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न्यूज क्लिपिंग्स् | आधुनिक समय की महामारी- रिदिमा कौल

आधुनिक समय की महामारी- रिदिमा कौल

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published Published on Nov 25, 2014   modified Modified on Nov 25, 2014
देश में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लाख लोगों की मौत हो जाती है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ‘गोल्डन अवर' (दुर्घटना के बाद के एक घंटे) में उन्हें चिकित्सकीय मदद नहीं मिल पाती, साथ में पेचीदा कानून की वजह से कोई उन्हें बचाने की पहल भी नहीं करता। ऐसे में उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए दिशा-निर्देश अच्छा कदम साबित हो सकते हैं।

मारे देश में जहां सड़क दुर्घटना में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है, वहां कानून का दुर्घटनाग्रस्तों को बचाने वालों के पक्ष में होना जरूरी है। हाल में उच्चतम न्यायालय ने नये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इनमें स्पष्ट रूप से इसका जिक्र किया गया है कि दुर्घटनाग्रस्त लोगों के मददगारों को कानून के जाल में न उलझाया जाए। दिशा-निर्देशों में यह उम्मीद की गई है कि चिकित्सा विशेषज्ञ आगे आएंगे और दुर्घटना के शिकार लोगों की जान बचाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करेंगे।

दुर्घटना में हर साल मरते हैं लाखों लोग
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, सड़क दुर्घटना में प्रतिदिन 3,380 भारतीयों की जान चली जाती है। पिछले एक दशक में सड़क दुर्घटना में 11.32 लाख भारतीयों की मौत हो चुकी है और 53 लाख या तो गंभीर रूप से घायल हुए अथवा विकलांग हो गए। सिर्फ दिल्ली की बात करें तो सड़क दुर्घटना में प्रतिदिन पांच लोग मर जाते हैं और सैकड़ों लोगों की हड्डियां टूट जाती हैं।

सिर की चोट होती है घातक
सड़क दुर्घटना भारत में होने वाली मौतों में एक सबसे बड़ा कारण के रूप में उभर कर सामने आई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे ‘आधुनिक समय की महामारी' का नाम देना शुरू कर दिया है। चिकित्सकीय संदर्भ में ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (टीबीआई) को ज्यादातर केसों में घातक माना जाता है। ये ऐसे पीड़ित होते हैं, जिन्हें जीवित रहने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। जो बच जाते हैं, उनमें से अधिकतर वे लोग होते हैं, जिनकी गर्दन या कमर के नीचे का पूरा हिस्सा हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो जाता है। यह भी एक तथ्य है कि सड़क दुर्घटना के शिकार ऐसे लोग, जिनके सिर में चोट आई होती है, उनमें से 50 फीसदी लोग पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाते। यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि सड़क दुर्घटना के शिकार हर छह लोगों में से एक व्यक्ति की मौत सिर में चोट लगने के कारण होती है, क्योंकि उसे ‘गोल्डन अवर' में चिकित्सकीय मदद नहीं मिल पाती, जब उसके बचने की संभावना सबसे अधिक होती है।

70 फीसदी दुर्घटनाग्रस्तों के सिर में आती है चोट
भारत के सबसे बड़े स्टैंडएलोन ट्रॉमा केयर सेंटर, ऑल इंडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ट्रॉमा सेंटर में दुर्घटना के लगभग 150 केस रोज आते हैं, जिनमें से 70 फीसदी सिर में चोट के शिकार होते हैं। एम्स ट्रॉमा सेंटर के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉक्टर दीपक अग्रवाल बताते हैं, ‘दुर्घटना के शिकार लोगों में से अधिकतर लोगों के सिर में गंभीर चोटें आई होती हैं। अगर इस तरह की चोट का शिकार व्यक्ति बच भी जाता है तो इस बात की बहुत संभावना रहती है कि वह जीवन भर के लिए लकवाग्रस्त हो जाए।'

सब्जियां भी बनती हैं दुर्घटना का कारण
विशेषज्ञों के अनुसार, सड़क दुर्घटना का एक मुख्य कारण सड़क पर फेंकी गई सब्जियां हैं। दुर्घटना के शिकार लोगों में कई ऐसे होते हैं, जिनकी गाड़ी सड़क पर फेंकी गई सब्जियों के कारण फिसली होती है।

करें कानून का पालन
दुर्घटना रोकने के लिए कानून को मजबूत करने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि वाहन चालक कानून का पालन करें। क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट्स के अनुसार, एम्बुलेंस नेटवर्क का विस्तार किया जाए, खास कर राष्ट्रीय राजमार्गों पर। डॉ. सुमित राय के अनुसार, देश में हर 20-25 किलोमीटर की दूरी पर एक एम्बुलेंस और प्रत्येक 50-100 किलोमीटर पर एक ट्रॉमा केयर सुविधा की जरूरत है।

पुनर्वास केंद्र बने
एम्स के निदेशक डॉक्टर एमपी मिश्रा कहते हैं, ‘अस्पताल लाए जाने वाले कुछ मरीजों के साथ परिवार के लोग नहीं होते और उन्हें सिर में लगी चोट के कारण उस वक्त तुरंत अपने बारे में कुछ याद भी नहीं आ पाता। ऐसे मरीजों को हम अस्पताल से छुट्टी नहीं दे सकते। इसका अर्थ यह हुआ कि उनकी वजह से एक बेड भरा रहता है, जिसका इस्तेमाल हम किसी दूसरे गंभीर मरीज के इलाज के लिए कर सकते थे।'

याददाश्त खो देने वाले ऐसे मरीजों की देखभाल के लिए डॉक्टरों ने सरकार से सिफारिश की है कि उनके पुनर्वास के लिए सरकार पुनर्वास स्थापना केंद्र स्थापित करे। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. सुमित राय कहते हैं, ‘इस तरह के पुनर्वास केंद्रों में उनकी विशेष देखभाल की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके पीछे एक अहम कारण यह भी है कि अस्पताल में उन्हें दूसरे संक्रमण का भी खतरा रहता है।'

शराब करती है स्थिति गंभीर
शराब के सेवन की वजह से भी सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों में चोट की प्रकृति गंभीर हो जाती है। डॉक्टर दीपक अग्रवाल कहते हैं, ‘इलाज के दौरान यह बात सामने आई है कि जो रोगी शराब के नशे में होते हैं, उनकी हालत बिना शराब पिये मरीजों के मुकाबले ज्यादा खराब होती है।' विशेषज्ञ इस तथ्य की तरफ भी ध्यान दिलाते हैं कि सड़क दुर्घटना में पीछे की सीट पर बैठी ज्यादातर महिलाओं को गंभीर चोटें आती हैं।

एम्स के डॉक्टर एमसी मिश्रा के अनुसार, ‘एक साल में ट्रॉमा सेंटर में आने वाले दुर्घटना के शिकारों में 90 फीसदी पुरुष और 10 फीसदी महिलाएं होती हैं। यदि सिर में चोट की बात करें तो 70 फीसदी पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं होती हैं। उनमें से 50 फीसदी वे होते हैं, जिन्होंने पिछली सीट पर बैठने के दौरान हेलमेट नहीं पहना होता।'


http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gaget/article1-story-67-68-460857.html


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