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न्यूज क्लिपिंग्स् | आपराधिक कानून समिति के सदस्य बलराज चौहान के 2011 के ​शोधपत्र का अधिकांश हिस्सा कॉपी

आपराधिक कानून समिति के सदस्य बलराज चौहान के 2011 के ​शोधपत्र का अधिकांश हिस्सा कॉपी

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published Published on Jul 17, 2021   modified Modified on Jul 20, 2021

-कारवां,

आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए गृह मंत्रालय की समिति के सदस्य बलराज चौहान के सह-लेखन में प्रकाशित एक शोधपत्र के कई खंडों पर साहित्यिक चोरी का आरोप है. अक्टूबर 2011 में इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में "गुड गवर्नेंस : सर्च फॉर एकाउंटेबिलिटी मैकेनिज्म" शीर्षक से शोधपत्र प्रकाशित हुआ था.

चौहान इस साल मध्य जून तक मध्य प्रदेश के जबलपुर में धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति थे. चौहान के सह-लेखक मृदुल श्रीवास्तव, लखनऊ में डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में सहायक रजिस्ट्रार हैं. आईजेपीए भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की समकक्ष समीक्षा वाली पत्रिका (पीर-रिव्यू जॉर्नल) है, जो स्वयं को एक स्वायत्त शैक्षणिक संस्थान के रूप में वर्णित करती है. चौहान और श्रीवास्तव का शोधपत्र 4,500 शब्दों से थोड़ा अधिक लंबा है. इनमें से कम से कम 3,500 शब्द दूसरे लेखकों के लिखे गए दूसरे प्रकाशनों में पहले ही छप चुके थे. शोधपत्र में केवल नौ सौ से थोड़ा अधिक शब्द मूल प्रतीत होते हैं.

सीआरसीएल समिति को गृह मंत्रालय ने भारत के आपराधिक कानूनों की समीक्षा के लिए गठित किया है. अपनी वेबसाइट पर, समिति का कहना है कि यह भारत के आपराधिक कानूनों में "एक सैद्धांतिक, प्रभावी और कुशल तरीके से सुधारों की सिफारिश करने का प्रयास करती है." हालांकि, वकीलों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने समिति के गठन की यह कह कर आलोचना की कि इसमें देश का प्रतिनिधित्व नहीं है, दलित, आदिवासी या अन्य हाशिए के समुदायों के सदस्यों को शामिल नहीं किया गया है.

चौहान के शोधपत्र का काफी बड़ा हिस्सा नगायर वुड्स के 1999 में लिखे एक शोधपत्र से हू-ब-हू उठाया हुआ है. अकादमिक वुड्स उस वक्त ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के व्याख्याता थे. वुड्स वर्तमान में ऑक्सफोर्ड में ब्लावात्निक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के डीन हैं. "अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सुशासन" शीर्षक वाला उनका शोधपत्र "ग्लोबल गवर्नेंस" पत्रिका के खंड 5 में जनवरी-मार्च 1999 के अंक में प्रकाशित हुआ था. चौहान के शोधपत्र में वुड्स के शोधपत्र के पूरे हिस्से को बिना उद्धृत किए या संदर्भ दिए उठा लिया गया है.

चौहान के शोधपत्र के मुख्य भाग में किसी का संदर्भ ही नहीं दिया गया है. हालांकि चौहान के शोधपत्र के अंत में "ए सेलेक्ट रीडिंग" शीर्षक से एक सूची है, जिसमें वुड्स के एक अन्य शोधपत्र का उल्लेख है.

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चौहान के शोधपत्र में पूरे पैराग्राफ को बिना उद्धृत किए पहले प्रकाशित काम में दर्शाया गया है. चौहान के शोधपत्र में जयपुर स्थित एबीडी पब्लिशर्स द्वारा 2009 में प्रकाशित राजेश्वर त्रिखा की पुस्तक "नौकरशाही और लोक प्रशासन" से मामूली बदलाव के साथ 760 शब्द उठाए गए हैं.

मैंने फाल्स फेदर्स : ए पर्सपेक्टिव आन एकेडमिक प्लेजरिज्म के लेखक और जर्मनी में एप्लाइड साइंसेज यूनिवर्सिटी बर्लिन के एक प्रोफेसर डेबोरा वेबर-वुल्फ से बात की. उन्होंने चौहान के शोधपत्र को देखा और उसी तरह वुड्स के 1999 के शोधपत्र और त्रिखा की किताब की भी जांच की. अपनी समीक्षा के आधार पर, वेबर-वुल्फ ने इसे "व्यापक साहित्यिक चोरी" का मामला कहा.

चौहान और श्रीवास्तव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "अगर आप इसे पढें, तो आप सोचेंगे कि ये दो लेखक आपसे बात कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वुड्स आपसे बात कर रहे हैं न कि ये दो लेखक. क्योंकि दोनों लेखकों ने काफी ज्यादा हिस्सा उनके शोधपत्रों से उठाया था."

मैंने इस संबंध में टिप्पणी करने के लिए चौहान से कई बार संपर्क किया. "मैं कोई टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हूं क्योंकि यह एक पुरानी बात है और मैं इसका सह [लेखक] हूं," उन्होंने कहा. "अगर यह मेरा लेख होता, तो मैं आपको हर चीज का ब्योरा देता." चौहान ने श्रीवास्तव का जिक्र करते हुए और उन्हें जूनियर बताते हुए कहा, 'पहले आप उनसे बात करें.' यह पूछे जाने पर कि अकादमिक मानक के अनुसार पेपर में कोई उद्धरण क्यों नहीं हैं और अंत में केवल एक पठन सूची क्यों है, चौहान ने कहा, “यह एक अलग शैली है. यह एक शोध पत्र नहीं है, यह जानकारी है. 10-11 साल पहले हमारी शैली अलग थी.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अमृता सिंह, https://hindi.caravanmagazine.in/law/criminal-law-reforms-committee-member-hindi
 

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