Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आक्रोश जरूरी है पर भीड़ की हिंसा शर्मनाक- कैलाश सत्यार्थी

आक्रोश जरूरी है पर भीड़ की हिंसा शर्मनाक- कैलाश सत्यार्थी

Share this article Share this article
published Published on Jul 25, 2018   modified Modified on Jul 25, 2018
देश में बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा निर्दोषों की हत्याएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले करीब डेढ़ महीने में त्रिपुरा, असम, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में ऐसी 20 हत्याएं हो चुकी हैं। सिर्फ हत्यारी भीड़ को ही नहीं, बल्कि इलाके के आम लोगों को शक था कि बच्चा चोर किडनियां बेचने, वेश्यावृत्ति कराने और शहरों में भीख मंगवाने के लिए बच्चे चुरा रहे हैं। दूसरी ओर मरने वालों का शायद सबसे बड़ा कसूर यह था कि वे गरीब थे। शरीर और कपड़ों से वे मैले-कुचैले नज़र आते थे या फिर पेट पालने के लिए भीख मांगते थे।


हमारे देश में हर घंटे में आठ बच्चे गुम हो जाते हैं, जिन्हें ट्रैफिकिंग यानी मानव दुर्व्यापार का शिकार बनाया जाता है। हर घंटे चार बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं, जबकि दो बच्चों के साथ दुष्कर्म होता है। ऐसे में पूरे देश में डर का वातावरण बना हुआ है। गुमशुदगी, ट्रैफिकिंग और दुष्कर्म के खिलाफ हमने पिछले साल 11 हजार किलोमीटर लंबी देशव्यापी भारत यात्रा आयोजित की थी। उसमें हमने लोगों की चुप्पी और उदासीनता को धिक्कारते हुए भारत को सुरक्षित बनाने के लिए ‘सुरक्षित बचपन' बनाने का आह्वान किया था। यात्रा में शामिल होने वाले 12 लाख लोगों ने, जिनमें ज्यादातर युवा थे, इस महामारी के खिलाफ लड़ने की प्रतिज्ञा की थी। तब मैंने उनकी आंखों में जबर्दस्त गुस्सा देखा था। इसलिए हमने और गुमशुदगी या दुष्कर्म से पीड़ित बच्चों के माता-पिता ने अपने भाषणों और मीडिया को दिए गए साक्षात्कारों में लोगों से अपील की थी कि वे कभी भी कानून को अपने हाथ में न लें। मुझे अंदेशा था कि अगर बाल हिंसा के खिलाफ समाज और सरकार त्वरित और सख्त कदम नहीं उठाएगी, तो लोग हिंसक हो उठेंगे। आज डर और गुस्से से बौराई भीड़ की दरिंदगी देखकर हमें गहरी शर्मिंदगी है।


हमने महाराष्ट्र के रानीपारा में मार डाले गए पांच आदिवासियों की पत्नियों, बच्चों और बूढ़ी मांओं की दिल दहला देने वाली कहानियां सुनी हैं। टेलीविजन के माध्यम से गुजरात, असम और दूसरे राज्यों में मारे गए लोगों के अनाथ बच्चों की चीत्कारें और उनके अंधेरे भविष्य की चिंताओं को भी महसूस किया है। मैं हत्यारों के बच्चों से भी उतनी ही सहानुभूति रखता हूं, क्योंकि उनमें बहुत से ऐसे हैं, जिनके पिताओं के जेल चले जाने के बाद उनकी पढ़ाई-लिखाई, सुरक्षा यहां तक कि रोजी-रोटी का सहारा भी छिन जाएगा।
मैं और बचपन बचाओ आंदोलन पिछले कई वर्षों से देश में बच्चों की गुमशुदगी के खिलाफ सड़क से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ते हुए देश को जगाने की कोशिश कर रहे हैं। 2011 तक हमारे देश में बच्चों की गुमशुदगी के आधिकारिक आंकड़े तक नहीं थे। इसके लिए कोई कानून भी नहीं था, इसलिए एफआईआर दर्ज नहीं होती थी। मां-बाप थानों में धक्के खाकर अपमानित और निराश होते रहते थे। हमने सूचना के अधिकार के तहत देश के हर जिले से ऐसी शिकायतें इकट्‌ठी कीं। फिर उन्हें लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि हर शिकायत पर एफआईआर दर्ज करके तत्काल जांच शुरू की जाए। इस कार्रवाई और सामाजिक जागरूकता के परिणामस्वरूप हर साल गुमशुदा होने वाले बच्चों की संख्या 1.20 लाख से घटकर 44 हजार रह गई है। इस सबके बावजूद हम समाज में बच्चों की सुरक्षा का भरोसा पैदा नहीं कर सकें।


