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न्यूज क्लिपिंग्स् | महामारी के दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण

महामारी के दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण

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published Published on May 30, 2021   modified Modified on May 31, 2021

-न्यूजलॉन्ड्री,

रूपक हमें किसी भी बोध के लिए विशेषण सुझाते हैं. भारत बमुश्किल अभी भिखारियों, सपेरों, और राजाओं के देश के रूपक की केंचुली उतार ही पाया था, कि अब वो ताली, थाली और दिए से एक वायरस से लड़ने की सोचने वाले देश के रूपक में जकड़ गया. भारत की तमाम वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां उस प्रतिछवि से ग्रस्त हो जाती हैं, गो-कोरोना-गो के चिल्लाने, और गोमूत्र एवं गोबर के सहारे महामारी से लड़ने के प्रयास उजागर होते हैं, वैसे तो समकालीन सरकार तमाम असफलताओं का श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को देती है, परन्तु नेहरू ने भरसक प्रयास किये कि इस देश में वैज्ञानिक दृश्टिकोण पनपे, शायद इसीलिए, सरकार और उसकी मातृ-संस्था को नेहरू से सबसे ज़्यादा नफरत है. नेहरू के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण केवल विज्ञान पढ़ने वालों की थाती नहीं है, वरन यह तो रोज़मर्रा का दर्शन है, जिसके तहत किसी भी ‘कथ्य’ को इस लिए सत्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि अमुक व्यक्ति द्वारा कही गयी है, उदाहरणतः एक योगगुरु, जो एक बड़े आयुर्वेद कॉर्पोरेट के बेनामी मालिक हैं, के अनुसार उन्होंने कोरोना को ‘निल’ (शून्य) करने की दवा बनायीं हैं, जो काफी कारगर हैं.

भारतीय मीडिया ने कोरोनावायरस उपचार में इसे सफलता के रूप में संदर्भित करते हुए एक टीवी शो चलाया. इस शो में योगगुरु ने कहा कि इस दवाई को "नियमानुसार नैदानिक (क्लिनिकल) परीक्षण करके विकसित किया गया है" और दावा किया कि यह "कोविड -19 का शत प्रतिशत इलाज है.” कोरोना को निल करने वाली इस दवा संबंधित दस्तावेज़ों और जारी की गई जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर जब देश और विदेश के वैज्ञानिकों ने इसकी समीक्षा की तो पाया कि उनके सारे दावे औंधे मुंह गिर गए.

इसके बाद, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक बयान जारी किया कि योगगुरु को प्रभावकारिता के प्रमाण के अभाव के कारण कोविड -19 के इलाज के रूप में दवा का विज्ञापन नहीं करने की हिदायत दी. देश की कई अदालतों में उनकी कंपनी के खिलाफ भ्रामक प्रचार के मुक़दमे भी दायर हुए. इसके बाद उन्होंने अपने शर्तिया इलाज के सारे दावें वापस ले लिए और इस दवा को प्रतिरक्षा तंत्र को बूस्ट करने वाला बता कर बेचना प्रारम्भ कर दिया.

वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका ये भी दावा तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है. मीडिया के वर्गों के माध्यम से फैलाए जा रहे झूठ और अर्धसत्य, वास्तव में सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक प्रभावी ढंग से फैलाये गए हैं. और अब ऐसी खबर आयी है, कि इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है. अगर यह योगगुरु का कोई ‘मार्केटिंग स्टंट’ नहीं है, तो ये समाज के लिए एक चिंता का विषय है. अभी पिछले दिनों इन्हीं योगगुरु द्वारा एलोपैथी चिकित्सकों द्वारा दिए जा रहे कोरोना के इलाज को एक सिरे से गलत बताया जाना, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के विरोध का कारण बना. जब मेडिकल एसोसिएशन ने उन पर महामारी एक्ट में शिकायत दर्ज करने की बात की तो उन्होंने फट से माफ़ी मांग कर यह सफाई पेश कर दी, कि वे उस समय पर एक निजी सभा में बोल रहे थे.

भारतीय संविधान के नीति निर्देशकों का हिस्सा होने के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पोषण से इतर राजनेताओं, अफसरों, यहां तक की अकादमिक जगत के प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत प्रोफेसरों की एक बड़ी संख्या है, जो अप्रमाणित और संभवतः हानिकारक मनगढ़ंत कहानियों में विश्वास क़रती है. इन जैसे ही बहुत से सरकार के सलाहकार भी बनते हैं. बदकिस्मती से हम वर्तमान सरकार के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों के बीच वैज्ञानिक सोच की भारी कमी देख सकते हैं. मंत्रियों (यहां तक ​​कि स्वयं प्रधानमंत्री) ने प्राचीन काल में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक और प्लास्टिक सर्जरी के इस्तेमाल का दावा किया था. तीन साल पहले, शिक्षा के प्रभारी मंत्री ने डार्विन के जैविक विकास के सिद्धांत पर आपत्ति जताई थी, और उन्होंने ने कहा था कि हमें इसे स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहिए.

एक अन्य मंत्री ने, जो उस समय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विभाग संभाल रहे थे, ने दावा किया था, "वेदों में आइंस्टीन के दिए हुए सिद्धांतों की तुलना में वैज्ञानिक रूप से बेहतर सिद्धांत हैं." पिछले साल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने कथित तौर पर गोमूत्र और गोबर के लाभों का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान को निधि देने की पेशकश की थी, जबकि एक पूर्व सीएम ने दावा किया था, "गाय ही ब्रह्माण्ड में एकमात्र जानवर है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करने के साथ-साथ उसे छोड़ता भी है."

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


https://hindi.newslaundry.com/2021/05/30/scientific-approach-in-times-of-coronavirus-epidemic-modi-government-baba-ramdev


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