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न्यूज क्लिपिंग्स् | यूक्रेन संकट: रूस पर बाइडन के प्रतिबंध से बढ़ने वाली महंगाई को लेकर भारत को सचेत रहना होगा

यूक्रेन संकट: रूस पर बाइडन के प्रतिबंध से बढ़ने वाली महंगाई को लेकर भारत को सचेत रहना होगा

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published Published on Mar 5, 2022   modified Modified on Mar 18, 2022

-द वायर,

काफी बहस के बाद अमेरिका ने आखिरकार बड़ा फैसला लेते हुए कुछ प्रमुख रूसी बैंकों को स्विफ्ट (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) मैसेजिंग सिस्टम से बाहर कर दिया. स्विफ्ट 200 से ज्यादा देशों के 11,000 से ज्यादा बैंकों को एक साझा लेनदेन सूचना प्लेटफॉर्म से जोड़ता है.

यह शायद आज तक के इतिहास में रूस पर लगाया गया सबसे कठोर आर्थिक प्रतिबंध है.

इस सिस्टम से बाहर निकाले जाने से इन प्रमुख बैंकों के सहारे किए जानेवाले रूस के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. यह फैसला कुछ ऐसा ही जैसे एसबीआई, कैनरा बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक को अचानक इस वैश्विक बैंकिंग सूचना प्रणाली से बाहर कर दिया जाए.

इन बड़े भारतीय बैंकों के पास बड़े और छोटे निर्यातकों को नियमित कर्ज समेत भारतीय बैंकों की लगभग 50 फीसदी परिसंपत्ति है.

ऐसा माना जाता है कि, 2012 में ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद ईरान को अपने तेल और गैस निर्यात समेत अपने व्यापार का 30-40 फीसदी गंवाना पड़ा.

न्यूज रपटों के मुताबिक राष्ट्रपति जो बाइडन को हालिया पाबंदियां लगाने से पहले यूरोपीय संघ के कुछ प्रमुख देशों को मनाना पड़ा था. अपनी गैस की कुल जरूरत के तीस प्रतिशत से ज्यादा के लिए रूस पर निर्भर जर्मनी के लिए रूस से होने वाले गैस के निर्यात में आने वाली रुकावट को लेकर चिंतित होना लाजिमी था.

एक तरह से यह पुतिन का तुरुप का इक्का था, जिसमें लगाए जाने वाले प्रतिबंधों की प्रकृति को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ को दोफाड़ करने की क्षमता था. गौरतलब है कि ऊर्जा के मामले में अमेरिका लगभग आत्मनिर्भर है.

हालांकि अमेरिका यूरोपीय संघ के साथ एक बीच का रास्ता निकालने में कामयाब रहा, जिसके तहत रूस को उसके ऊर्जा व्यापार को पूरी तरह से ठप किए बगैर पर्याप्त तरीके से सजा दी जानी थी.

प्रमुख रूसी बैंकों को स्विफ्ट सिस्टम से बाहर निकालने से बाजार हिचकोले खाएगा और तेल की कीमतें वर्तमान की बढ़ी हुई दरों से भी और ऊपर की ओर जाएंगी.

रूसी बैंको को स्विफ्ट से हटाए जाने की प्रतिक्रिया में कच्चा तेल बढ़कर 105 डॉलर हो चुका है और रूसी मुद्रा रूबल में अमेरिकी डॉलर की तुलना में 30 फीसदी गिरावट आयी है.

इससे पहले, वैश्विक तेल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण रूस ने अपने तेल/गैस निर्यात से कहीं ज्यादा कमाई की! इसलिए रूस से इसकी वसूली करना जरूरी था.

बड़े रूसी बैंकों को स्विफ्ट से बाहर निकालने से यह मकसद कुछ हद तक पूरा होगा और रूस के तेल राजस्व को अच्छा-खासा नुकसान होगा. रूस के कुल निर्यात में तेल, गैस और संबंधित उत्पाद का हिस्सा लगभग 50 प्रतिशत है. यह रूस की कुल जीडीपी का 35 फीसदी है.

पश्चिमी गठबंधन इस पर रणनीतिक तौर पर निशाना लगाना चाहेगा, लेकिन यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके विपरीत नतीजों का भी आकलन कर रहा है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


एमके वेणु, http://thewirehindi.com/207392/ukraine-crisis-biden-s-sanctions-inflation-india/


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