मॉब लिंचिंग के मामले में देश में कई लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इन अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन, क्या सिर्फ वे ही लोग अपराधी हैं? हमने पिछले 70 वर्षों में सड़कें, इमारतें, स्कूल, अस्पताल, कारखानें, मोटर गाड़ियां और न जाने क्या-क्या बनाने में बहुत तरक्की की है। लेकिन क्या इन्हीं घरों, सड़कों, स्कूलों, बाजारों आदि में हमारे बच्चे सुरक्षित हैं? क्या देश के ज्यादातर लोग अपने बच्चों की हिफाजत के बारे में डरे हुए नहीं हैं? डर के साये में जीने वाला समाज जितनी तरक्की करता है, खुद को बचाने के लिए वह उतना ही क्रूर और हिंसक भी बनता जाता है। भारत को भय ग्रस्त बनाने की नैतिक जिम्मेदारी किसी को तो लेनी ही होगी। हिंसक भीड़ बन जाने वाले ज्यादातर लोग तरक्की के हाशिये से बाहर छोड़ दिए गए लोग होते हैं। यह समाज और सरकार की संस्थाओं की घोर विफलता नहीं तो और क्या है?

सरकार ने वाट्सएप को अफवाहें रोकने के लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही से काम करने की सलाह दी है। हर तरह की अफवाहों पर पाबंदी लगना भी जरूरी है। लेकिन, क्या महज अफवाहें ही अकेली इतनी गंभीर हालत के लिए जिम्मेदार हैं? अफवाहें कभी आग में घी का काम करती हैं, तो कभी चिंगारी का लेकिन, हिंसा की आग का ईंधन चारों तरफ फैले डर, असुरक्षा की भावना, पुलिस और न्याय व्यवस्था पर घोर अविश्वास, असहिष्णुता, सरकारी तंत्र से निराशा या उसे प्रभावित करने का दंभ और मानवीय गरिमा के लिए असम्मान जैसी चीजों से बनता है। इस ईंधन को नष्ट किए बगैर हिंसा की आग को नहीं रोका जा सकता। वह तो किसी न किसी रूप में फूटती रहेगी। बच्चों की गुमशुदगी, दुर्व्यापार और यौन उत्पीड़न के खिलाफ सामाजिक जागृति पैदा कर, अच्छा कानून और उनका क्रियान्वयन के साथ पुलिस व दूसरी सरकारी एजेंसियों को संवेदनशील, सक्रिय और जवाबदेह बनाकर, बच्चों की सुरक्षा को राजनीतिक प्राथमिकता देकर और अदालतों की कार्रवाई को गति देकर इस उन्मादी हिंसा पर काबू पाया जा सकता है।

मैं जन-आक्रोश का सम्मान करता हूं और व्यक्तिगत गुस्से का भी। इनमें समाज के नवनिर्माण की ऊर्जा और संभावनाएं होती हैं। लेकिन, इस ऊर्जा का सदुपयोग बुराइयों और अन्याय के खिलाफ लड़ने में होना चाहिए, सकारात्मक सामाजिक बदलाव में होना चाहिए, न कि हत्या और हिंसा में। ऐसे हालात में राजनीतिक दलों, नेताओं, कार्यकर्ताओं, धर्मगुरुओं और मीडिया की सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारी है कि वह आम लोगों में व्यवस्था और संस्थाओं के प्रति बढ़ रही अनास्था को रोकने के लिए जरूरी पहल करें। जब तक लगातार बढ़ रही बच्चों की असुरक्षा हमारी राजनीतिक और सामाजिक चिंता का विषय नहीं बनती, तब तक हम एक सभ्य, सुसंस्कृत और विकसित भारत नहीं बना सकते। -(लेखक के अपने विचार हैं।)

- कैलाश सत्यार्थी

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित

बाल अधिकार कार्यकर्ता
Twitter @k_satyarthi


https://www.bhaskar.com/news/kailash-satyarthi-column-on-mob-lynching-in-the-name-of-child-theft-5911205.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close