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न्यूज क्लिपिंग्स् | अंत्योदय योजना खतरे में - ज्यां द्रेज

अंत्योदय योजना खतरे में - ज्यां द्रेज

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published Published on Jun 22, 2015   modified Modified on Jun 22, 2015

गरीब-विरोधी होने की धारणा से भले ही मोदी सरकार लड़ने का दावा कर रही हो, मगर अंत्योदय अन्य योजना को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली से चरणबद्ध तरीके से बाहर निकालने का फैसला कर उसने गरीबों को एक बड़ा झटका दिया है। यह कदम अन्यायपूर्ण और अवैध है।

 


अंत्योदय योजना के तहत गांवों के अत्यधिक गरीब परिवारों को 35 किलो खाद्यान्न नाममात्र की कीमतों (चावल तीन रुपये प्रति किलो और गेहूं दो रुपये प्रति किलो) पर दिए जाते हैं। हाशिये पर मौजूद कुछ वर्गों को, मसलन कमजोर जनजातीय समूह, भी सर्वोच्च न्यायालय के भोजन के अधिकार संबंधी आदेश के तहत अंत्योदय कार्ड मिला हुआ है। यह योजना न सिर्फ काफी प्रभावी है, बल्कि इससे दो करोड़ परिवार लाभान्वित हैं। कई विधवाओं, बुजुर्गों और अन्य कमजोर वर्गों के लिए यह जीवनरेखा की तरह है।

 

 


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंत्योदय योजना की निरंतरता की वकालत तो करता है, मगर यह केंद्र सरकार को इसका दायरा तय करने का अधिकार भी देता है। इसी अधिकार का लाभ उठाते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली नियंत्रण आदेश में यह प्रावधान किया गया कि किसी लाभार्थी के राज्य से बाहर जाने पर, उसकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति बेहतर होने पर, अथवा उसकी मृत्यु होने पर अगर वह अंत्योदय योजना का हिस्सा नहीं रहता, तो किसी भी नए परिवार को इस योजना से जोड़ा नहीं जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी के लिए कोई नया अंत्योदय कार्ड जारी नहीं होगा, नतीजतन एक निश्चित समय के बाद अंत्योदय परिवारों की संख्या शून्य हो जाएगी।

 

 


एक प्रशासक की नजरों से देखें, तो यह उचित कदम जान पड़ता है कि सभी सार्वजनिक जनवितरण प्रणाली कार्डधारक को एक ही वर्ग के यानी 'प्रथामिकता वाले परिवार' में शामिल किया जाए, और सभी को प्रति माह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पांच किलो रियायती खाद्यान्न दिए जाएं। हालांकि यह नजरिया भी खाद्य सुरक्षा कानून में प्रथामिकता और अंत्योदय श्रेणियों को एक-दूसरे का महत्वपूर्ण पूरक मानता है। दरअसल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत ' प्रति परिवार अधिकार' को 'प्रति व्यक्ति अधिकार' में बदला गया है। इस कानून से पहले अधिकतर राज्यों में परिवार के आधार पर 25 या 35 किलो अनाज का वितरण जनवितरण प्रणाली के तहत किया जाता था। मगर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में इसे प्रति व्यक्ति के आधार पर परिभाषित किया गया यानी प्राथमिकता वाले परिवारों में प्रति व्यक्ति पांच किलो खाद्यान्न। यह अपेक्षाकृत अधिक तार्किक और न्यायसंगत दृष्टिकोण है, लेकिन प्रति परिवार प्रावधान को प्रति व्यक्ति में बदलने से छोटे परिवारों को ज्यादा नुकसान है, खासकर विधवाओं या उन बुर्जुगों के लिए, जो अकेले रहते हैं या सिर्फ अपने जीवनसाथी के साथ रहते हैं। यह इन छोटे परिवारों में अत्यंत गरीब की रक्षा करने के इसके मूल उद्देश्य को आंशिक रूप से ही पूरा करता है। इतना ही नहीं, अंत्योदय योजना का अर्थ है, अत्यंत गरीब को विशेष सहायता देना। मसलन, जनवितरण प्रणाली के तहत उन्हें दाल और खाद्य तेल मुहैया कराना। लिहाजा किसी भी सूरत में अंत्योदय योजना का चरणबद्ध तरीके से खत्म करना सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन होगा।यह खासकर उस झारखंड में तो और गंभीर मुद्दा है, जहां आगामी एक जुलाई से इसकी शुरुआत की जा रही है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों (बीपीएल परिवार) को अभी एक रुपये प्रति किलो की दर से 35 किलो चावल देने का प्रावधान है। जिस बीपीएल परिवार के सदस्यों की संख्या सात से कम है, उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत घाटा उठाना पड़ेगा। उनके नुकसान को पाटने का एक तरीका यह होगा कि प्रति व्यक्ति पांच किलो के बदले सात किलो अनाज दिए जाएं, जैसा कि छत्तीसगढ़ में किया गया है। हालांकि झारखंड की सरकार ने इस दिशा में सकारात्मक रवैया नहीं दिखाया है। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि अंत्योदय श्रेणी का विस्तार किया जाए, ताकि कम से कम बीपीएल श्रेणी के परिवारों में होने वाली कटौती को पूरा किया जा सके। हालांकि यह विकल्प जनवितरण प्रणाली आदेश से बाहर कर दिया गया है।

