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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत में दलहन नीति की आवश्यकता

भारत में दलहन नीति की आवश्यकता

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published Published on Aug 5, 2021   modified Modified on Aug 8, 2021

-डाउन टू अर्थ,

हर भारतीय रसोई में दाल का तड़का भारतीय आहार की एक विशिष्ट पहचान है ,जो अनाज के पूरक के साथ एक उच्च स्तरीय प्रोटीन का आदर्श मिश्रण प्रस्तुत करती है। दालों में विभिन्न अमीनो एसिड की उपस्थिति वाले शरीर निर्माण गुणों के कारण इनका सेवन किया जाता है। इनमें औषधीय गुण भी होते हैं।

दलहन के उत्पाद जैसे पत्ते, पॉड कोट और चोकर पशुओं को सूखे चारे के रूप में दिए जाते हैं। कुछ दलहनी फसलें जैसे चना, लोबिया, उरदबीन और मूंग को हरे चारे के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है। मूंग के पौधों का उपयोग हरी खाद के रूप में भी किया जाता है जो मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करता है और मिट्टी में पोषक तत्व जोड़ता है।


भारत और दुनिया में कई दलहनी फसलें उगाई जाती हैं। फसलों में प्रमुख हैं चना, अरहर, मसूर, मटर आदि। भारत में अखिल भारतीय मेडिकल काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक खुराक़ में विभिन्न रंगो के खाद्य पदार्थों का बड़ा महत्व है। 5 वर्ष तक के आयु के बच्चों को तीन रंग का खाना (तिरंगा खाना) और वयस्कों को सात रंग (सतरंगी खाना) जो हमें इन्द्रधनुष की याद दिलाता है, दालों का इसमें अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है।

कोई आश्चर्य नहीं कि भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। दालों की आपूर्ति अधिकतर योजनावधि में, मांग की तुलना में कम रही है, जिससे देश को बड़ी मात्रा में दालों का आयात करना पड़ा है। खाद्यान्न पदार्थों में अमरीका पर निर्भरता और अकाल से जूझती भारतीय जनमानस को हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति ने एक आम भारतीय की थाली में खाद्य पदार्थों की मात्रा तो बढ़ा दी लेकिन गुणात्मक रूप से देखने पर देश की अधिकतर आबादी प्रोटीन इन्फ्लेशन के कारण प्रोटीन की कमी की समस्या से सामना कर रही है।

अगर योजनावधि में विश्लेषण वर्ष 1950-51 से 2018-19 तक कृषि उत्पादन की प्रवृत्ति अनाज और दाल का तुलनात्मक अध्ययन करें तो जहाँ इस दौरान अनाज में गेहूं का इंडेक्स 64 से बढ़कर 991 तक पहुंच गया वहीं दालों का इंडेक्स 84 से बढ़कर महज 240 स्तर तक ही पहुंच सका।

मांग-आपूर्ति का अंतर कीमतों पर दबाव डालता है और शाकाहारी प्रोटीन को सीमांत लोगों की पहुंच से बाहर कर देता है। योजनावधि में दालों के प्रति नीतिगत उपेक्षा कम और अनिश्चित पैदावार का चक्र प्रति हेक्टेयर उत्पादकता और जन -वितरण प्रणाली के दायरे में ना आना जैसे कारणों ने किसानों को दाल उगाने की वरीयता क्रम को दोयम दर्जे पर ही रहने दिया ।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


हर्ष मणि सिंह, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/agriculture/farming/need-for-pulses-policy-in-india-78299
 

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