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न्यूज क्लिपिंग्स् | गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति

गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति

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published Published on Apr 2, 2021   modified Modified on Apr 2, 2021

-द वायर,

ए-4 आकार की एक नोटबुक नागपुर सेंट्रल जेल में किरण गवली द्वारा गुजारे गए 17 महीनों की गवाही देती है. किरण बगैर नागा किए हर दिन थोड़ा समय निकालकर दिन भर की घटनाओं का ब्यौरा लिखा करती थीं- नई बनाई गई दोस्तियों, वेदना, अकेलेपन और कभी -कभी दिल टूटने के बारे में.

किसी-किसी दिन शब्द कविता की तरह बहकर आया करते थे, दूसरे दिनों में सिर्फ गुस्से से भरी कच्ची-पक्की पंक्तियां. किरण-ए-दास्तां शीर्षक से लिखी गई डायरी की हर पंक्ति और पन्ने पर शब्द उकेरे हुए हैं. हालांकि बहुत ही समझदारी से लिखी गई इस डायरी के कुछ पन्ने गायब हैं- मानो किसी ने गुस्से में उसे फाड़कर अलग कर दिया हो.

किरण बताती हैं, ‘जेल बाबा (जैसा कि कॉन्स्टेबलों को जेल की शब्दावली में आम तौर पर पुकारा जाता है) या वॉर्डन (दोषसिद्ध कैदियों के) हर सुबह उसकी कोठरी में आया करते थे और उससे उसने अपनी निजी डायरी में जो लिखा है, पढ़कर सुनाने के लिए कहते थे. मेरे अवसाद की कहानियां उन्हें सस्ता रोमांच दिया करती थीं. वे इसे जोर-जोर से पढ़कर सुनाते थे और हर बार मेरे और मेरे शरीर का मजाक बनाया करते थे. और जाने से पहले उनके धतकर्मों का वर्णन करनेवाले पन्ने फाड़ दिये जाते थे.’

2,000 पुरुष कैदियों के बीच कैद सिर्फ 5 ट्रांसजेंडर कैदियों में से एक होने के खतरे के बारे में किरण को पता था. किरण झिझक के साथ कहती हैं, ‘विरोध करने का सिर्फ एक मतलब होता- रेप.’ वे आगे कहती हैं, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि उस पर हमला नहीं किया जाता. लेकिन शांत रहने ने शारीरिक नुकसान को जरूर थोड़ा कम कर दिया.’

लेकिन वह जेल की सामान्य नीरस दिनचर्या के वर्णनों के भीतर डरावनी कहानियों का एक हिस्सा पैबस्त करने में कामयाब रही. एक गहरे पैराग्राफ के बीच डाल दी गई एक पंक्ति- जिसमें यह बताया गया था कि कैसे जेल कर्मचारी, दोषसिद्ध कैदी और विचाराधीन (अंडरट्रायल)- हर कोई बिना अंतर के नियमित तौर पर उस पर मानसिक और यौन हमले किया करते थे.

किरण ने कई दोषसिद्ध और अंडरट्रायल कैदियों और कर्मचारियों- सभी जन्म से मिली लैंगिक पहचान रखने वाले (सिसजेंडर) पुरुषों- पर उनके और उनके साथ गिरफ्तार की गई ट्रांसजेंडर महिलाओं के यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया है.

किरण बताती हैं कि जेल में अपने 17 महीने के प्रवास में उन्होंने कम से कम पांच-छह शिकायती चिट्ठियां सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रखे शिकायत बक्से में डाली होंगी, जिसे खोलने और बंद करने का अधिकार सिर्फ दौरा करनेवाले मजिस्ट्रेट के पास होने का प्रावधान है.

इसी तरह की शिकायतें जेल अधीक्षक को भी की गईं. लेकिन न तो जेल अधिकारी और न ही न्यायपालिका उनका बचाव करने के लिए आई.

पिछले साल मार्च में लॉकडाउन लगाए जाने और जेल मुलाकातों को बिना किसी सूचना के अचानक रोक देने से कोर्ट में याचिका देना या वकील को सूचना देना मुश्किल हो गया.

किरण पूछती हैं, ‘जितनी बार भी हम अपनी शिकायत लेकर जाते और महिलाओं वाले अनुभाग में हमें स्थानांतरित करने की मांग करते, जेल प्रमुख हमसे जेल नियमों में ऐसा कोई प्रावधान न होने का हवाला देते. लेकिन आखिर किस नियम के तहत हमें पुरुषों की जेल मे ठूंस दिया गया और हर दिन हमारा यौन शोषण किया जाता था?’

किरण को उनके गुरु उत्तम सपन सेनापति के साथ 4 जून, 2019 को इलाके में एक जघन्य हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने 11 लोगों को- जिनमें से किरण और उत्तम समेत पांच ट्रांस महिलाएं थीं- इस मामले में आरोपित किया था.

हालांकि किरण कहती हैं कि उन्हें झूठे तरीके से फंसाया जा रहा था. सभी आरोपितों को कुछ दिनों के भीतर गिरफ्तार करके उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया गया था.

2020 में अदालतों ने उन्हें जमानत देना शुरू कर दिया, लेकिन मुख्य आरोपी होने के कारण उत्तम की जमानत याचिका को कई बार खारिज किया गया. वे आज तक पुरुष बैरक में बंद है. अन्यों को जमानत चरणों में मिली- कुछ को जिला न्यायालय द्वारा और और कुछ को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा इस शर्त पर कि रिहाई के बाद वे कोर्ट द्वारा बुलाए जाने के अतिरिक्त नागपुर नगरपालिका की सीमा में दाखिल नहीं होंगे.

किरण और उनकी सहयोगी डॉली काम्बले- जो एक ट्रांस महिला हैं और इस मामले में सह-आरोपी है’ से मेरी मुलाकात नागपुर में किरण के घर पर हुई, जब वे कोर्ट में अपनी निर्धारित सुनवाई के लिए आई हुई थीं.

जब दोनों अपनी कहानियां सुना रही थीं, उस दौरान स्थानीय पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के डर के कारण परिवार का एक सदस्य लगातार निगरानी में घर के बाहर खड़ा था. किरण का कट्टर आंबेडकरवादी परिवार उनका सबसे बड़ा सहारा रहा है, लेकिन 29 साल की अनाथ डॉली को किसी तरह का सामाजिक सहयोग उपलब्ध नहीं है.

जमानत की शर्तें उनके लिए मुश्किलें खड़ी करने वाली थीं. ट्रांस महिलाओं के लिए, जो बधाई और मंगती की परंपरागत व्यवस्था पर गुजारा करती हैं, उन्हें उससे अलग किए जाने का अर्थ सिर्फ आजीविका गंवाना नहीं बल्कि उन्हें शारीरिक तौर पर जोखिम मे डालना भी था.

डॉली स्वीकार करती हैं कि हमले और सार्वजनिक अपमान एक सामान्य अनुभव रहे हैं, लेकिन इससे पहले तक उन्हें दोस्तों पर निर्भर रहना पड़ता था या जीवित रहने के लिए सेक्स वर्क करना पड़ता था.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


सुकन्या शांता, http://thewirehindi.com/164174/misgendering-sexual-violence-harassment-what-it-is-to-be-a-transgender-person-in-an-indian-prison/


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