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न्यूज क्लिपिंग्स् | केंद्र के अपारदर्शी नीलामी नियमों के चलते सरकार के ख़र्च पर दाल मिल मालिकों को हुआ जमकर मुनाफ़ा

केंद्र के अपारदर्शी नीलामी नियमों के चलते सरकार के ख़र्च पर दाल मिल मालिकों को हुआ जमकर मुनाफ़ा

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published Published on Dec 15, 2021   modified Modified on Dec 17, 2021

-द वायर,

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नीलामी प्रक्रिया में बदलाव करने के चलते गरीबों के लिए आवंटित कई टन दाल के जरिये मिल मालिकों की झोली भरी गई है.

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा नीलामी दस्तावेजों की जांच से पता चलता है कि सरकारी खरीद एजेंसी नेफेड, जो कि कल्याणकारी योजनाओं के तहत कच्ची दालों को संसाधित करने के लिए मिल मालिकों को चुनती है, ने साल 2018 से लेकर अब तक एक हजार से अधिक बार नीलामी की है, लेकिन इसमें बेस रेट/बेस प्राइस या न्यूनतम बोली सीमा तय नहीं की गई थी, जिसके चलते मिल मालिकों को अपना लाभ छिपाने का मौका मिला है.

सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध दस्तावेजों और सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि इन बोलियों के चलते मिल मालिकों को पिछले चार सालों में 5.4 लाख टन कच्ची दाल को संसाधित (प्रोसेस) करने के लिए कम से कम 4,600 करोड़ रुपये का लाभ मिला है. इसके कारण सरकारी खजाने पर प्रभाव पड़ा और संभवत: दाल की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं रही है.

ये दालें देश भर में कल्याणकारी योजनाओं और रक्षा सेवाओं के लाभार्थियों के लिए थीं.

बोली प्रक्रिया की इन खामियों का पता तब चला जब कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेएवाई )के तहत वितरित की जा रही दाल की गुणवत्ता को लेकर कई राज्यों ने केंद्र सरकार से शिकायत की थी. कुछ राज्यों ने इन दालों को लेने से भी इनकार कर दिया था क्योंकि वे खाने के लिए ठीक नहीं थीं.

सरकार अब इस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रही है. कई सरकारी अधिकारियों ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि आंतरिक रूप से सरकार ने इन संदिग्ध नीलामियों की समीक्षा के लिए कहा है. इस कदम को उन्होंने ‘सुधार’ का नाम दिया है.

सरकार के प्रमुख शोध संस्थान सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीएचईटी) ने भी नीलामी पर सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है.

सीआईपीएचईटी के निदेशक नचिकेत कोतवालीवाले ने कहा, ‘हमने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें सिफारिश की गई है कि नेफेड को दालों की खरीद, भंडारण और प्रसंस्करण कैसे करना चाहिए.’

रिपोर्ट ने सरकार को इस बात की समीक्षा करने के लिए एक अंतर-एजेंसी समिति का गठन करने के लिए मजबूर किया है कि कैसे लाखों टन दालों की खरीद, भंडारण और मिलिंग (कच्ची दाल की सफाई) नेफेड द्वारा की जाती है, एक ऐसा व्यवसाय जिसमें करदाता को हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं.

यह समिति अब तक तीन बार बैठक कर चुकी है, लेकिन अभी तक अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप नहीं दिया है, जबकि नेफेड दालों की खरीद और मिलिंग के एक और साल के लिए तैयार है.

शुरुआत

दाल मिल मालिकों को लाभ पहुंचाने वाली नई नीलामी प्रक्रिया किसानों और गरीबों के नाम पर लाई गई थी. साल 2015 में जब मटर और दालों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण भारत को ‘झटकों’ का सामना करना पड़ा, तो नेफेड को इसकी खरीद की जिम्मेदारी दी गई.

नेफेड ने किसानों को अत्यधिक दलहन उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया और उनसे वादा किया कि वह उनकी उपज को खरीदेगा.

चूंकि जब दाल का स्टॉक नेफेड के पास बढ़ता गया तो उसने साल 2017 में ये प्रस्ताव रखा कि कल्याणकारी योजनाओं के तहत कम कीमत पर ये दालें राज्यों को दी जाएंगी.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


नितिन सेठी, http://thewirehindi.com/196827/modi-govt-opaque-auction-rules-for-pulses-millers-profit-more/


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