 

इस आईने से देखें, तो केंद्र सरकार का अगला सुरक्षित कदम राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) से मुंह मोड़ना होगा। इसके तहत विधवाओं, बुजुर्गों और अशक्त व्यक्तियों को एक छोटी रकम मासिक पेंशन के रूप में देने का प्रावधान है। इस कार्यक्रम के हालिया मूल्यांकन काफी सकारात्मक रहा है और यह इसके विस्तार का मजबूत पक्ष भी है। बावजूद इसके केंद्र सरकार एनएसएपी में कटौती करने के पक्ष में है। अव्वल तो, वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रीय योगदान वर्ष 2006 से महज 200 रुपये प्रतिमाह पर रुका हुआ है, जो बुजुर्गों की गरीमा का अपमान है। तिस पर इस बार केंद्रीय बजट में एनएसएपी को किए गए आवंटन में कटौती भी की गई है, जिस वजह से 200 रुपये की तुच्छ राशि को बरकरार रखना भी मुश्किल हो गया है। पेंशन योजनाओं में केंद्रीय योगदान को साल दर साल घटाने से राज्य सरकारों का इन योजनाओं से छुटकारा पाना आसान होगा।

 


बहरहाल, पहले से चल रही गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं को, जो प्रभावी तरीके से काम कर रही हैं, मजबूत बनाने के बजाय केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना प्रधानमंत्री अटल पेंशन योजना शुरू की है। यह अंशदायी और काफी हद तक स्वयं वित्तपोषित होने के कारण पूर्व की योजना से अलग है। इस योजना के तहत, न्यूनतम अंशदान अवधि 20 वर्ष है, और कोई व्यक्ति, जिसकी उम्र अभी 40 वर्ष है, यदि 291 रुपये प्रति महीना की दर से 20 वर्षों तक अंशदान करेगा, तो वह 1,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन का हकदार होगा। 291 रुपये की यह राशि उसके बैंक अकांउट से स्वतः काटी जाएगी। ये प्रावधान उन लोगों को लुभा सकते हैं, जो मध्यम आय वर्ग के हैं। मगर यह उन लोगों के लिए ज्यादा काम की नहीं है, जो अर्थव्यवस्था में हाशिये पर हैं। हालांकि यह सरकार के लिए एक अच्छा सौदा जरूर है कि बिना किसी जिम्मेदारी के उसे अगले 20 वर्षों तक पेंशन अंशदान मिलता रहेगा। इसे विडंबना ही कहेंगे, कि यह उन अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर किया जा रहा है, जिन्होंने 15 वर्ष पूर्व अंत्योदय योजना की शुरुआत की थी।
 
(साभार- अमर उजाला) 

 



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