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न्यूज क्लिपिंग्स् | एनसीबी पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस समस्या का एक पार्ट एनडीपीएस एक्ट भी है

एनसीबी पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस समस्या का एक पार्ट एनडीपीएस एक्ट भी है

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published Published on Nov 3, 2021   modified Modified on Nov 6, 2021

-न्यूजलॉन्ड्री,

स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा अपने मुंबई मंडलीय निदेशक समीर वानखेड़े के खिलाफ गड़बड़ी के आरोपों की सतर्कता जांच के आदेश के बाद, एजेंसी के आचरण पर सवाल उठ रहे हैं.

लेकिन मशहूर हस्तियों से जुड़े मामलों के कारण एनसीबी के सुर्खियों में आने से बहुत पहले, संसद में इस बारे में चिंताएं उठाई गई थीं कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां स्वापक औषधि और मन प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम को किस प्रकार लागू करेंगी.

29 अगस्त 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में वित्त राज्यमंत्री जनार्दन पुजारी ने राज्यसभा में एनडीपीएस विधेयक पेश किया था.

नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र एकल सम्मेलन, 1961 के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत नशीले पदार्थों के निर्माण, आपूर्ति और खपत को नियंत्रित करने तथा चिकित्सा और वैज्ञानिक कार्यों के अलावा किसी भी प्रयोजन के लिए कैनबिस के पारंपरिक उपयोग को बंद करने के लिए मजबूत कानून बनाने के लिए बाध्य था. ऐसा समझौते पर हस्ताक्षर करने के 25 वर्षों के भीतर किया जाना अनिवार्य था और समय समाप्त हो रहा था.

औपनिवेशिक युग के दौरान भारत में नशीले पदार्थों के विरुद्ध बने कानून विकेंद्रीकृत थे.

अफीम अधिनियम 1857; अफीम अधिनियम 1878; और डेंजरस ड्रग्स अधिनियम, 1930 के तहत ब्रिटिश केंद्र सरकार को अफीम और अन्य मादक पदार्थों को नियंत्रित करने का अधिकार था. विभिन्न रूपों में कैनबिस और उसके उप-उत्पादों पर नियंत्रण राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया था, जो अपने खुद के कानून लागू करते थे.

एनडीपीएस विधेयक में नशीली दवाओं संबंधित अपराधों के लिए प्रस्तावित दंड था न्यूनतम 10 साल का कठोर कारावास, जिसे 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है और न्यूनतम एक लाख रुपए का जुर्माना जो दो लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है.

इसमें मादक द्रव्यों का सेवन करने वालों और उनके आदी हो चुके लोगों के साथ अलग-अलग व्यवहार करने का प्रस्ताव था, जिसमें कोकीन, मॉर्फिन या हेरोइन जैसी 'हार्ड ड्रग्स' का सेवन करने या रखने के लिए एक साल की कैद या जुर्माना या दोनों और अन्य मादक और मन प्रभावी पदार्थों से संबंधित अपराधों के लिए छह महीने की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

विधेयक में जजों को यह अधिकार दिया गया था कि वह कम मात्रा में नशीली दवाओं का सेवन करने या रखने के दोषी पाए गए व्यसनी को नशा मुक्ति की प्रक्रिया से गुजरने के लिए प्रोबेशन पर रिहा कर सकते हैं.

संसद में पुजारी ने सांसदों से कहा, "पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवैध नशीली दवाओं की तस्करी और उनके सेवन में उल्लेखनीय वृद्धि ने मौजूदा कानूनों में कई कमियों को उजागर किया है."

पुजारी ने कहा कि तत्कालीन कानूनों में प्रमुख खामियां थीं मन प्रभावी पदार्थों (उस समय के नए नशीले पदार्थ) पर प्रभावी नियंत्रण की कमी और इन अपराधों के लिए निम्नस्तरीय दंड का प्रावधान.

पश्चिम बंगाल से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद निर्मल चटर्जी ने शिकायत की कि उनकी पार्टी के सांसदों को विधेयक पेश किए जाने की सूचना उस सुबह के अखबारों से ही मिली थी.

“जब अखबार में पढ़ा कि यह विधेयक लाया जा रहा है तो हम हैरान रह गए. उसके बाद जब पेपर आए तो सुबह के 9 बजे थे. तब से मैंने बिल का एक भी पन्ना नहीं पलटा, यह जानने की उम्मीद में कि खण्डों की संख्या 83 है, जिसे यहां उद्धृत किया गया है,” उन्होंने कहा.

माकपा ने पुजारी से आग्रह किया कि वह अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के सांसद आर रामकृष्णन द्वारा पेश किए गए संशोधन का समर्थन करें, जिसमें विधेयक को विस्तृत अध्ययन और बहस के लिए प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव था.

लोकसभा में जबलपुर से कांग्रेस सांसद अजय मुशरान ने कहा कि 'कम मात्रा' में नशीले पदार्थों से संबंधित धारा 27, विधेयक में एक 'गंभीर कमी' है. एनडीपीएस विधेयक ने यह परिभाषित नहीं किया था कि किसी विशेष मादक पदार्थ की कितनी मात्रा को 'कम मात्रा' कहा जा सकता है.

"आप भ्रष्ट अधिकारियों के लिए भानुमती का पिटारा खोल रहे हैं... 'छोटी मात्रा' की परिभाषा को विधेयक से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए,” मुशरान ने चेताया, और कहा कि जब तक सरकार 'छोटी मात्रा' को परिभाषित नहीं करती, कानून के दुरुपयोग की प्रबल संभावना बनी रहेगी.

"आप निवारक दंड का प्रावधान कर रहे हैं, लेकिन 95 प्रतिशत मामलों में केवल 13 या 25 ग्राम नशीले पदार्थ ही पाए गए हैं. आपके लक्ष्य और उद्देश्य उसके अनुरूप नहीं हैं जो 'छोटी मात्रा' की परिभाषा के संदर्भ में कहा गया है, क्योंकि 95 प्रतिशत मामले अधिकारियों की अनुकंपा पर छोड़े जा रहे हैं," उन्होंने कहा.

बिहार के जहानाबाद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद रामाश्रय प्रसाद सिंह ने भी अपनी बात को साबित करने के लिए एक किस्सा पेश किया.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


श्रीनाथ राव, https://hindi.newslaundry.com/2021/11/03/ndps-act-ncb-drugs-corrupt-officials-narcotics
 

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