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न्यूज क्लिपिंग्स् | आर्थिक मोर्चे पर बदले नहीं हालात - डॉ. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक मोर्चे पर बदले नहीं हालात - डॉ. भरत झुनझुनवाला

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published Published on May 12, 2015   modified Modified on May 12, 2015
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का एक वर्ष पूरा होने को है, लेकिन अर्थव्यवस्था पूर्ववत शिथिल पड़ी हुई है। दुकानदारों की मानें तो बिक्री में 20 फीसदी की गिरावट आई है। प्रॉपर्टी डीलरों के अनुसार मोदी सरकार के आने के बाद दाम तीस प्रतिशत टूटे हैं। आश्चर्य है। आश्चर्य का कारण यह है कि शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार में निश्चित रूप से कमी आई है। स्पेक्ट्रम तथा कोयले के ब्लॉकों की ई-नीलामी से सरकार को अप्रत्याशित राजस्व प्राप्त हुआ है। अत: विकास दर में वृद्धि होनी चाहिए थी।

विकास एक सहज प्रक्रिया है, जैसे बच्चे का वजन सहज ही बढ़ता है। दाल-रोटी मिलती रहे तो बच्चा स्वयं बड़ा होता रहता है, परंतु यदि बच्चे के भोजन का रिसाव हो जाए तो उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसी प्रकार आर्थिक विकास भी सहज ही होता है। लोग कुएं खोदते हैं और सिंचाई करते हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था से पूंजी का रिसाव हो तो विकास अवरुद्ध हो जाता है। जैसे खलिहान से अनाज चोरी हो जाए तो किसान कुआं नहीं खोद पाता है। संप्रग सरकार के कार्यकाल में यह रिसाव भ्रष्टाचार के माध्यम से हो रहा था। कोयले के ब्लॉकों की बिक्री से जो रकम सरकार के खजाने में जानी चाहिए थी, वह नेताओं की तिजोरी में जा रही थी। यहां से यह रकम विदेशों में भेजी जा रही थी। इस रिसाव के कारण हमारी विकास दर न्यून बनी हुई थी।

मोदी के नेतृत्व में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार में निश्चित रूप से कमी आई है। संप्रग सरकार ने रिलायंस इंडस्ट्रीज को कृष्णा गोदावरी बेसिन की नेचुरल गैस का 14 रुपया प्रति यूनिट का दाम देने का प्रस्ताव रखा था। मोदी ने इसे घटाकर मात्र 5 रुपया कर दिया है। कोयले के ब्लॉकों तथा स्पेक्ट्रम की ई-नीलामी से सरकार को भारी मात्रा में राजस्व मिला है। बाहुबली उद्यमियों के शिकंजे से सरकार बाहर आ गई है। लेकिन सरकार की नीतियां इन्हीं उद्यमियों के आका वर्ल्ड बैंक द्वारा निर्धारित होने से आर्थिक विकास फिर भी अवरुद्ध है। मोदी सरकार 'वाशिंगटन सहमति" पर चल रही है। विश्व बैंक द्वारा सुझाई गई इस नीति के अनुसार सरकार को अपने राजस्व का उपयोग रक्षा आदि जरूरी खर्चों तक सीमित रखना चाहिए। निवेश पूरी तरह निजी उद्यमियों पर छोड़ देना चाहिए। सरकार के खर्च कम होने से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और वे फैक्ट्रियां लगाएंगे। उत्पादन बढ़ेगा। रोजगार बढ़ेगा। चौतरफा खुशहाली स्थापित होगी।

मोदी ने इस फॉर्मूले को बखूबी लागू किया है। सरकारी खर्चों पर शिकंजा कसा जा रहा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन के अनुसार वर्ष 2015-16 में सरकार के पूंजी खर्च पूर्ववत रहने का अनुमान है। सरकार के बजट में निवेश नदारद है। अप्रवासियों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने को मोदी लगातार रोड शो कर रहे हैं, परंतु सब फेल है।

