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न्यूज क्लिपिंग्स् | डिजिटल कवरेज से डरे बीजेपी मंत्रियों द्वारा आलोचना करने वाले पत्रकारों को ट्रैक करने और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकुश का प्रस्ताव

डिजिटल कवरेज से डरे बीजेपी मंत्रियों द्वारा आलोचना करने वाले पत्रकारों को ट्रैक करने और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकुश का प्रस्ताव

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published Published on Mar 4, 2021   modified Modified on Mar 5, 2021

-द कारवां,

डिजिटल न्यूज और सोशल मीडिया को नियंत्रण करने के लिए सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम के पीछे वह रोडमैप है जो कोविड महामारी की चरम अवस्था में सरकार द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में बताया गया था. इस रिपोर्ट को जिस मंत्रियों के समूह या जीओएम ने तैयार किया था उसमें पांच कैबिनेट स्तरीय और चार राज्यमंत्री थे. उस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने चिंता जाहिर की थी कि, “हमारे पास एक ऐसी मजबूत रणनीति होनी चाहिए जिससे बिना तथ्यों के सरकार के खिलाफ लिख कर झूठा नैरेटिव/फेक न्यूज फैलाने वालों को बेअसर किया सके.”

इस वाक्य में शब्दों का चयन और यह अस्पष्ट रहने देना कि फेक नैरेटिव क्या है और सरकार इसकी पहचान कैसे करेगी, ये तमाम बातें गौर करने लायक हैं. हालांकि समिति के मेनडेट पर शब्दों की पर्देदारी की है लेकिन इतना तो साफ है कि सरकार मीडिया में अपनी छवि को लेकर परेशान है. रिपोर्ट में बिना लागलपेट के बताया गया है कि छवि सुधार का काम कैसे किया जाए. रिपोर्ट में इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया गया है कि उन पत्रकारों की पहचान की जाए जो नेगेटिव नैरेटिव (नकारात्मक भाष्य) खड़ा करते हैं और फिर ऐसे लोगों को ढूंढा जाए जो उस नैरेटिव की काट देते हैं ताकि एक प्रभावशाली तस्वीर रच कर जनता को सरकार के पक्ष में किया जा सके.

हाल में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 की यह कह कर आलोचना हो रही है कि यह डिजिटल मीडिया पर सरकार के नियंत्रण को बढ़ाता है. ये नियम स्पष्ट रूप से उपरोक्त रणनीति के तहत आते हैं. मुख्यधारा के मीडिया पर सरकार की पकड़ के बावजूद सरकार मीडिया में अपनी छवि को लेकर संतुष्ट नहीं है.

कारवां को हासिल रिपोर्ट के अंशों से पता चलता है कि यह साल 2020 के मध्य में मंत्रियों के समूह (जीओएम) की छह बैठकों और मीडिया क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्तियों, उद्योग और व्यवसायिक चेंबरों के सदस्यों, अन्य विशिष्ट व्यक्तित्वों के साथ परामर्श पर आधारित है. इस रिपोर्ट की विस्तृत जानकारी सबसे पहले 8 दिसंबर 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुई थी. नकवी के अलावा मंत्रियों के समूह में संचार, इलेक्‍ट्रानिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद, कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी, अनुराग ठाकुर, बाबुल सुप्रियो और किरेन रिजिजू भी थे. इस रिपोर्ट में सरकार के इमेज क्राइसेस या छवि संकट को संबोधित करने के लिए कई सिफारिशें की गई हैं.

रिपोर्ट में ईरानी द्वारा प्रस्तावित एक सिफारिश को लागू करने की जिम्मेदारी, जिसमें 50 नकारात्मक और सकारात्मक इनफ्लुएंसर (असर डालने वाले व्यक्ति) की पहचान करने की बात है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर को दी गई है कि वह निरंतर 50 नकारात्मक इनफ्लुएंसर को ट्रैक करें. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आता है. रिपोर्ट के एक भाग, जिसका शीर्षक है “एक्शन पॉइंट्स”, में कहा गया है कुछ निगेटिव इनफ्लुएंसर झूठा नैरेटिव फैलाते हैं और सरकार को बदनाम करते हैं और इन्हें निरंतर ट्रैक करने की जरूरत है ताकि सही और यथासमय जवाब दिया जा सके. इसके साथ ही एक्शन पॉइंट्स में बताया गया है कि 50 पॉजिटिव इनफ्लुएंसर के साथ लगातार संपर्क रखा जाए और साथ सरकार के समर्थक और न्यूट्रल पत्रकारों के साथ संपर्क में रहा जाए. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे पत्रकार न सिर्फ सकारात्मक खबरें देंगे बल्कि ये झूठे नैरेटिव का भी जवाब देंगे.

छवि को लेकर सरकार की घबराहट, रिपोर्ट में दिए गए मंत्रियों और प्रमुख मीडिया पर्सनैलिटियों के विचारों में भी झलकती है. भूतपूर्व मीडिया कर्मी और अब बीजेपी के राज्य सभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता का जिक्र रिपोर्ट में यह सुझाते हुए किया गया है कि “2014 के बाद एक बदलाव आया है. पक्के समर्थक हाशिए पर चले गए हैं. इसके बावजूद श्री मोदी की जीत हुई. उन्होंने इन्हें नजरअंदाज किया. वह सोशल मीडिया के जरिए लोगों से प्रत्यक्ष मिले. यही वह इकोसिस्टम है जो प्रासंगिक बने रहने के लिए हमले कर रहा है.” दास ने प्रस्ताव दिया कि पर्दे के पीछे रह कर इन्हें अपने पक्ष में करने की शक्ति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. फिर उन्होंने कहा, “पर्दे के पीछे किए जाने वाले ये संवाद प्राथमिक तौर पर शुरू किए जाने चाहिए जिनमें एक सोचे-समझे तरीके से पत्रकारों को अतिरिक्त कुछ दिया जाना चाहिए.” हाल के हफ्तों में दिल्ली की अदालतों ने दो बार दिल्ली पुलिस को कुछ चयनित मीडिया चैनलों में अपनी पड़ताल (दिशा रवि और दिल्ली हिंसा षड्यंत्र मामलों में) लीक करने के लिए फटकार लगाई थी.

मीडिया कर्मी और प्रसार भारती प्रमुख सूर्य प्रकाश ने कहा, “पहले छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को हाशिए पर कर दिया गया था. उन्हीं से यह परेशानी शुरू हो रही है.” ऐसा कहने के बाद उन्होंने बताया कि क्या किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “भारत सरकार के पास उनको नियंत्रण करने के लिए अपार शक्ति है. हमें इस बात पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि पिछले छह सालों में हमने मीडिया के भीतर अपने मित्रों की सूची में विस्तार नहीं किया है.”

एनडीटीवी और तहलका के साथ काम कर चुके नितिन गोखले जो अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के करीबी हैं, उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया कलर कोडिंग के जरिए शुरू की जानी चाहिए. “हरा : फेंस सिटर (जो किसा का पक्ष नहीं लेते), काला : जो हमारे खिलाफ हैं, और सफेद : जो हमारा समर्थन करते हैं. हमें अपने पक्षधर पत्रकारों का समर्थन करना और उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए.”

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


हरतोष बल, https://hindi.caravanmagazine.in/politics/paranoia-about-digital-coverage-led-gom-propose-media-clampdown-monitoring-negative-influencers-hindi


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