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न्यूज क्लिपिंग्स् | देश के न्यायिक इतिहास में राम जेठमलानी को कैसे याद किया जाएगा?

देश के न्यायिक इतिहास में राम जेठमलानी को कैसे याद किया जाएगा?

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published Published on Sep 14, 2020   modified Modified on Sep 15, 2020

-सत्याग्रह,

बात 2009 की है. मोहम्मद अली जिन्ना पर लिखी गई एक किताब का विमोचन होना था. यह किताब भाजपा नेता जसवंत सिंह ने लिखी थी. देश-विदेश की कई बड़ी हस्तियां इस समारोह में उपस्थित थीं. प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी भी इनमें से एक थे. उन्होंने इस समारोह में कहा, ‘भारत-पाकिस्तान विभाजन का मुख्य कारण मोहम्मद अली जिन्ना नहीं बल्कि हरिचन्द्र नाम का एक कंजूस हिन्दू था.’ जेठमलानी के इस बयान ने सभी को चौंका दिया. यहां मौजूद इतिहासकार भी नहीं जानते थे कि आखिर हरिचन्द्र नाम का ऐसा कौन व्यक्ति था जो विभाजन का कारण बना था. और जेठमलानी ऐसा किस आधार पर कह रहे थे?

लेकिन इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे. पहले बात करते हैं राम जेठमलानी के सबको चौंका देने वाले इस अंदाज़ की. उनका यह अंदाज़ ताउम्र उनसे जुड़ा रहा. राम जेठमलानी आपको ऐसे ही चौंकाते रहे जब अरविंद केजरीवाल की वकालत करते-करते उन्होंने अचानक एक दिन उनकी पैरवी करना छोड़ दिया और इसके कुछ दिनों बाद वकालत ही छोड़ने की बात कह दी. जब कभी राम जेठमलानी से उनके रिटायरमेंट के बारे में पूछा जाता तो उनका जवाब होता था कि ‘मेरे मरने की तारीख आप क्यों जानना चाहते हैं.’ इसके बावजूद वे दो बार ऐसा हुआ कि उन्होंने कहा कि अब वे वकालत नहीं करेंगे और फिर फिर उन्होंने केस लड़ना शुरू कर लोगों को चौंका दिया.

लोग तब भी चौंके जब उन्होंने घर के बाहर एक तख्ती लगा दी जिस पर लिखा था कि सिर्फ महत्वपूर्ण राष्ट्रहित के मामलों में ही उनसे संपर्क किया जा सकता है. और इससे भी ज्यादा उन्होंने सबको तब चौंकाया जब इतना कुछ करने के बाद वे अचानक जेसिका लाल हत्याकांड के मुख्य आरोपित की पैरवी के लिए कोर्ट में उतर आए. मनु शर्मा को जब सभी जेसिका का हत्यारा मान चुके थे तो राम जेठमलानी ने सबको यह कह कर चौंकाया कि ‘जेसिका की हत्या मनु शर्मा ने नहीं बल्कि एक लंबे सिख नौजवान ने की थी. मेरे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं और मैं जल्द ही उसकी पहचान सार्वजनिक करने वाला हूं.’

अपने बयानों और तर्कों से सबको लाजवाब कर देने वाला राम जेठमलानी का यही अंदाज़ था जिसने उन्हें देश का सबसे चर्चित, सबसे बड़ा और सबसे महंगा वकील बनाया. जिसने उन्हें ‘राम जेठमलानी’ बनाया. वह राम जेठमलानी जिसने भारतीय इतिहास में वकालत का सबसे लंबा सफ़र तय किया. सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील बताते हैं, ‘जेठमलानी साहब कई बार न्यायाधीशों को यह तक बोल देते थे कि आपकी उम्र से ज्यादा तो मेरा वकालत का अनुभव है. उनकी इस बात का कोई बुरा भी नहीं मानता.’ बुरा शायद इसलिए भी नहीं माना जाता था कि यह बात सच भी है. सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की अधिकतम उम्र 65 साल हो सकती है. जबकि राम जेठमलानी का वकालत का अनुभव ही करीब आठ दशक का रहा.

वैसे वकालत में राम जेठमलानी के आने और फिर छा-जाने के सफ़र की शुरुआत भी बेहद दिलचस्प है. एक साक्षात्कार में उनका कहना था, ‘जब मैं तीसरी कक्षा में था तो मेरे स्कूल में एक कार्यक्रम हुआ. इसमें सिंध के कई स्कूलों के शिक्षक और छात्र आए थे. मेरे शिक्षकों ने मुझे मंच पर बुलाया और अन्य शिक्षकों को चुनौती दी कि इस बालक से मुग़ल इतिहास का कोई भी सवाल पूछ लो. मेरा प्रदर्शन इतना बेहतरीन रहा कि लोगों ने मंच पर नोटों और सोने की गिन्नियों की बरसात कर दी थी.’

