Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | अर्थव्यवस्था की सेहत का सवाल - संजय गुप्त

अर्थव्यवस्था की सेहत का सवाल - संजय गुप्त

Share this article Share this article
published Published on Oct 4, 2017   modified Modified on Oct 4, 2017
पूरे देश में टैक्स की एक प्रणाली के रूप में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करते समय यह आशंका व्यक्त की गई थी कि इसके चलते अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए ठहराव की स्थिति देखने को मिल सकती है। वर्तमान में ऐसा ही दिख रहा है। पिछली तिमाही में विकास दर जिस तरह 5.7 प्रतिशत ही दर्ज की गई, उससे तमाम राजनेता और कुछ अर्थशास्त्री यह कहने लगे कि अर्थव्यवस्था के हालात ठीक नहीं हैं। उनकी चिंता के कुछ उचित आधार हो सकते हैं, लेकिन महज एक तिमाही में विकास दर में गिरावट के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है और आर्थिक सुस्ती ने स्थायी रूप ले लिया है।

 

गौरतलब है कि तेज विकास के लिहाज से सात प्रतिशत की दर को ठीक-ठाक माना जाता है और भारत पिछले दो-तीन वर्षों में औसतन इसी रफ्तार से प्रगति कर रहा है। इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकते कि विकास दर में गिरावट से केंद्र सरकार के नीति-नियंता चिंतित हैं और उनकी ओर से ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाया जा सके। अर्थव्यवस्था पर जीएसटी का प्रभाव कोई नई-अनोखी बात नहीं, क्योंकि जिन भी देशों में जीएसटी जैसी व्यवस्था लागू की गई, उनमें शुरुआती कुछ महीनों में मंदी जैसे हालात सामने आए और फिर बाद में अर्थव्यवस्था को कई स्तरों पर फायदा हुआ। स्पष्ट है कि यह उम्मीद अनुचित नहीं कि चंद महीनों बाद जब जीएसटी व्यवस्था ठीक तरीके से लागू हो जाएगी और उद्योग-व्यापार जगत इसे भलीभांति समझ लेगा, तो आर्थिक तस्वीर में बुनियादी बदलाव देखने को मिलेगा।

 

किसी भी सरकार के कामकाज का एक महत्वपूर्ण पैमाना अर्थव्यवस्था की हालत होती है। अर्थव्यवस्था में थोड़ी सी भी गिरावट के संकेत दिखते ही लोग सरकार के कामकाज में मीनमेख निकालने लगते हैं और तमाम तरह के सुझाव दिए जाने लगते हैं। इसके साथ ही राजनेता और अर्थशास्त्री अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण करने लगते हैं। इस सबकी चर्चा मीडिया में होने लगती है और इस तरह जनता भी आर्थिक हालात के प्रति सजग हो जाती है। अर्थव्यवस्था में गिरावट विपक्ष को सरकार की बखिया उधेड़ने का मौका देती है। इन दिनों वह इसी मौके का लाभ उठा रहा है। इसी क्रम में वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने भी एक लेख लिखकर आर्थिक हालात की डरावनी तस्वीर खींच दी। एक अर्थशास्त्री के रूप में उन्हें आर्थिक स्थिति की समीक्षा करने का अधिकार है, लेकिन दुर्भाग्य से उनका इरादा मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ अपनी भड़ास निकालना अधिक रहा। ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि वह पूर्व वित्त मंत्री की हैसियत से अर्थव्यवस्था का कोई गंभीर विश्लेषण कर रहे हैं। उनके लेख में न तो आर्थिक हालात की बेहतरी का कोई सुझाव था और न ही मौजूदा स्थिति की कोई तर्कपूर्ण समीक्षा।

देश की आर्थिक स्थिति पर यशवंत सिन्हा का आकलन मोदी सरकार के लिए राजनीतिक तौर पर भले ही एक मसला बन गया हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अर्थव्यवस्था की सेहत एक या दो सेक्टरों से तय नहीं होती। अर्थव्यवस्था के तमाम आधार होते हैैं। उनमें समय-समय पर उतार-चढ़ाव भी दिखता रहता है। लगता है कि यशवंत सिन्हा ने यह सब देखने-समझने से इसलिए इनकार किया, क्योंकि वह जेटली को कोसना चाह रहे थे। जाहिर है कि इसके जवाब में जेटली ने भी तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए यशवंत सिन्हा को अस्सी साल में रोजगार ढूंढ़ रहे व्यक्ति की संज्ञा दी। इसके बाद सिन्हा ने फिर से तीखे बोल बोले। इस आरोप-प्रत्यारोप से तो उन उद्योगपतियों और व्यापारियों को ही बल मिला होगा, जो जीएसटी के खिलाफ खड़े हैं। ये वही उद्योगपति और व्यापारी हैं, जो नोटबंदी के फैसले का भी विरोध कर रहे थे।

