Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आधार' मतलब पारदर्शिता और निगरानी-- रामसेवक शर्मा

आधार' मतलब पारदर्शिता और निगरानी-- रामसेवक शर्मा

Share this article Share this article
published Published on Mar 15, 2016   modified Modified on Mar 15, 2016
बात केरोसीन की हो या रसोई गैस की या फिर उर्वरक की. अमूमन जरूरतमंदों को समय पर नहीं मिलती हैं. मजबूरन बिचौलियों से तय मूल्य से ज्यादा अदा कर इसे खरीदना पड़ता है. यह भ्रष्टाचार के साथ एक तरह से देश की अर्थव्यवस्था पर डाका है, लेकिन सरकार ने 'आधार' आधारित डीबीटी अनुदानों के जरिये इस पर काफी हद तक रोक लगायी है.

बिचौलियों की भूमिका समाप्त की है. रसोई गैस इसका सबसे सफल उदाहरण है, ताे क्या एक नागरिक के नाते आप नहीं चाहेंगे कि 'आधार' आधारित डीबीटी योजना सफल हो. अब जब लोकसभा में 'आधार' विधेयक 2016 पारित हो चुका है, तो उम्मीदें और बढ़ी हैं. तो आइए जानें, 'आधार' को और इसके लाभ को.

लोकसभा ने शुक्रवार को 'आधार' वित्तीय और अन्य सहायिकियों, प्रसुविधाओं और सेवाओं का लक्षित परिदान विधेयक 2016 पारित कर दिया. इसका लक्ष्य लक्षित सरकारी अनुदानों के लिए आधार के उपयोग को पुख्ता करना है. सरकार ने स्पष्ट किया कि इसका एकमात्र उद्देश्य आम लोगों, गरीबों तक कल्याण योजनाओं का लाभ पहुंचाना है और इसमें कोई छिपी हुई मंशा नहीं है. इस बात पर व्यापक सहमति है कि लाभों का सीधा हस्तांतरण (डीबीटी) ही कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का रास्ता है.

एक तरफ केंद्र ने रसोई गैस में सब्सिडी में सीधे हस्तांतरण को सफलतापूर्वक लागू किया है, वहीं उर्वरक सब्सिडी के लिए भी इसे लागू करने का निर्णय लिया गया है. अनेक राज्यों ने भी अपने कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए डीबीटी का सराहा लिया है. हाल में उत्तर प्रदेश ने बीज वितरण में डीबीटी लागू किया है.

अधिकतर मामलों में, लाभार्थियों को अनुदान हस्तांतरित करने के लिए 'आधार' का उपयोग हो रहा है. और, यह सही भी है. लेकिन ऐसे भी मामले हैं, जहां बिना 'आधार' के डीबीटी को लागू किया जा रहा है. शायद ऐसी धारणा हो कि 'आधार' के लिए डीबीटी जरूरी नहीं है, और लाभों को लाभार्थी के खाते में सीधे भेजने का कोई भी तरीका सही हो सकता है. यह एक भ्रामक समझ है.

डीबीटी के सफल मॉडल के लिए सेवा देने के दो प्लेटफॉर्मों का पूर्ण एकीकरण आवश्यक है- कल्याणकारी योजनाएं और बैंकिंग सेवाएं. यह एकीकरण या तो दोनों को आपस में सीधे जोड़ कर, या इन्हें एक प्लेटफॉर्म से संबद्ध कर (अप्रत्यक्ष जुड़ाव से) किया जा सकता है.

सीधे जोड़ने की प्रक्रिया में राशि के हस्तांतरण के लिए लाभार्थी से जुड़ी सूचनाओं में बैंक खाते का विवरण होना आवश्यक है. लागू करने की दृष्टि से यह आसान प्रतीत होता है. लेकिन अनेक डिलिवरी डोमेंस होने की वजह से यह उलझाव भरा भी हो सकता है.

लाभार्थियों की संख्या लाखों में होने के कारण दो मुख्य चुनौतियां हमारे सामने हैं- दोहराव और छलावे को हटाना, और लाभार्थी तक बिना किसी परेशानी के हस्तांतरण को पहुंचाना. देश में 'आधार' के सिवा और कोई पहचान प्रणाली नहीं है, जो विशिष्टता को सुनिश्चित कर सके. इन चुनौतियों का समाधान कर सकनेवाली एकमात्र पहचान 'आधार' है.

मान लें कि राम कुमार तोमर नामक एक व्यक्ति को तीन अनुदान मिलते हैं- रसोई गैस, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना. 'आधार' के बिना उसे तीनों तंत्रों को अपने बैंक खाते का विवरण देना है. बैंक खाता का विवरण जमा करनेवाले बेनेफिट सिस्टम में परेशानी यह है कि बिचौलिये तंत्र के साथ खेलना शुरू कर देते हैं- पैसा किसी दूसरे के खाते में जमा होता है.

