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न्यूज क्लिपिंग्स् | आदर्श ग्राम योजना की बाधाएं

आदर्श ग्राम योजना की बाधाएं

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published Published on Dec 8, 2014   modified Modified on Dec 8, 2014
प्नई दुनिया(संपादकीय),रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण क्षेत्रों की सूरत बदलने के लिए 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" के साथ एक विशेष पहल की। यह योजना कामयाब रही, तो निश्चित ही इससे भारत में ग्राम विकास का नया मॉडल सामने आएगा। लेकिन उस मंजिल तक पहुंचने की राह में कई रुकावटें हैं। इस तरफ ध्यान खुद कई सांसदों ने खींचा है। ऐसे में सवाल है कि सामाजिक समावेशन के लिए प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू हुई तीनों योजनाओं (बाकी दो अन्य योजनाएं 'भारत स्वच्छता अभियान" और 'जन धन योजना" हैं) से जो सकारात्मक माहौल बना है, क्या उसे तार्किक मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा?

'सांसद आदर्श ग्राम योजना" के साथ सबसे बड़ा मुद्दा यह सामने आया है कि इसके लिए अलग से धन का कोई प्रावधान नहीं किया गया। बल्कि सांसदों से अपेक्षा की गई है कि वे अपने लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड (एमपीलैड) का उपयोग करें। साथ ही इंदिरा आवास योजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसे ग्रामीण विकास से जुड़े कार्यक्रमों तथा ग्राम पंचायतों को उपलब्ध कोष को समन्वित करें, जिससे चुने गए गांव को विकास के लिहाज से आदर्श बनाया जा सके। उस गांव के ऐसे समग्र विकास के लिए और भी ज्यादा धन की आवश्यकता हो, तो कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत कंपनियों ने सामाजिक विकास के लिए जो धन रखा है, उसे जुटाने की कोशिश करना चाहिए। वे चाहें तो परोपकारी संस्थाओं की मदद भी ले सकते हैं।

जाहिर है, ऐसा करना आसान नहीं है। जहां तक एमपीलैड का संबंध है, तो उस पर दूसरे मंत्रालयों की भी निगाहें हैं। मसलन, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने सांसदों से इस धन से घरों और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय एवं कचरा प्रबंधन की परियोजनाएं बनाने को कहा है, तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने के लिए इस धन का उपयोग करने का अनुरोध किया है। इसके लिए बाकायदा सांसदों को पत्र भेजे गए हैं। इसके अलावा एक चुनौती सियासी है। सांसद आशंकित हैं कि अपनी कोशिशों से वे एक गांव को आदर्श बना देंगे, तो उससे उनके चुनाव क्षेत्र के दूसरे सैकड़ों गांवों में ईर्ष्या का भाव पैदा होगा, जिसकी कीमत उन्हें चुनाव के वक्त चुकानी पड़ सकती है।

फिर गांवों के चयन की कसौटी का भी प्रश्न है। भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने जब एक गांव का चयन किया, तो आलोचना हुई कि कानपुर से सिर्फ तकरीबन 15 किलोमीटर दूर स्थित ऊंची इमारतों वाले और तेजी से शहर का रूप लेते गांव का वे और क्या विकास करेंगे? बहरहाल, ये मुद्दे भी अहम हैं, परंतु धन की उपलब्धता से जुड़ा मसला निर्णायक महत्व का है। प्रधानमंत्री से अपेक्षा है कि वे इस पर ध्यान देंगे। व्यावहारिक दिक्कतें दूर ना हुईं तो उनकी इस प्रिय योजना की सफलता संदिग्ध हो जाएगी। अत: आशा है, वे शीघ्र हस्तक्षेप कर ग्रामीण विकास के अपने सपने को साकार करने का रास्ता सुगम बनाएंगे।


http://naidunia.jagran.com/editorial/sampadikya-obstacles-of-model-village-scheme-250615
 

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