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न्यूज क्लिपिंग्स् | अब कौन उठाएगा आसमान की तरफ हाथ और सुनाएगा - ‘किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है’

अब कौन उठाएगा आसमान की तरफ हाथ और सुनाएगा - ‘किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है’

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published Published on Aug 12, 2020   modified Modified on Aug 14, 2020

-सत्याग्रह,

कहते हैं कि गोपालदास नीरज जब सार्वजनिक मंचों पर कविता पाठ किया करते थे तो युवाओं के दिल की धड़कनें तेज हो जाती थीं. आज जो हमारी मां हैं मौसी हैं, वे उन दिनों को याद करके खिल उठती हैं जब उनके कॉलेज के मुक्ताकाश मंच पर गोपालदास नीरज अपनी अलहदा अदा में गीत और कविताएं सुनाया करते थे. यह उन दिनों की बात है जब उनके बाल सफेद नहीं हुए थे और वे अपनी मशहूरियत के शिखर पर थे. वे ‘फूलों के रंग से, दिल की कलम से’ जैसे अपने फिल्मी गीत कविता की रवानगी में सुनाते थे और ‘कारवां गुजर गया’ जैसी अपनी कविताएं गीतों की तरह स्वरबद्ध करके महफिलें लूटा करते थे.

आधुनिक दौर की शेरो-शायरी की दुनिया में ऐसे कई कवि और शायर हुए हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंचों पर अपनी शायरी अपनी कविता सुनाने के तरीके से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया. किसी कवि या शायर का लिखा हुआ पढ़ना और उसका पढ़ा हुआ सुनना अलग-अलग असर रखते हैं. गुलजार अपनी नज्में सुना दें तो उनकी इमेजरी में चार-चांद लग जाते हैं और मुनव्वर राणा किसी मुशायरे में मां से जुड़ी अपनी किसी गजल में भावुकता भर दें तो वह गजल हमारे जेहन में उस आवाज के साथ सालों-साल जिंदा रह जाती है.

राहत इंदौरी साहब इसी लीक के शायर थे. उनको सिर्फ पढ़ कर आप जितना उनकी शायरी के करीब जा सकते हैं उससे कई गुना ज्यादा उनको सुनकर आप उनकी गजलों से इश्क फरमा सकते हैं. आज से कुछ दस-बारह बरस पहले जब पहली बार उन्हें खचाखच भरे कवि सम्मेलन में एक मुक्ताकाश मंच पर सुनने का सौभाग्य मिला था, तो मिलेनियल की शब्दावली में कहें तो वे ‘रॉकस्टार शायर’ प्रतीत हुए थे. पारंपरिक तरीके से गजलें पढ़ने वाले मुकम्मल शायरों से दूर उनके अंदाज में कुछ ऐसी बेफिक्री थी जो कि अक्सर पश्चिम के ‘रेबल’ रॉकस्टारों में नजर आती रही है.

सादी-सी शर्ट के ऊपर एक काला कोट जो मालूम होता था कि कई महीनों पहले ड्रायक्लीन हुआ होगा. सफेद होने की तैयारी में लगे हुए बिखरे काले बाल जिनके लिए राहत साहब की उंगलियां ही कंघी थीं. चमड़े की चप्पलें जिनमें न जाने कब आखिरी बार काली पॉलिश हुई होगी. सजे-धजे समकालीन शायरों के बीच उनके इस फक्कड़ मिजाज में आंखों को भाने वाली फकीरी थी, जो बाद में लगातार उनके मुशायरों में शिरकत करके समझ आयी कि असली है. अन्याय की मुखालफत करने वाले एक निडर आवामी शायर की पोयट्री जितनी ही ईमानदार.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


शुभम, https://satyagrah.scroll.in/article/136001/rahat-indori
 

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