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न्यूज क्लिपिंग्स् | आम आदमी और खास आदमी - नीलांजन मुखोपाध्याय

आम आदमी और खास आदमी - नीलांजन मुखोपाध्याय

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published Published on May 12, 2015   modified Modified on May 12, 2015
बांबे हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को अविलंब निलंबित करते हुए सलमान खान की जमानत अवधि पिछले दिनों बढ़ा दी। दुर्घटना के उस मामले में कुछ गरीब लोगों को न्याय पाने में लगभग तेरह साल लगे, जबकि एक अमीर और बिगड़ैल अभिनेता को जमानत हासिल करने में महज बहत्तर घंटे। सलमान लोगों की आंखों के तारे हैं, क्योंकि वह पर्दे पर ज्यादातर ऐसे आदमी की भूमिकाएं करते हैं, जो हमेशा कानून के साथ खड़ा होता है। इसके विपरीत, सितंबर, 2002 की रात को जो आदमी उस लैंडक्रूजर से कुचला गया था, उसकी कोई चमकीली सार्वजनिक छवि नहीं थी। वह एक साधारण जीवन जी रहा था, और उसकी मौत भी सामान्य तरीके से हुई। सलमान खान का प्रसंग फिर बताता है कि गरीबों के लिए न्याय का रास्ता कठिन है।

जिस रात मुंबई में वह दुर्घटना हुई, तब सलमान खान देश के एक साधारण नागरिक नहीं थे, जिसका आम तौर पर कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता। उस समय सलमान खान काले हिरण के शिकार और गैरकानूनी ढंग से हथियार रखने के मुकदमों का सामना कर रहे थे। उन्हें यह जानकारी थी कि संरक्षित वन्यजीव का शिकार जुर्म है, इसके बावजूद उन्होंने उस शिकार अभियान को अंजाम दिया था। सलमान खान के आपराधिक अतीत को देखते हुए हिट ऐंड रन मामले को इतने सामान्य तरीके से नहीं लेना चाहिए था। इसके बाद भी यह मुकदमा 13 साल तक चला।

यह मामला इतना लंबा खिंचा, तो इसकी कई वजहें रहीं। इसका एक कारण तो सलमान खान की सामाजिक और आर्थिक हैसियत ही है। सत्र अदालत के फैसले को टालने की कोशिशें हुईं। अदालती कार्यवाहियों से अवगत मेरे एक मित्र का कहना था कि सलमान खान की तरफ से बड़े वकीलों को मोटी फीस इसलिए नहीं दी गई कि वे अदालत में कानूनी लड़ाई दूसरे वकीलों की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह लड़ेंगे, बल्कि उसका उद्देश्य यह था कि कोर्टरूम में दिग्गज वकीलों की मौजूदगी का वांछित प्रभाव पड़े। इसके विपरीत, लोक अभियोजकों का प्रोफाइल कमतर था। ऐसे ही मामलों में यह एहसास होता है कि न्याय व्यवस्था में ऐसा बदलाव लाने की जरूरत है, जिससे एक लेवल प्लेइंग फील्ड बने, ताकि नामचीन लोगों के बरक्स गरीबों को न्याय दिलाने में अभियोजन के सामने मुश्किलें न आएं।

सलमान खान के फिलहाल सजा से बचने के पीछे एक और वजह बताई जा रही है। याद करना चाहिए कि 26 मई, 2014 को जब नए प्रधानमंत्री शपथ ले रहे थे, तब राष्ट्रपति भवन में सलमान अपने पिता सलीम खान के साथ आमंत्रित मेहमान के तौर पर मौजूद थे। जाहिर है, उच्च स्तर से निमंत्रण मिलने पर ही सलमान शपथ ग्रहण समारोह में आए थे। वहां उनकी अगवानी बीएमडब्ल्यू के डीलर जफर सरेशवाला ने की थी, जो खुद नरेंद्र मोदी के घनघोर समर्थक हैं। उससे पहले भी जफर सरेशवाला ने गुजरात में पतंग उत्सव के दौरान सलमान खान और उनके पिता को लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उस उत्सव में सलमान खान नरेंद्र मोदी से रूबरू हुए थे। मोदी के समर्थन के कारण खुद जफरवाला की सार्वजनिक छवि भी बड़ी तेजी से और नाटकीय ढंग से ऊपर उठी है। मोदी के मुख्यमंत्री काल में उनके तीखे आलोचक रहे सरेशवाला आज उनके पक्ष में अभियान चलाने वाले सबसे प्रभावशाली मुस्लिम शख्सियत बताए जाते हैं। मोदी से नजदीकी का उनको फायदा यह हुआ कि उन्हें बीएमडब्ल्यू के शोरूम के लिए अहमदाबाद के बहुत महत्वपूर्ण इलाके में जमीन मिली।

इस बीच सलमान और उनके पिता से सरेशवाला के संबंध जारी रहे। जिस समय सलमान अदालतों में हाजिरी दे रहे थे और याचिकाएं डाल रहे थे, तब सरेशवाला एक तरह से सलमान और उसके परिवार के शुभचिंतक बन गए थे। उन्होंने सलमान के इस मुकदमे को राजनीतिक रंग देने की भी कोशिश की। आठ मई को सरेशवाला ने ट्वीट किया कि मैं और सलमान खान, दोनों राजनीतिक उत्पीड़न के भुक्तभोगी हैं, क्योंकि हम दोनों यूपीए सरकार में इसके शिकार हुए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने सलमान खान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (ए) के बजाय धारा 304-॥ के तहत मामला दर्ज किया था।

सलमान के खिलाफ मामला पहले 304 (ए) (लापरवाही से हुई मौत, जिसमें दो साल की कैद की सजा होती है) के तहत दर्ज हुआ था, जबकि बाद में मुकदमा धारा 304-॥ के तहत दर्ज हुआ (गैर इरादतन हत्या, जो हत्या के बराबर का जुर्म नहीं है, और जिसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है)। मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा हिट ऐंड रन केस में आरोपपत्र बदलने के खिलाफ सलमान खान ने 2002-03 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। सरेशवाला ने ट्वीट किया है कि पिछली यूपीए सरकार के दबाव में सलमान के खिलाफ आरोपपत्र बदले गए। लेकिन यह आरोप लगाते हुए सरेशवाला भूल गए कि 2003 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी। उस समय शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि मजिस्ट्रेट कोर्ट यह तय कर सकता है कि भारतीय दंड संहिता के तहत किसी के खिलाफ धारा 304-॥ लगाई जाए या नहीं।

इस प्रसंग से यह संदेश देने का अवसर, दुर्योग से, खो गया कि देश में हर नागरिक के साथ समान व्यवहार होता है। जिस देश में हर सरकार गरीबों को हक दिलाने का वायदा करती है, उस देश में यह एक विडंबना है। सलमान खान की रिलीज हुई ज्यादातर फिल्में इसका सुबूत हैं कि देश में कुछ गड़बड़ है। ऐसे में, अपराध करने के बावजूद उनके समर्थन में माहौल बनाना न सिर्फ इस गड़बड़ी का उदाहरण है, बल्कि इसका असर भविष्य में उनकी छवि पर पड़े, तो आश्चर्य नहीं।

-वरिष्ठ पत्रकार, और नरेंद्र मोदी- द मैन, द टाइम्स के लेखक


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/common-man-and-celebraties-hindi/


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