लेकिन, जब वह आधार से जुड़े खाते का प्रयोग करता है, तो अनुदान देनेवाली सभी प्रणालियां उसके 'आधार' को वित्तीय पता के रूप में प्रयुक्त कर पैसा हस्तांतरित कर सकती हैं तथा नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया राष्ट्रीय भुगतान स्विच के तौर पर सही लाभार्थी को धन का हस्तांतरण कर सकता है. लाभार्थी को किसी बेनेफिसयरी सिस्टम के साथ अपना खाता साझा करने की जरूरत नहीं होगी. रसोई गैस के अनुदान के मामले में बड़े स्तर पर ऐसा ही किया जा रहा है.

'आधार'-आधारित साझा पहचान प्लेटफॉर्म दोहराव और फर्जीवाड़े का ध्यान रखता है तथा लाभार्थी के लिए एक आसान और सरल तरीका भी मुहैया कराता है. यह पहचान सभी प्रणालियों के लिए समान भाषा बन जाती है.

चूंकि विभिन्न सरकारी विभाग अपने डेटाबेस में आधार का संचयन फर्जीवाड़ा और दोहराव को रोकने के लिए कर रहे हैं, इसलिए बैंक खातों के विवरण के अलग डेटाबेस रखने की कोई जरूर नहीं है. खाते के विवरणों को रखना उलझाव भरा हो सकता है, क्योंकि अलग-अलग लाभार्थियों के अलग-अलग बैंकों में खाते हो सकते हैं और संबद्ध विभाग को इस डेटा के लिए अलग-अलग बैंकों से संपर्क रखना पड़ सकता है.

डेटा को दर्ज करने में गलतियों की संभावना भी बहुत अधिक है, क्योंकि इसमें अनेक अंक और अक्षर होते हैं. अगर कोई गलती हो जाती है, तो उसे सुधारने की जिम्मेवारी लाभार्थी पर आ जाती है. और हम जानते हैं कि इसमें बहुत अधिक समय लगता है. लेकिन आधार प्लेटफॉर्म के प्रयोग से डेटा तैयार करने में गलतियों की आशंका बहुत कम है, क्योंकि आधार संख्या प्रणाली में चेक डिजिट का तरीका अपनाया जाता है.

'आधार'--आधारित डीबीटी अनुदानों के बेहतर वितरण को सुनिश्चित करता है. अगर कोई निवासी रसोई गैस और केरोसीन दोनों पर अनुदान पाता है, तो सरकार जरूरत के अनुसार किसी एक को बंद या दोनों को चालू रख सकती है.

इसी तरह, यदि किसी को दो भिन्न योजनाओं के अंतर्गत छात्रवृत्ति मिल रही हो- उदाहरण के लिए, एक अल्पसंख्यक योजना में और दूसरी मेरिट-कम-मींस कार्यक्रम के तहत- तो इस संबंध में उचित कदम उठाये जा सकते हैं. 'आधार' पारदर्शिता और निगरानी की सुविधा भी प्रदान करता है. सरकार से बैंक और बैंक से लाभार्थी तक पैसे पहुंचने तथा निकासी की प्रक्रिया को ऑडिटर डिजिटल सुविधाओं से जान सकता है. अगर यह लिंक खातों में नहीं रहे, तो संबंधित कोष के पूरे उपयोग को जान पाना मुश्किल होगा.

कुछ साल पहले राजस्थान के कोटकासिम में किरासन तेल के अनुदान का वितरण असफल रहा था, क्योंकि वहां कोई समान सूचक नहीं था. इसलिए, अच्छा यह है कि कोई भी डीबीटी तंत्र तैयारी के साथ लागू किया जाना चाहिए, न कि जल्दबाजी में जिससे कि बाद में सारा दोष डीबीटी पर ही थोप दिया जाये.

पिछले वर्ष की आर्थिक समीक्षा और बजट में वित्तीय विवेक को बेहतर करने और डेलिवरी सिस्टम को सक्षम बनाने के लिए जैम- जनधन, आधार और मोबाइल- का उल्लेख था. शक्तिशाली जैम की यह त्रिमूर्ति अपने प्रभाव में बदलाव का कारक बन सकती है. ऐसा होने के लिए लिए तीनों तत्वों का सही इस्तेमाल बहुत महत्वपूर्ण है.

जल्दबाजी में कदम उठाने से बहुत कुछ हासिल नहीं हो सकता है. अगर इसमें पहले ही समझौता कर लिया गया, तो प्रणाली को बाद में बेहतर कर पाना मुश्किल हो सकता है. इसलिए, डीबीटी को ठोस रूप देने के लिए आधार प्लेटफॉर्म को लागू करने का प्रयास कर सरकार उचित पहल कर रही है.

(यह लेख 'आधार' विधेयक -2016 के लोस में पारित होने से पूर्व लिखा गया था)

(साभार - इकोनोमिक टाइम्स )


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/738695.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close