को और बढ़ाती है। इससे पानी जहां-तहां बहता है या जमा होने लगता है, जो पहाड़ों पर पानी की निकासी के नए रास्तों का स्वतः ही निर्माण कर लेता है। पहाड़ों पर विशेषकर चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों के अभाव के कारण पानी मिट्टी को काटने लगता है। इससे भू-कटाव और भूस्खलन बढ़ता है। पानी के ठहराव से पहाड़ी कमजोर होने लगती है और फिर बरसात में गिरने लगती है। 

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


हिमांशु भट्ट, https://hindi.indiawaterportal.org/content/jalsroto-mein-chhipa-hai-pahad-ke-bhukatav-ka-samadhan/content-type-page/1319335879


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