Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | अब चीन, पाकिस्तान और भारत का भी भला इसी में है कि वो उस फैंटसी को छोड़ दें जिसे मोदी विस्तारवाद कहते हैं

अब चीन, पाकिस्तान और भारत का भी भला इसी में है कि वो उस फैंटसी को छोड़ दें जिसे मोदी विस्तारवाद कहते हैं

Share this article Share this article
published Published on Jul 4, 2020   modified Modified on Jul 4, 2020

-द प्रिंट,

शुक्रवार की सुबह अचानक लद्दाख पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सेना को संबोधित किया और चीनियों का सीधे-सीधे नाम न लेते हुए कहा कि विस्तारवाद का जमाना गया, यह विकास का युग है. वैसे, उन्होंने यह कयास लगाने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी कि उनका निशाना किधर था. बेशक उनके निशाने पर चीन ही था लेकिन इस वाक्य को उन ज्ञानोपदेशों में शामिल किया जा सकता है, जो पाकिस्तान को भी दिया जा सकता है और खुद अपनेआप को भी.

मुझे मालूम है कि इस तरह खोल कर बात करने के खतरे क्या हैं लेकिन इस विचार पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है.
शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन के विस्तारवादी इरादों को सारी दुनिया समझ चुकी है. यह बड़ी शक्तियों के लिए नया सिरदर्द बन गया है और हम जैसे उसके ज़्यादातर जमीनी या समुद्री पड़ोसियों (उसके ग्राहकों/ताबेदारों को छोड़कर) के लिए यह तकलीफदेह बन चुका है.

भारत की तरह चीन भी सभ्यताओं को जन्म देने वाला राष्ट्र है जिसके साथ गौरवशाली अतीत की स्मृतियों का एक सामूहिक एहसास जुड़ा हुआ है. भारत मौर्य या गुप्त काल के स्वर्णयुग वाले ‘अखंड भारत’ की चाहत रख सकता है. चीन क्विंग वंश के युग वाली अपनी सीमाओं को फिर से हासिल करने की आकांक्षा रख सकता है. हम सुविधा के लिए इसे उसका ‘अखंड चीन’ का सपना कह सकते हैं.

दोनों में अंतर यह है कि लोकतांत्रिक देश भारत में जहां सत्ताधारी बदलते रहते हैं, यह ‘अखंडता’ केवल एक राजनीतिक दल के संस्थापकों की विचारधारा का हिस्सा है. चीन में यह हमेशा के लिए सत्ता में बैठी एकमात्र पार्टी का सपना है. यह सब हकीकत से कितना कटा हुआ और खतरनाक है! खासकर इसलिए कि यह दुनिया के पहले डिप्टी सुपर पावर का मामला है जिसकी कमान एक निरंकुश सत्ता के हाथों में है.

लद्दाख तो उसके लिए एक छोटा-सा मसला है, बड़ा मसला तो 83,000 वर्ग किलोमीटर वाला अरुणाचल प्रदेश है. क्या वह यह सोच रहा है कि इनमें से किसी को वह जबरन अपने कब्जे में ले सकता है? 21वीं सदी में इस तरह की बातें सोचने का मतलब यही हो सकता है कि आपको अपने दिमाग का इलाज कराने की जरूरत है. जबरन कब्जा कभी हो नहीं सकेगा.

लेकिन राष्ट्रवाद के आकर्षण से बचना बहुत मुश्किल होता है, खासकर तब जब इसे उस विचारधारा से उकसावा मिल रहा हो जिसे राजनीतिशास्त्री ‘पुनःसंयोजनवाद’ कहते हैं, जिसका मूल आधार यह होता है कि इतिहास के किसी विशेष काल में आपके राष्ट्र के जो भी हिस्से थे उन्हें वापस हासिल किया जाए. यह उन देशों के लिए भी सच है जहां तानाशाही हो या लोकतंत्र हो या दोनों का मेल हो.

प्रधानमंत्री मोदी ने विस्तारवाद से बचने की सलाह क्या दी, चीनी इस तरह चिहुंके कि चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत सच साबित होती दिखी. लेकिन यह सलाह पाकिस्तान के लिए भी उतनी ही माकूल हो सकती है. वह मुल्क सात दशकों के अपने पूरे वजूद में अपने इसी यकीन पर जीता रहा है कि वह जम्मू-कश्मीर को पूरा हासिल कर लेगा. इसकी कोशिश में वह अपने मूल मुल्क के एक बड़े हिस्से को गंवा चुका है. फिर भी क्या वह बाज आया है?

बल्कि वह तो इस सपने को साकार करने में और ज्यादा जी-जान लगाकर भिड़ गया है. इस चक्कर में उसने अपना वह सब गंवा दिया जिसे पूंजी, वित्त, और बौद्धिकता कहा जाता है; वह फौजी हुकूमत वाला, एक ज़िद पर अड़ा, दरिद्र देश बन गया जिसे 30 साल में 13 बार आईएमएफ ने उबारा और आज-न-कल एक बार फिर उसे इसकी जरूरत पड़ने वाली है.

मेरे पुराने दोस्त, इंकलाबी शायर हबीब जावेद ने, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे, इसे बड़ी खूबसूरती से— और सख्ती से—1990 में जब भारत-पाकिस्तान एक बार फिर जंग के लिए आमादा दिख रहे थे तब मई दिवस पर लिखी एक नज़्म में इस तरह जाहिर किया था— ‘नशीली आंखों, सुनहरी ज़ुल्फों के देश को खो कर/ मैं हैरां हूं वो जिक्र वादी-ए-कश्मीर करते हैं’.

इस पर यही कहा जा सकता है कि नामुमकिन एजेंडे की बुनियाद पर खड़े, विचारधारा में जकड़े राष्ट्र-राज्य के लिए ऐसे वामपंथी शायर अति-आदर्शवाद की दुनिया में ही जीते हैं. विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया में लगभग एक ही समय दो देश ऐसे उभरे, जो विचारधारा में जकड़े थे. ये देश थे इज़रायल और पाकिस्तान. एक यहूदियों के सपनों का देश था, तो दूसरा इस उपमहादेश के मुसलमानों के लिए ‘कुदरती घर’ या ‘इस्लाम का किला’ था. इज़रायल तो दुरुस्त हाल में है लेकिन इसकी तुलना पाकिस्तान से कीजिए!

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


शेखर गुप्ता, https://hindi.theprint.in/opinion/now-it-is-good-for-china-pakistan-and-india-to-leave-the-fantasy-which-narendra-modi-calls-expansionism/152167/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close