इस बयान में सोने की गिन्नियों की बरसात वाली बात आपको जरूर अतिश्योक्ति लग सकती है. लेकिन यह आपको मानना ही होगा कि राम जेठमलानी बचपन से ही विलक्षण थे. इसी विलक्षणता के चलते उन्हें स्कूल में दो बार अगली कक्षा में भेज दिया गया. और उन्होंने सिर्फ 13 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर लिया था. राम जेठमलानी के पिता और दादा भी वकील थे. लेकिन वे नहीं चाहते थे कि राम भी वकील बनें. एक साक्षात्कार में राम जेठमलानी का कहना था, ‘मेरे पिता चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं. उन्होंने मेरा दाखिला भी विज्ञान में करवा दिया था. लेकिन वकालत मेरे खून में थी. मेरी किस्मत अच्छी थी कि उसी वक्त सरकार ने एक नियम बनाया. इस नियम के तहत कोई भी छात्र एक परीक्षा पास करके वकालत में दाखिला ले सकता था. मैंने यह परीक्षा दी और इसमें अव्वल आते हुए वकालत में दाखिला पा लिया.’ महज 17 साल की उम्र में राम जेठमलानी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुके थे.

पिता की इच्छा के विरुद्ध वकालत की पढ़ाई करने के बाद इस 17 साल के नौजवान के सामने एक और चुनौती आई. बार काउंसिल के नियम के अनुसार 21 वर्ष की आयु से पहले किसी भी व्यक्ति को वकालत करने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता था. ऐसे में राम जेठमलानी को योग्यता हासिल करने के बाद भी चार साल का इंतज़ार करना था. लेकिन उन्होंने कराची हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक प्रार्थना पत्र लिखा. इसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें अपनी बात कहने का एक मौका दिया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें मिलने का समय और अपनी बात कहने का मौका दिया. एक टीवी इंटरव्यू में राम जेठमलानी ने बताया, ‘मैंने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि जब मैंने वकालत में दाखिला लिया था उस वक्त ऐसा कोई नियम नहीं था कि मुझे 21 साल की उम्र से पहले लाइसेंस नहीं दिया जा सकता. लिहाजा मेरे ऊपर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए.’ मुख्य न्यायाधीश इस 17 साल के नौजवान की बात और इसके आत्मविश्वास से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बार काउंसिल को पत्र लिख कर राम जेठमलानी को लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा. इसके बाद नियमों में बदलाव किया गया और एक अपवाद को शामिल करते हुए 18 साल की उम्र में ही राम जेठमलानी को वकालत का लाइसेंस जारी कर दिया गया. इतनी कम उम्र में वकालत शुरू करने वाले वे देश के पहले और आखिरी व्यक्ति बन गए.

राम जेठमलानी ने कराची से ही अपनी वकालत की शुरुआत की. यहां उनके साथी थे एके ब्रोही. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद जहां राम जेठमलानी ने भारत ने नाम कमाया वहीं ब्रोही भी पाकिस्तान में बहुत चर्चित हुए. यह भी एक संयोग ही है कि ये दोनों ही साथी आगे चलकर अपने-अपने देश के कानून मंत्री भी बने. फरवरी 1948 में जब कराची में दंगे भड़के तो ब्रोही के कहने पर ही राम जेठमलानी भारत आए थे. यहां आकर उनके शुरुआती दिन मुंबई के शरणार्थी शिविरों में बीते. उनके अनुसार एक बैरिस्टर ने तब 60 रूपये में उन्हें सिर्फ एक मेज लगाने लायक जगह दी थी. यहीं वे अपने मुवक्किलों से मिला करते थे.

राम जेठमलानी की प्रसिद्धि का दौर 1959 से शुरू हुआ जब उन्हें केएम नानावती मामले में पैरवी करने का मौका मिला. केएम नानावती मामले को राम जेठमलानी के कैरियर का सबसे बड़ा मामला भी माना जाता है. नानावती नौसेना का एक अधिकारी था. उसने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी. इस मामले को मीडिया ने जबरदस्त हवा दी और यह उस दौर का सबसे चर्चित मामला बन गया. उस वक्त भारत में जूरी द्वारा भी फैसले दिए जाते थे. जूरी ने नानावती को हत्या के इस मामले में दोषमुक्त करार दे दिया था. बाद में यह मामला महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के आदेश पर दोबारा शुरू किया गया. राम जेठमलानी ने नानावती के खिलाफ पैरवी की. इसके बाद नानावती को न सिर्फ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई बल्कि तब से भारत में जूरी की व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई. इसके साथ ही राम जेठमलानी का नाम भी सारे देश में छा गया.

राम जेठमलानी को नानावती केस से मिली प्रसिद्धि आगे चलकर बढ़ती ही गई. लेकिन यह प्रसिद्धि विवादित भी थी. 60 के दशक की शुरुआत से ही राम जेठमलानी तस्करों के वकील के रूप में बदनाम होने लगे थे. फिर यह सिलसिला चलता ही रहा. अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान, शेयर बाजार घोटालों के आरोपित हर्षद मेहता और केतन पारेख, जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा, राजीव गांधी के हत्यारों, इंदिरा गांधी के हत्यारों, यौन शोषण के आरोप में फंसे आसाराम बापू, अवैध खनन के आरोपित येदियुरप्पा और आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसी जयललिता समेत तमाम लोगों की पैरवी उन्होंने की.


राहुल कोटियाल, https://satyagrah.scroll.in/article/10320/ram-jethmalani-profile


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