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न्यूज क्लिपिंग्स् | पंचतत्वः तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं!

पंचतत्वः तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं!

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published Published on Jan 15, 2022   modified Modified on Jan 21, 2022

-जनपथ,

पिछला कैलेंडर साल खत्म होने वाला था कि कई लोगों ने नववर्ष की शुभकामनाएं देते वक्त इसको ‘आंग्ल नववर्ष’ करार दिया, नया साल ‘अपना नहीं है’ का जिक्र किया। मैंने जब इस बाबत पोस्ट किया कि भाई हर यूरोपियन चीज ‘आंग्ल’ नहीं होती तो कइयों को ‘मिर्ची’ लगी। मुझसे बहस के लिए उतरे लोगों में एक ‘खैनीखोर’ भाई भी थे, जिनको ‘झालदार’ चीजें बहुत पसंद थीं और घर में उन्होंने पपीते के पौधे बहुत लगा रखे हैं। उन मित्र को पपीते, खैनी (तंबाकू), आलू और मिर्ची से कोई दिक्कत नहीं है, पर इस कैलेंडर से है।

इसलिए मुझे लगा कि क्यों न भारतीय व्यंजनों में शामिल मिर्ची की बात की जाए, जो न सिर्फ हमारे खान-पान में, जायके में शामिल है बल्कि इसने हमारी भाषा और मुहावरों में भी जगह बनाई है।

मध्यकाल में जब यूरोपियनों का देश में आगमन होना शुरू हुआ, तो वे लोग अपने साथ कई पौधे लेकर आए थे- अनानास, आलू, पपीते, तंबाकू के साथ उनमें मिर्ची भी शामिल थी। अनानास तो बादशाह अकबर को बहुत पसंद था। उसके खाने में अमरूद और अनानास जरूर होता था। तंबाकू और पपीता भी बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गया।

ऐसा सभी पौधों के साथ नहीं था। भारतीय व्यंजनों में तीखापन लाने के लिए काली मिर्च पहले से मौजूद थी और काली मिर्च जैसे सम्राट को सिंहासन से हटाने का काम नाजुक बदन मिर्ची उस समय कर नहीं पाई। ऐसे में 18वीं सदी तक काली मिर्च (और लौंग) भारतीय भोजन में तीखापन लाती रही।

काली मिर्च के साथ पिप्पली का इस्तेमाल तीखेपन के लिए भारतीय भोजन में किया जाता था। पिप्पली मूल रूप से बंगाल की फसल थी। फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर ने लिखा है कि ‘मुस्लिमों के पुलाव में मुट्ठी भर-भरकर पिप्पली झोंके जाते थे’। वैसे, यह पिप्पली आयुर्वेद वाले नपुंसकता के इलाज के लिए उपयोग में लाते थे।

1590 ईस्वी में लिखी आईने-अकबरी में करीब 50 व्यंजनों की फेहरिस्त है जिसे अकबर के दरबार में पकाया जाता था और उनमें से सभी में काली मिर्च का ही इस्तेमाल होता था।

उस समय बंगाल (आज के बांग्लादेश समेत) और मालाबार तट पर काली मिर्च की खेती की जाती थी और विश्व व्यापार में इसका महत्व और इसकी कीमत पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। यहां तक कि एक मान्यता है कि रोम पर जब बर्बरों ने कब्जा कर लिया था तो भारतीय जहाजों में करीब 35 टन काली मिर्च मौजूद थी और इस काली मिर्च के बदले बर्बरों ने रोम को आजाद कर दिया था।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मंजीत ठाकुर, https://junputh.com/column/panchatatva-the-indian-red-chilly-and-other-european-imports/
 

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