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न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘रन ऑफ दि रिवर’ जैसी फर्जी तकनीकों से लोगों को बेवकूफ बनाया जा सकता है, हिमालय को नहीं

‘रन ऑफ दि रिवर’ जैसी फर्जी तकनीकों से लोगों को बेवकूफ बनाया जा सकता है, हिमालय को नहीं

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published Published on Feb 9, 2021   modified Modified on Feb 17, 2021

-द प्रिंट,

‘रन ऑफ दि रिवर’ क्या होता है उससे पहले ये समझ लीजिए कि वास्तव में चमोली में हुआ क्या है? गंगा किसी एक धारा का नाम नहीं है, हिमालय की कई जलधाराएं मिलकर गंगा नदी को बनाती है. इसी तरह की एक छोटी सी धारा का नाम है ऋषिगंगा. थोड़े ऊपर की ओर मौजूद ग्लेशियर से यह धारा निकलती है. इस ग्लेशियर को नंदादेवी ग्लेशियर भी कहते हैं क्योंकि यह इलाका नंदादेवी रेंज का हिस्सा है.

कहा जा रहा है कि नंदादेवी ग्लेशियर टूटा. वास्तव में भूकंप जैसे कारणों को छोड़ दें तो ग्लेशियर टूटता नहीं है वह रास्ता बनाता है और वह रास्ता तब बनाता जब उसका रास्ता ब्लॉक हो जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि पिछले कई दिनों से ऋषिगंगा की ऊपरी धारा पर पानी नहीं आ रहा था इसका मतलब है कि पानी ऊपर कहीं थम गया था (संभवत भूस्खलन के चलते नदी का रास्ता जाम हो गया था.) संबंधित एजेंसियों और प्रशासन ने इस पर यह सोच कर ध्यान नहीं दिया कि बर्फ जमने के चलते धारा में बहाव कम होगा. उन्होंने इस तथ्य पर भी ध्यान नहीं दिया कि हिमालय के गर्म होने की चौतरफा वैज्ञानिक खबरें आ रही हैं.

बहरहाल, ग्लेशियर में बढ़ते दबाव ने एक झटके में अपने रास्ते की बाधा को हटा दिया और ऋषिगंगा मलबे की नदी बन गई. ऋषिगंगा आगे जाकर धौलीगंगा में मिल जाती है. इस मलबे ने रास्ते में निर्माणाधीन ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट (14 मेगावाट) को बहा दिया. जितने मजदूर गायब हुए सब इसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. रविवार का दिन नहीं होता तो मजदूरों और इंजीनियरो की संख्या ज्यादा होती. यह प्रोजेक्ट रैणी गांव के पास है जो गौरा देवी का गांव है. गौरा देवी चिपको आंदोलन का चेहरा रही हैं उन्होंने इस प्रोजेक्ट के विरोध में 2019 में चिपको आंदोलन की वर्षगांठ नहीं मनाई.
ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को बहाकर मलबा आगे बढ़ा और धौलीगंगा पर मौजूद तपोवन विष्णुगाड परियोजना को तहस नहस कर दिया इसके बाद पीपलकोटी परियोजना को भी भारी नुकसान पहुंचाया. पानी के बढ़ने से इस मलबे की मारक क्षमता बढ़ गई . ये सभी प्रोजेक्ट तथाकथित ‘रन ऑफ दि रिवर’ प्रोजेक्ट थे.

रन ऑफ दि रिवर’ का मतलब होता है कि धारा को रोके बिना बिजली बनाना यानी इस तकनीक में पानी को इकट्ठा नहीं किया जाता और बहते पानी को ही टरबाइन में डालकर बिजली पैदा की जाती है. बेशक ये सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन जमीनी सच्चाई एकदम उलट है.

बानगी देखिए – उत्तराखंड के पंचप्रयाग में एक प्रमुख प्रयाग है विष्णु प्रयाग. प्रयाग मतलब जहां दो नदियों का संगम होता है. विष्णु प्रयाग की नदियां हैं अलकनंदा और धौलीगंगा. इन्ही नदियों के संयुक्त जल पर विष्णुगाड – पीपलकोटी परियोजना बनाई गई थी. दोनों नदियों का पानी टनल में डाला और टनल में ही उनका संगम करा दिया. इसके बाद टनल को थोड़ी दूरी पर लेकर बिजली बना ली गई. जिसका सीधा परिणाम यह हुआ कि प्राचीन विष्णु प्रयाग का नामो-निशान ही मिट गया. अब आपका टूर ऑपरेटर या स्थानीय पंडा आपको ना बताए कि यह तीर्थ स्थान विष्णु प्रयाग है तो आप कभी नहीं जान पाएंगे. नदी को टनल में डालकर बिजली बनाने को ही कहते हैं – ‘रन ऑफ दि रिवर’.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अभय मिश्रा, https://hindi.theprint.in/opinion/projects-like-run-of-the-river-are-behind-the-avalanche-in-uttarakhand-himalayas/199662/


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