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न्यूज क्लिपिंग्स् | दिल्ली सहित कई शहरों में आवास और आजीविका के विस्थापन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
दिल्ली सहित कई शहरों में आवास और आजीविका के विस्थापन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

दिल्ली सहित कई शहरों में आवास और आजीविका के विस्थापन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

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published Published on Sep 6, 2022   modified Modified on Sep 8, 2022


~ प्रेस विज्ञप्ति नई दिल्ली, 6 सितंबर, 2022:

आज जब हम 76वें स्वतंत्रता दिवस और आज़ादी का अमृत महोत्सव को मना रहे हैं, उसी समय झुग्गियों, बस्ती कॉलोनियों में रहने वाले और असंगठित क्षेत्र के हजारों श्रमिकों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है, जिन्हें बिना किसी पुनर्वास के अपनी आजीविका से वंचित भी कर दिया गया है, वे "बुलडोजर राज" के खिलाफ़ जंतर-मंतर पर अपनी आवाज उठाने के लिए एकत्र हुए हैं। सरकार देश भर से गरीब दलितों और आदिवासियों की जमीन जबरन छीन कर मुट्ठी भर पूंजीपतियों को बेच रही है और तूफान की तरह बुलडोजर से बस्तियों में तोड़फोड़ कर रही है। एक तरफ सरकार गरीबों और मजदूरों की हितैषी होने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ रोज़ी-रोटी और मकान की तबाही का जश्न मना रही है। दिल्ली में नफरत का माहौल बनाकर सरकार सांप्रदायिक एजेंडे को हवा देते हुए तोड़फोड़/बेदखली के इन अभियानों को आगे बड़ा रही है और इस तरह मजदूर वर्ग की एकता को भी तोड़ने का प्रयास कर रही है।

COVID-19 महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक, 6 लाख से अधिक लोगों को उनके घरों से बेदखल किया जा चुका है और लगभग 1.6 करोड़ लोग अब विस्थापित होने के खतरे और अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बजाय बुलडोजर का उपयोग करके "न्याय" देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने दिल्ली-एनसीआर में 63 लाख घरों को बेदखल करने की घोषणा की, लेकिन पुनर्वास के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया। इसके अतिरिक्त, असंगठित क्षेत्र के 50,000 मजदूरों के लिए कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है, न ही सरकार द्वारा उनके आवास की योजना है, जबकि दिल्ली में 28,000 घर खाली पड़े हैं। जमीनी हकीकत इस दावे का भी खंडन करती है कि प्रधानमंत्री आवाज योजना के तहत मार्च, 2022 तक लगभग 123 लाख घरों को मंजूरी दी गई है। DUSIB नीति 2015, 676 मान्यता प्राप्त मलिन बस्तियों के निवासियों के पुनर्वास की गारंटी देती है, हालांकि यह उन सैकड़ों मलिन बस्तियों/बस्तियों पर चुप है जिनका सर्वेक्षण भी नहीं किया गया है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु जैसे कई अन्य राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति है।

ग्यासपुर बस्ती, खोरी गांव फरीदाबाद, हरियाणा, गाजियाबाद, आगरा, धोबी घाट कैंप, कस्तूरबा नगर, बेला घाट आदि के लोग धरने में इकट्ठा हुए हैं, जिन्होंने कुछ मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय के स्टे ऑर्डर के बावजूद जबरन बेदखली और विध्वंस का सामना किया है। इन विध्वंसों/बेदखलों ने कई "वैकल्पिक आश्रय" प्रावधानों का उल्लंघन किया है, जो कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा शहरी गरीबों को गारंटी दी है और प्रभावित लोगों के जीवन, आजीविका और सम्मान के अधिकारों के साथ असंगत है।

देश में जहां बेरोजगारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, वहीं फेरीवालों, रेहड़ी-पटरी वालों, कचरा कामगार  और सफाई कर्मचारियों को उनके कार्यस्थल से बेदखल किया जा रहा है। मजदूरों के काम की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून को सरकार खुद नहीं बनने दे रही है। एनसीआरबी की रिपोर्ट "भारत में दुर्घटना से होने वाली मौतें और आत्महत्याएं" - से पता चलता है कि 2021 में आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतन भोगी सबसे बड़ा व्यवसाय-वार समूह बना रहा, जो दर्ज किए गए 1,64,033 आत्महत्या पीड़ितों में हर चार में से एक है। जो संगठन या कार्यकर्ता आवाज उठाते हैं, उन पर झूठे मुकदमे लगाकर उन्हें जेल में डाला जा रहा है। न सर्वेक्षण, न स्थान परिवर्तन, न प्रमाणपत्र आवंटन, केवल आजीविका से वंचित और फलस्वरूप जीवन से वंचित किया जा रहा है।

 विरोध में विभिन्न उत्साही नारे और गवाहियों को उठाया गया: "बुलडोजर राज बंद करो", "शहरी गरीबो को अधिकार देना होगा", "बिना पुनर्वास विस्थापन बंद करो", "जिस जमीन पर बसें हैं, जो जमीन सरकारी है, वो जमीन हमारी है!”

इन जबरन विस्थापनों के रूप में इस आधुनिक गुलामी को रोकने के लिए, विस्थापन से पहले पूर्ण पुनर्वास प्रदान करने और जिन्हें बेदखल किया जाना है, उन्हें पर्याप्त नोटिस प्रदान करने के लिए प्रधान मंत्री और शहरी गरीब मंत्री को निम्नलिखित मांगों के साथ ज्ञापन दिया गया।

जबरन विस्थापन (बेदखली) पर तत्काल रोक लगाए।
पूर्ण पुनर्वास से पहले विस्थापन नहीं।
वंचित बस्तियों का सर्वेक्षण कर पुनर्वास के लिए सुनिश्चित करें।
जबरन बेदखली करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
हर राज्य की एक पुनर्वास नीति होनी चाहिए जिसकी कट ऑफ डेट 2021 की जाए।
स्ट्रीट वेंडर हॉकर्स आदि का सर्वे तत्काल कर सीओवी दें और सीओवी का सम्मान करें।
असंगठित श्रमिकों को नियमित करें और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
20-30% शहरी क्षेत्र श्रमिकों के लिए आरक्षित होना चाहिए।
 

सभी झुग्गी बस्तियों और श्रमिक कॉलोनियों के आवासों की ओर से, यूनियनों और संगठनों के प्रतिनिधि। मजदूर आवास संघर्ष समिति, हॉकर्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी, वर्किंग पीपल्स कोएलिशन, ऐक्टू, धोबीघाट झुग्गी अधिकारी मंच फरीदाबाद आरडब्ल्यूए, रेहड़ी पटारी विकास संघ, बस्ती सुरक्षा मंच, सामाजिक न्याय एवं अधिकार समिति, आरडब्ल्यूए दयाल नगर, कृष्णा नगर ग्राम विकास समिति, आगरा आवास संघर्ष समिति, आश्रय अभियान बिहार, बेला राज्य आवास संघर्ष समिति, दिल्ली घरेलू कामगार संघ, दिल्ली शहरी महिला कामगार संघ, संग्रामी घरेलु कामगार संघ, दिल्ली रोज़ी रोटी अधिकार अभियान।

 

-निर्मल गोराना अग्नि, संयोजक, मजदूर आवास संघर्ष समिति

Kindly click here to access the PDF copy of the press release dated 6 September, 2022

Image Courtesy: Press release by Freedom from Bondage movement dated 6 September, 2022

 

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