 

इसमें कोई दोराय नहीं कि जीएसटी को लागू करने की तैयारियों और इससे संबंधित तंत्र के कामकाज में कुछ खामियां हैं और उसके चलते फिलहाल व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन ऐसा तो हर नई व्यवस्था को अपनाते समय होता है। चूंकि जीएसटी पर अमल में जरूरत से ज्यादा देरी हो चुकी थी, इसलिए सरकार ने इस बड़े कर सुधार को लागू करने में और विलंब करना उचित नहीं समझा। सरकार को यह पता था कि जीएसटी को जिस वर्ष भी लागू किया जाएगा, उस वर्ष परेशानियां आएंगी। अगर जीएसटी को एक साल और टाल दिया जाता तो अर्थव्यवस्था में ठहराव की स्थिति आने और लोगों को होने वाली परेशानियों से सरकार को कुछ राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता था। ध्यान रहे कि 2019 में आम चुनाव होने हैैं और उसके पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यह तो कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि चुनावी वर्ष में आर्थिक मंदी जैसे हालात बनें।

 

प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था के पेंच कसने के लिए आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन किया है। अच्छा होता कि यह काम एक-दो साल पहले ही हो जाता। प्रख्यात अर्थशास्त्री और नीति-आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय को इस परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है। वह अर्थव्यवस्था की तमाम बारीकियों से भलीभांति परिचित हैं और उन्हें यह भी अच्छे से पता है कि मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए क्या किया जाना चाहिए। चूंकि वह यह मान रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष कोई गंभीर संकट नहीं है, इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वह प्रधानमंत्री को जल्द ऐसे सुझाव देंगे, जिससे अर्थव्यवस्था को फिर से रफ्तार दी जा सके।

 

राज्य सरकारों को भी इस बात पर गौर करना चाहिए कि वे अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए क्या योगदान दे सकती हैं। कृषि और उद्योग के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास जैसे अर्थव्यवस्था के तमाम पहलू सीधे राज्यों के अधीन आते हैं। केंद्र सरकार की ओर से तो इन क्षेत्रों के संदर्भ में महज योजनाएं ही बनाई जाती हैं। उन्हें लागू तो राज्यों को ही करना होता है। ध्यान रहे कि राज्यों के रवैये के कारण भी नोटबंदी और जीएसटी जैसे ऐतिहासिक कदमों का उतना लाभ नहीं दिख रहा, जितना दिखना चाहिए था।

 

मोदी सरकार को कम से कम भाजपा के शासन वाले राज्यों को यह हिदायत देनी चाहिए कि वे अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए उठाए जा रहे उपायों के अमल में कोई हीलाहवाली न दिखाएं। इसका गहरा असर होगा, क्योंकि अब देश के आधे से अधिक राज्यों में भाजपा का शासन है। इसके साथ ही उद्योग-व्यापार जगत को आर्थिक सुस्ती के लिए सरकार को कोसते रहने अथवा मंदी का रोना रोते रहने के बजाय अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। हम न भूलें कि नोटबंदी और जीएसटी सरीखे कदम दो नंबर की अर्थव्यवस्था को समाप्त करने और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए उठाए गए। इसके पीछे सरकार की यही सोच थी कि अधिक से अधिक व्यापारिक लेन-देन नकदी रहित हो, लेकिन सच्चाई यह है कि उद्योग और व्यापार जगत का एक हिस्सा नकद लेन-देन को ही प्राथमिकता दे रहा है। यही स्थिति आम जनता की भी है। दरअसल इसी कारण ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं, जो मंदी की ओर संकेत करते हैं।

 

(लेखक दैनिक जागरण समूह के सीईओ व प्रधान संपादक हैं)


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-question-of-the-state-of-economy-1335786?utm_source=naidunia&utm_medium=navigation


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close