इसका कारण यह है कि आम आदमी की हालत खस्ता है। उसके बच्चे के लिए रोजगार नहीं है। मोदी का प्रेम बड़ी तथा आधुनिक कंपनियों के प्रति ज्यादा है, जैसा कि 'मेक इन इंडिया" में दिखता है। ये कंपनियां ही आम आदमी के रोजगार की भक्षक हैं। आम आदमी के हाथ में क्रयशक्ति नहीं है। बाजार में मांग नहीं है। उद्यमी निवेश नहीं करना चाहते और बैंक उन्हें लोन नहीं देना चाहते। घर में चावल-दाल न हो तो प्रेशर कुकर में निवेश निरर्थक होता है। इसी प्रकार मांग के अभाव में निवेश नहीं हो रहा है और मोदी फेल हैं।

अमीर देशों के लिए 'वाशिंगटन सहमति" कुछ सफल हो सकती है। उनके पास आय अधिक तथा जनसंख्या कम है। बड़ी कंपनियों के द्वारा किए जा रहे रोजगार के भक्षण की भरपाई वे बेरोजगारी भत्ता देकर कर सकते हैं। लेकिन भारत जैसे कम आय और अधिक जनसंख्या वाले देश के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता है। एक उद्यमी दस बेरोजगार कर्मचारियों के बच्चों को वजीफा दे सकता है, परंतु दस हजार बच्चों को वजीफा देना उसके लिए संभव नहीं होगा। मोदी के ड्रीम प्रोजेक्टों में भी आम आदमी के लिए कुछ नहीं है। स्मार्ट सिटी तथा बुलेट ट्रेन से अपर मिडिल क्लास का कुछ भला हो जाए तो भी इनमें आम आदमी के लिए कुछ नहीं है। जमीनी अर्थव्यवस्था में मांग का अभाव है।

इस प्रकार मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष को गंवा दिया है। वह अटल बिहारी वाजपेयी के पदचिह्नों पर चल रहे हैं। वाजपेयी की नीतियों में भी आम आदमी के लिए कुछ नहीं था। स्वर्णिम चतुर्भुज हाईवे, परमाणु विस्फोट तथा कारगिल विजय के बावजूद जनता ने उन्हें नकार दिया था। उनके कार्यकाल में मनरेगा, किसानों की कर्ज माफी और भूमि अधिग्रहण कानून तथा फॉरेस्ट राइट्स एक्ट जैसे एक भी कदम नहीं उठाए गए थे। वर्ल्ड बैंक का अनुसरण करने वाले सलाहकारों के द्वारा परोसे गए फर्जी आंकड़ों को वह जनता के सामने प्रस्तुत करते रहे और सत्ता गंवा दी। मोदी भी आम आदमी को झूठी सांत्वना दे रहे हैं, जैसे स्वॉयल हेल्थ कार्ड तथा जन-धन योजना से। आम आदमी की आय बढ़ाने के लिए इनके पास कोई भी स्कीम नहीं है।

मोदी को गियर चेंज करना चाहिए, अन्यथा वह बाकी चार वर्ष भी गंवाएंगे। वाजपेयी की तरह अच्छे भाषण देने से जमीनी परिस्थिति नहीं बदलती है। मोदी को आम आदमी के लिए लाभदायक बुनियादी संरचना में निवेश

बढ़ाना चाहिए। बुलेट ट्रेन के स्थान पर राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में अनारक्षित डब्बे लगाने चाहिए। नदियों को जल मार्ग में बदलने के स्थान पर सड़क पर साईकिल चलाने को अलग लेन बनाना चाहिए। दिल्ली के संभ्रांत क्षेत्रों में सफाई के स्थान पर झुग्गियों में सड़क, नाली तथा पीने के पानी की व्यवस्था पर जोर देना चाहिए। ऐसा करने से आम आदमी की आय में वृद्धि होगी। दूसरे, निवेश के सभी प्रस्तावों का रोजगार ऑडिट कराना चाहिए। आधुनिक टेक्सटाइल मिल को लगवाकर लाखों जुलाहों को बेरोजगार नहीं बनाना चाहिए। आटोमैटिक सुल्जर लूम जैसी रोजगार भक्षक मशीनों पर टैक्स लगाकर रोजगार सृजन करने वाले उद्योगों को सबसिडी देनी चाहिए। वर्ल्ड बैंक की गलत नीतियों को ईमानदारी से लागू करने से मोदी सफल नहीं होंगे।

-लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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