Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आइ एम अन्ना एंड आइएम नॉट ए पॉलिटिशियन- पुण्य प्रसून वाजपेयी

आइ एम अन्ना एंड आइएम नॉट ए पॉलिटिशियन- पुण्य प्रसून वाजपेयी

Share this article Share this article
published Published on Aug 23, 2011   modified Modified on Aug 23, 2011

आइ एम अन्ना एंड आइ एम नॉट ए पॉलिटिशियन. माथे पर मैं अन्ना हूं और छाती पर टांगे इस स्लोगन के अक्स में, अगर जन लोकपाल के घेरे में आती संसदीय राजनीति के सच को देखें, तो पहली बार जन संघर्ष उस राजनीति को ही खारिज करने पर उतारू है, जिसके आसरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 17 अगस्त को संसद में अन्ना हजारे के आंदोलन को संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा बताने से नहीं चूके. तो क्या बीते 60 बरस में पहली बार वही संसदीय राजनीति आम लोगों के निशाने पर है, जिसके आसरे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का तमगा भारत ढोता रहा. यह सवाल जनलोकपाल से न सिर्फ़ आगे जा रहा है बल्कि मंत्रियों-सांसदों के घरों के बाहर बैठ कर भजन करते अन्ना के समर्थन में उतरे लोग सवाल को खड़ा कर रहे हैं कि क्या लोकतंत्र का मतलब चुनाव के बाद पांच साल तक देश की चाबी सांसदों को सौंप देने सरीखा है. या फ़िर इस दौर में संसदीय चुनाव के तरीके ही कुछ ऐसे बना दिये गये, जिसमें शामिल होने के लिए न्यूनतम शर्त भी 10 हजार की उस सेक्यूरिटी मनी पर जा टिकी है, जिसके हिस्से में देश के 80 करोड़ लोग आ ही नहीं सकते.

मौजूदा लोकसभा में 182 सांसद ऐसे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार या अपराध के मामले दर्ज हैं. छह क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के सर्वेसर्वा भ्रष्टाचार के आरोप में फ़ंसे हुए हैं. अन्ना के आंदोलन से खड़े हुए मुद्दे इसी मोड़ पर राजनीति को अब चुनौती देने से भी नहीं चूक रहे. और यह चुनौती दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में कैसे ठहाका लगा कर लोकतंत्र पर सवालिया निशान लगा रही है, यह प्रधानमंत्री या मंत्रियों या सांसदों के घरों के घेरेबंदी के व लोग महसूस कर रहे हैं. दिल्ली को वीवीआइपी इलाका माना जाता है और इस इलाके में धरना-प्रदर्शन पर हमेशा से रोक रही है. लेकिन बड़े नेताओं के जन्मदिन के मौके पर कैसे जनसैलाब बधाई देने के लिए इसी दिल्ली में बिना किसी इजाजत के उमड़ता है. लेकिन अन्ना के एलान के बाद जब सात रेसकोर्स यानी प्रधानमंत्री के घर के बाहर 50 लोग बैठ कर भजन करने लगे, तो उन्हें तुरंत हिरासत में लिया गया और कैबिनेट मंत्री कपिल सिब्बल के घर के बाहर तो हाथ जोड़ कर सबको सन्मति दे भगवान का गायन करते 30 बुजुर्ग और महिलाओं को भी पुलिस ने तुरंत हिरासत में ले लिया. यही स्थिति देश के 15 मंत्रियों और 20 सांसदों के घर के बाहर हुई. यानी इस बार राजनीतिक दल नहीं, जनता बतायेगी कि मुद्दे क्या हैं और किन मुद्दों पर सांसदों को चुनाव में उतरने से पहले अपना रुख साफ़ करना होगा. अन्ना के अभी के तेवर और जनसैलाब के देश भर में सड़क पर उतरने से यह लग सकता है कि राजनीतिक दलों के भीतर हर सांसद इस रास्ते पर निकलेगा ही. यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भ्रष्टाचार की सियासत जिस अर्थव्यवस्था पर खड़ी है, उसे पीएम ने कोलकाता के आइआइएम में अपने भाषण में भी सही ठहराया. सिंह ने इस बात से इनकार किया कि उदारवादी अर्थव्यवस्था कहीं भी भ्रष्टाचार की वजह है. सूचना क्रांति की समूची टेक्नोलॉजी चंद कॉरपोरेट हाथों में समा गयी है.

पेट्रोल-डीजल-गैस अगर निजी हथेलियों के मुनाफ़े पर रेंगने लगे हैं, तो पावर सेक्टर के 99 फ़ीसदी प्रोजेक्ट भी निजी कंपनियों को दिये गये हैं. चुनाव लड़ कर जीतने की सोच के पीछे किसी कॉरपोरेट का हाथ अगर न हो, तो फ़िर चुनाव जीतना सपने की तरह होगा. और चुनाव जीत गये, तो देश की न्यूनतम जरत को भी मुनाफ़ा कमाने की बाजार अर्थव्यवस्था के हवाले करने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचेगा. दरअसल, अन्ना हजारे ने इसी मर्म को पकड़ा है और जन लोकपाल के सवालों का दायरा इसीलिए बड़ा होता जा रहा है. मैं अन्ना हूं की टी शर्ट पहन कर बीजेपी सांसद से सवाल कर रहे हैं कि आपका रुख जनलोकपाल को लेकर है क्या, पहले इसे बतायें. यानी जनता के मुद्दों के जरिये राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश भी इस दौर में शु हो चुकी है. लेकिन जिस मोड़ पर अन्ना हजारे राजनीतक दलों को बेचैन कर रहे हैं, सांसदों को पसोपेश में डाल चुके हैं कि उनका रुख साफ़ होना चाहिए, उस मोड़ पर एक सवाल यह भी है कि जिन जमीनी मुद्दों को लेकर अन्ना के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग जुड़ते चले जा रहे हैं, अगर इससे संसद के भीतर सांसदों की काबिलियत पर ही सवाल उठने लगे हैं, तो फ़िर चुनाव का रास्ता किसी भी राजनीतिक दल की वर्तमान स्थिति के लिए कैसे लाभदायक होगा. दिल्ली के जिस रामलीला मैदान पर 1975 में जेपी ने कहा था कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, उसी रामलीला मैदान में हजारों - हजार लोग छाती पर यह लिख कर बैठे हैं कि माइ नेम इज अन्ना एंड आइ एम नॉट ए पॉलिटिशयन.


http://www.prabhatkhabar.com/node/47430


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close