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न्यूज क्लिपिंग्स् | अब नई टेलीकॉम नीति लाने का वक्त-- राजीव चंद्रशेखर

अब नई टेलीकॉम नीति लाने का वक्त-- राजीव चंद्रशेखर

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published Published on Jul 14, 2017   modified Modified on Jul 14, 2017
देश में दूरसंचार के क्षेत्र में सुधार लागू होने का पच्चीसवां साल चल रहा है, जो अगले साल पूरा होगा। आधुनिक भारत के इतिहास में ये सुधार मील का महत्वपूर्ण पत्थर है। 1993 में ही चार प्रमुख महानगरों में निजी कंपनियों को सेल्यूलर टेलीफोनिंग के लाइसेंस दिए गए थे। यह वह समय था जब फोन कनेक्शन की वेटिंग लिस्ट 3-4 साल की होती थी और फोन से जुड़ी शब्दावली में लोकल कॉल, ट्र्ंक कॉल, लाइटनिंग कॉल जैसे जुमलों की भरमार थी। शुरुआती मोबाइल कॉल पर प्रति मिनट 16.80 रुपए तक लग जाते थे। डिजिटल इकोनॉमी के रूप में हमने उन दिनों की तुलना में लंबा रास्ता तय कर लिया है।


पच्चीस साल पहले जब से टेलीकॉम क्षेत्र को खोला गया तब से मैं इसमें भागीदार और प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं। जब तब के प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने अर्थव्यवस्था और टेलीकॉम सेक्टर को खोला तो 26 वर्षीय युवक के रूप में मैंने यह देखने के लिए कि भारत मुझे और मैं अपने देश को क्या दे सकता हूं, सिलिकॉन वैली में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के अपने कॅरिअर से छुट्‌टी ले ली। संचार क्रांति के उस मोड़ का जश्न मनाते समय उम्मीद है हम नरसिंह राव के नेतृत्व की भूमिका भी स्वीकारेंगे, जिसने सुधारों को साकार किया। पिछले पच्चीस वर्षों में टेलीकॉम क्षेत्र में ही सबसे बड़ा और बदलाव लाने वाला सुधार हुआ, जिसने देशभर में संपर्क सुविधा और लोगों की जिंदगियों को बदलकर रख दिया। यह सबकुछ निजी पूंजी से हासिल किया गया। भारतीयों के पास 1995 में 1 लाख मोबाइल थे जो 2016 के अंत में 109.95 करोड़ तक पहुंच गए थे और वॉइस कॉल दरें तो मुश्किल से एक रुपए प्रति मिनट तक गिर चुकी हैं। मुझे गर्व है कि मैंने भी इस क्रांति में कुछ भूमिका निभाई है।


सुधार के पच्चीसवें साल में इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि भविष्य की दृष्टि और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हिसाब से भी इस सेक्टर को नए दृष्टिकोण से देखना होगा। इंटरनेट तथा ब्राडबैंड तक पहुंच के मामले में बहुत कुछ करने की जरूरत है, जो सरकार के महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी मिशन के केंद्र में हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी कई नई टेक्नोलॉजी और सेवाओं पर तत्काल नीतिगत व नियामक स्तर पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
पिछले वर्षों में देश ने तीन दूरसंचार नीतियां देखी हैं- एनटीपी-1994, एनटीपी-1999 और एनटीपी-2012। जहां एनटीपी-1994 में टेलीकॉम सुधारों की कल्पना की और निजी भागीदारी का रास्ता साफ किया, प्रधानमंत्री वाजपेयी की एनडीए सरकार द्वारा जारी एनटीपी-1999 ने सेक्टर में ढांचागत सुधारों का रास्ता खोला। इससे मोबाइल उपभोक्ताओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, मोबाइल सेक्टर में कड़ी प्रतिस्पर्धा पैदा हुई और नियामक व्यवस्था में गहराई तक सुधार हुए। इसके बाद 1999 में ही ट्राई एक्ट में संशोधन हुआ। एनटीपी-2012 ने ज्यादा कुछ हासिल नहीं किया सिवाय इसके कि यूपीए सरकार के कुछ लोगों ने बिना नीलामी किए लाइसेंस दे दिए, जिसने घोटाले को जन्म दिया और इस सेक्टर में भरोसे का संकट पैदा हो गया, जिसका एक सांसद के रूप में मैंने तब विरोध किया था।


स्पष्ट है कि पिछली प्रभावी टेलीकॉम नीति (एनटीपी-1999) को भी 2018 में 19 साल हो जाएंगे। ‘इंटरनेट टाइम' में इसे असाधारण रूप से लंबी अवधि माना जाएगा। सरकार के ‘डिजिटल इंडिया' के विज़न को देखते हुए नीति पर पुनर्विचार और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रोग्राम ही शासन और देशवासियों का जीवन बदलने के प्रधानमंत्री के विज़न के केंद्र में है। नई नीति को इंटरनेट और ब्राडबैंड, जो अभी मोटेतौर पर 30 फीसदी है; नई टेक्नोलॉजी और सेवाओं के प्रवेश आदि पर गौर करते हुए ग्रामीण भारत के लिए यूनिवर्सल एक्सेस सुनिश्चित करनी चाहिए। ट्राई के पास बेहतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर की नियामक क्षमता और शक्तियां होनी चाहिए। नई नीति में 24 साल पुरानी लाइसेंस व्यवस्था की भी समीक्षा की जा सकती है, जिसे लैंडलाइन टेलीफोन के युग में सिर्फ वॉइस सेवाएं देने के हिसाब से तय किया गया था। ये मोबाइल, आईएसपी, यूनिफाइड, वीएनओ आदि को लाइसेंस देती हैं। इनकी गंभीर समीक्षा की जरूरत है, क्योंकि लीगसी टर्म्स एंड कंडिशन वृद्धि और निवेश को धीमा कर सकती हैं।


नई नीति एक तरफ तो आमतौर पर आईसीटी सेक्टर और खासतौर पर टेलीकॉम सेक्टर में समावेशी वृद्धि और टिकाऊ विकास को बढ़ावा दे सकती है और दूसरी तरफ डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी जैसे अहम राष्ट्रीय प्रोग्राम तथा सरकार व शासन में रूपांतरण के लिए अत्यावश्यक डिलीवरी मैकेनिज्म की भूमिका निभा सकती है। नीति में ब्राडबैंड के विस्तार में आ रही अड़चनों की पहचान करके उन्हें हटाने के कदम तय करने चाहिए। इसे एक नियामक ढांचा भी तैयार करना होगा जो न सिर्फ ब्राडबैंड के विस्तार में बल्कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नई टेक्नोलॉजी के लिए भी सहायक हो। नई नीति निवेश को बढ़ावा देने वाली हो। साइबर सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर उसके असर का एनटीपी-2012 में विचार नहीं किया गया था लेकिन, अब इस पर खास तवज्जो देने की जरूरत है।

सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि नीति में उपभोक्ता के डिजिटल अधिकार तय करने चाहिए जैसे प्राइवेसी, नेट न्यूट्रलिटी, सेवा की गुणवत्ता और निष्पक्ष व खुली स्पर्धा। कॉल ड्रॉप और सेवा प्रदाताओं द्वारा लोगों के डेटा के दुरुपयोग के मुद्‌दे सामने आए हैं, जिन्हें कानूनी संरक्षण जरूरी है। ये कानून ग्राहक हित में लिए रेरा जैसे कानूनों के अनुरूप होने चाहिए।


https://www.bhaskar.com/news/ABH-article-by-rajeev-chandrasekhar-over-new-telicom-policy-5645755-NOR.html


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