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न्यूज क्लिपिंग्स् | हिंसा को याद करने का तरीका क्या है

हिंसा को याद करने का तरीका क्या है

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published Published on Feb 28, 2021   modified Modified on Mar 1, 2021

-द वायर,

हिंसा को याद करने का तरीका क्या है? इस सवाल के पहले पूछना मुनासिब होगा कि हम जिस हिंसा की बात कर रहे हैं, वह कोई एक घटना है या एक प्रक्रिया है. एक सिलसिला.

घटना जो किसी एक क्षण, एक समयावधि तक सीमित है. प्रक्रिया जिसका अंत हमें नहीं मालूम. वह घटना जिसे हिंसा कहा जाता है, वह सिर्फ इस प्रक्रिया के भीतर एक बिंदु है.

एक हिंसा वह है जिसमें खून बहता दिखता है, आग दिखती है. गोली, पत्थर या आग से जलाकर मार डाले गए लोग, लाशें, ज़ख़्मी जिस्म, जले हुए मकान, गाड़ियां. बिखरा कांच. राख, धुंए की गंध और खून के धब्बे. बुलेट, आंसू गैस, पेट्रोल बम के खोखे. 2002 और उसके बाद से फूटे हुए गैस सिलेंडर भी. यह सब कुछ सामूहिक हिंसा के बच गए सबूत हुआ करते हैं.

पिछले साल दिल्ली के उत्तरी पूर्वी इलाके में लाल बाग के एक घर में मोटर साइकिल का एक चमचमाता हुआ साइलेंसर भी दिखा जो हमलावर छोड़ गए थे. उससे चोट गहरी लगती लेकिन उसे ढोकर लाने के लिए भी ताकत चाहिए थी.

हर हिंसा की वारदात में हिंसा के साधनों में कुछ नए प्रयोग देखने को मिलते हैं. साइलेंसर के अलावा फरवरी 2020 में उत्तरी पूर्वी दिल्ली में पहली बार एक बड़ी गुलेल का इस्तेमाल देखा, जो बड़े-बड़े पत्थर के टुकड़ों से वार करने के लिए छत पर लगाई गई थी.

हत्या के लिए आधुनिकतम हथियारों के साथ आदिम अस्त्र शस्त्र भी- पत्थर, चाकू, फरसा,तलवार. यह दिलचस्प है कि इस तरह की सामूहिक हिंसा में प्रायः पूर्व आधुनिक हथियार इस्तेमाल किए जाते हैं.

एक हिंसा में अनेक हिंसाएं शामिल रहती हैं. सिर्फ मारना नहीं. मारने के साथ अपमानित करना. धार्मिक पहचान को उजागर करके गाली. स्त्रियों के साथ बलात्कार या उसकी धमकी. धार्मिक चिह्नों, ग्रंथों को अपवित्र करना.

सिर्फ इंसान निशाना न हों बल्कि वे प्रतीक या स्थान जिनका उनके लिए भावनात्मक महत्त्व है. उनकी इबादतगाह, पाक किताब. तब हिंसा का स्वरूप बदल जाता है. उसका इरादा भी साफ होता है. हिंसा का कारण क्या रहा होगा, यह स्पष्ट हो जाता है.

इनके अलावा लोग होते हैं. इंसान! लोग जो हिंसा के उत्तरजीवी हैं. शिकार और गवाह. वे जो मारे गए, उनके अलावा वे जो बचे रह गए. मारे गए लोगों के संबंधी, स्वजन और परिजन.

उनका बचे रह जाना संयोग है लेकिन यह मारे जाने के तथ्य को भी संयोग में बदल देता है. सारे लोग मारे नहीं गए, इससे हिंसा का तथ्य संदिग्ध हो जाता है. हिंसा का इरादा सबको ख़त्म करना न था. उसकी सामूहिकता पर सवाल खड़ा हो जाता है.

प्रत्येक हिंसा में, सामूहिक हिंसा में एक और तरह के लोग होते हैं जो हिंसा के बीच में तो होते हैं लेकिन न तो वे उसके शिकार होते हैं और न उसके गवाह.

वे हिंसा के दर्शक होते हैं. उससे प्रायः अप्रभावित. वे खुद को तटस्थ मानते हैं. वे ऐसा मानते हैं कि वे अप्रभावित पक्ष हैं इसलिए हिंसा के विषय में उनका विचार, या उस हिंसा की उनकी समझ सबसे प्रामाणिक मानी जानी चाहिए.

सामूहिक हिंसा भी एक तरह की नहीं होती. दो समूह लड़ पड़ें, तो वह सामूहिक हिंसा है. एक समूह को निशाना बनाकर की जाने वाली हिंसा भी सामूहिक हिंसा ही है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अपूर्वानंद, http://thewirehindi.com/160677/one-year-of-north-east-delhi-riots/


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