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न्यूज क्लिपिंग्स् | आशियाने ही नहीं, उम्मीदें भी लगीं दरकने

आशियाने ही नहीं, उम्मीदें भी लगीं दरकने

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published Published on Jul 19, 2010   modified Modified on Jul 19, 2010

संगरूर-बाढ़ का पानी बेशक उतरने लगा हो, लेकिन खौफ व दर्द अब भी इनकी आंखों के आंसू सूखने नहीं दे रहा। जान बच गई बस यही काफी है। पानी ने जिंदगी की जो रफ्तार एकाएक रोक दी, वह कब रवानी पकड़ेगी क्या मालूम। अभी तो यह चिंता साल रही है कि कहीं फिर आसमान रूठा तो रही सही कसर पूरी हो जाएगी। लोग कभी अपने घरों की दरारों को देखते हैं तो कभी 'बादलों' की ओर। आसमान ही नहीं, अपने नेता बादलों यानी सीएम व डिप्टी सीएम की ओर भी। आसमान के बादलों से न बरसने की दुआ मांगते हैं और नेता बादलों से बरसने की।

संगरूर जिले के सलेमगढ़, मकरोड़ व मूनक इलाकों में बेशक बाढ़ का पानी अब कम होने लगा है, पर परेशानियां कम होती दिखाई नहीं दे रहीं। लोग घरों को आना-जाना शुरू तो कर दिए हैं, लेकिन सड़कें टूट चुकी हैं। बाढ़ की चपेट में आई फसलें तो नष्ट हो ही चुकी हैं। अब जैसे जैसे धूप तेज होती है, घरों की दीवारों में भी धीरे-धीरे दरारें आने लगीं हैं। लोगों की रोजी-रोटी यह फसलें ही हैं, जो चौपट हो गईं। मूनक के कई लोगों का कहना है कि उन्होंने ऐसी तबाही पहले कभी नहीं देखी। गुरदयाल सिंह के मुताबिक फसल ही नहीं, खेत भी बाढ़ लील गई।

गांवों का मंजर कुछ ऐसा है कि हर तरफ अजीब सी खामोशी दिखाई देती है। बच्चे खेलते नजर नहीं आते। मकरोड़ के बच्चे रंजीत, दिवेश कहते हैं- 'अस्सी जित्थे खेडदे सी उत्थी मी पै गया। घर विच ही रहंदे हां। टीबी वी नीं वेख सकदे, बिजली कित्थों लयाइए?' सलेमगढ़ का जब दौरा किया गया तो पाया कि प्रभावित लोगों के सिर पर बची छत भी गिरने की कगार पर पहुंच चुकी है। गांव के महेंद्र सिंह के हालात तो ऐसे हैं कि उनका आशियाना कभी भी ध्वस्त हो सकता है और वह रिश्तेदारों के यहां रह रहा है।

बलविंदर सिंह के हालात भी काफी खराब हो चुके हैं। उसकी 18 किले जमीन बाढ़ के पानी की चपेट में आ गई है और घर की चारदिवारी गिर चुकी है। यही नहीं, बाढ़ का कहर ऐसा रहा कि अब घर की जमीन भी खिसकने लगी है, जिसको लेकर बलविंदर सिंह का परिवार काफी चिंतित है। उसके पुत्र सुखपाल का कहना है कि 1993 के बाद इस तरह की भयानक बाढ़ आई है। भगत सिंह की 23 किले जमीन खराब हो चुकी है और घर की भी चारदिवारी गिर चुकी थी।

सहमे लोग अब आसमान में जब बादल देखते हैं तो सिहर उठते हैं। दुआ करते हैं कि रब्बा हुण ना बरसीं। वहीं दूसरे बादलों से जख्मों पर मरहम की उम्मीद भी लगाए हुए हैं। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने रविवार को प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा देने की घोषणा करके थोड़ी राहत जरूर दी है, लेकिन नाउम्मीदी के बादलों ने लोगों को घेर रखा है। सलेमगढ़ के सुखपाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री का दौरा मात्र खानापूर्ति था, क्योंकि उन्होंने गांवों में आकर आम जनता की कोई सार नहीं ली।

मुआवजे के रूप में पांच हजार रुपये मिलना किसानों को नाकाफी लग रहा है। अगर किसानों की मानें तो सरकार ऐसा कर उनके साथ भद्दा मजाक कर रही है। किसान जोरा सिंह के अनुसार अगर अभी तक फसल पर हुए खर्च की बात की जाए, तो हालिया समय तक भी वह फसल पर 10 से 15 हजार रुपये खर्च कर चुके हैं और अब उनकी फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। सरकार को चाहिए कि वह किसानों के हितों की तरफ देखकर ही ठोस निर्णय ले।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_6579964.html


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