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न्यूज क्लिपिंग्स् | आखिर मिजोरम और असम क्यों भिड़ गए, इन पांच सवालों में छिपा है इसका राज

आखिर मिजोरम और असम क्यों भिड़ गए, इन पांच सवालों में छिपा है इसका राज

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published Published on Aug 1, 2021   modified Modified on Aug 8, 2021

-द प्रिंट,

मिज़ोरम और असम जैसे दो छोटे-छोटे राज्य जमीन के लिए मशीनगन उठाकर क्यों आपस में भिड़ गए हैं, यह समझने के लिए हमें पांच सवालों पर ध्यान देना होगा. उनके जवाबों में ही इस मसले का राज छिपा हुआ है.

पहला सवाल यह है कि उत्तर-पूर्व के जिन छह राज्यों से असम की सीमाएं मिलती हैं उनमें से चार राज्यों के साथ ही असम का सीमा विवाद क्यों है, बाकी दो राज्यों के साथ क्यों नहीं? कम-से-कम उनसे कोई अहम विवाद नहीं है. इस सवाल पर एक और सवाल उठता है कि भारत का अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद क्यों है, खासकर उनके साथ जो देश विभाजन के बाद अस्तित्व में आए?

इसकी व्याख्या यह है कि जिस तरह पाकिस्तान भारत से अलग करके बना, और नेपाल के साथ सीमाएं ब्रिटिश काल से विरासत में मिलीं, असम के चार पड़ोसी राज्य भी 1963 से 1972 के बीच उससे अलग करके बनाए गए.

जिस तरह भारत और उसके नये पड़ोसियों के साथ सीमाएं एक बाहरी ताकत, ब्रिटेन ने हड़बड़ी में जैसे-तैसे तय कर दी थी, उसी तरह उत्तर-पूर्व के नये राज्यों की सीमाएं दिल्ली में बैठे नौकरशाहों ने तय कर दी. यह प्रक्रिया रेडक्लिफ के विपरीत ज्यादा आराम से पूरी की जा सकती थी क्योंकि इस मामले में सीमाएं भारत के नक्शे के अंदर हमारे अपने राज्यों के बीच तय की जानी थीं. लेकिन ज़्यादातर ब्रिटिश काल से विरासत में मिलीं सीमाओं को ही कायम रखा गया.

मिज़ोरम-असम के बीच ताजा विवाद इसका अच्छा उदाहरण है. 1972 में, जब असम के लुशाल हिल्स जिले को अलग करके मिजोरम नाम का केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया (1987 में इस पूर्ण राज्य बना दिया गया) तब गृह मंत्रालय ने जिले की जो सीमा ब्रिटिश शासकों ने 1933 में तय की थी उसे ही तय कर दिया. अंग्रेजों ने इसी क्षेत्र की सीमाएं 1875 में भी तय की थी जिसके तहत कुछ क्षेत्र मिज़ो लोगों को दिए थे लेकिन 1933 में वे क्षेत्र उनसे वापस ले लिये गए. वह पहला सीमांकन 1873 के बंगाल ईस्टर्न फ़्रंटियर रेगुलेशन नामक कानून के तहत किया गया था. इसलिए, पहले सवाल का जवाब यह है कि इस उपमहादेश का जिस तरह विभाजन किया गया उसी तरह हड़बड़ी में सीमांकन की अप्रिय विरासत का यहां भी पालन किया गया.

अब हम दूसरे सवाल पर आते हैं. 1933 में सीमारेखा क्यों बदली गई? मिज़ो और असमी लोगों के बीच झगड़ा किस बात का था? वे 1875 वाली रेखा को कबूल करते हैं क्योंकि उनका कहना है कि उस समय उनके जनजातीय बुजुर्गों और मुखियायों से सलाह की गई थी. 1933 में ऐसा कोई लिहाज नहीं किया गया. हो सकता है कि तब तक लुसार हिल्स के मैदानी और थोड़े ढलवां क्षेत्र में चाय के बागान उग आए थे इसलिए अंग्रेजों के व्यापारिक हित उभर आए हों.

दूसरी ओर, असम का दावा कानूनी और नैतिक रूप से इसलिए मजबूत है क्योंकि उसका कहना है कि वह अधिकृत रूप से तय की गई सीमाओं को ही मान सकता है. इसके अलावा यह कि उसने राष्ट्रहित में अपनी उदारता का परिचय देते हुए अपने विशाल राज्य का इस तरह बंटवारा होने दिया. यही वजह है कि असम, त्रिपुरा और मणिपुर के बीच इस तरह का गंभीर सीमा विवाद नहीं है. इसकी वजह यह है कि उन दोनों राज्यों के क्षेत्र पहले से तय थे और उन्हें असम का विभाजन करके नहीं बनाया गया था.

तीसरा सवाल यह है कि इतने वर्षों तक दबे रहे ये सीमा विवाद आज क्यों उभर आए हैं? वह भी तब जबकि एक राजनीतिक दल, जो भारी बहुमत से देश पर शासन कर रहा है वह पूरे उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी सत्ता में है— या तो असम और त्रिपुरा में सीधे, या मणिपुर में गठबंधन के रूप में, या अरुणाचल में खरीदफरोख्त करके, या मेघालय, नागालैंड, मिज़ोरम में सहयोगियों के जरिए?

गौरतलब है कि जब एक ही पार्टी कांग्रेस दोनों राज्यों में सत्ता में थी तब भी मुख्यतः असम और नागालैंड के बीच हिंसक सीमा विवाद हुआ था. अंतिम बड़ा विवाद, जिसमें 1985 में 41 लोग मेरापनी बाज़ार नामक गांव में मारे गए थे, तब हुआ था जब असम में हितेश्वर सैकिया और नागालैंड में एस.सी. जमीर मुख्यमंत्री थे.

इस सवाल का सीधा-सा जवाब यह है कि छोटे राज्य होने का एहसास भी काम करता है. भारत के पड़ोसी देश भी इसी भावना के कारण विवादित सीमा को लेकर क्रोध पाले रहते हैं. यहां हम केवल (पश्चिमी) पाकिस्तान की बात नहीं कर रहे हैं. वैसे, वहां यह भी माना जाता है कि माउंटबेटन ने नेहरू के साथ साठगांठ करके रेडक्लिफ को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वे भारत के पंजाब का गुरदासपुर जिला भारत को सौंप दें. अगर यह ‘शैतानी’ न की जाती तो भारत के लिए जम्मू-कश्मीर तक सीधे पहुंचना असंभव हो जाता. मेहरबानी करके यह मत सोचिए कि मैं इसमें कोई औचित्य ढूंढ रहा हूं. ऐसी कोई बात नहीं है. हम यह मुद्दा भी सीमित रूप में उठा रहे हैं कि पुराने और बड़े राज्यों से अलग करके बनाए गए छोटे, नये राज्य आम तौर पर मन में शिकायत पाले रहते हैं. नागालैंड, मिज़ोरम, मेघालय और अरुणाचल के मन में इसी तरह के ‘अफसोस’ हैं.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


शेखर गुप्ता, https://hindi.theprint.in/opinion/why-mizoram-vs-assam-is-being-proven-wrong-for-bjps-project-of-northeast-integration/231287/


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