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न्यूज क्लिपिंग्स् | इंजीनियरों से हारे किसानों ने खुद ही बना डाला अस्थाई बंध

इंजीनियरों से हारे किसानों ने खुद ही बना डाला अस्थाई बंध

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published Published on Oct 5, 2015   modified Modified on Oct 5, 2015
विनोद सिंह, जगदलपुर (छत्‍तीसगढ़)। जल संसाधन विभाग से क्षतिग्रस्‍त सिंचाई योजना की मरम्मत की गुहार लगाकर थक चुके तोकापाल ब्लाक के रायकोट के किसानों ने खुद ही नाला में अस्थाई बंध तैयार कर एक मिसाल कायम की है। इंजीनियरों के झूठ व झूठे वादों को दरकिनार कर किसान अस्थाई बंध का निर्माण कर आज की स्थिति में हर साल खरीफ और रबी सीजन में 60 से 70 हेक्टेयर क्षेत्र में फसल की सिंचाई कर रहे हैं।

 

पिछले कुछ सालों से यह सिलसिला चल रहा है। इस साल अस्थाई बंध को मानसून काल के अंतिम दिनोें में हुई जोरदार बारिश से नुकसान पहुंचा है। किसानों का कहना है कि फसल कटाई के बाद वे अस्थाई बंध की मरम्मत कर दुबारा पानी रोकनेे लायक स्थिति में ले आएंगे। रायकोट के किसानों की सोच व मेहनत देखकर आसपास दूसरे गांव के किसान भी छोटे-छोटे नालों का पानी रोककर फसल की सिंचाई के लिए संसाधन विकसित करने में लग गए हैं।
पिछले दिनों जल संसाधन विभाग के अधीक्षण यंत्री पीके वर्मा, कार्यपालन यंत्री प्रमोद राजपूत ने खुद रायकोट जाकर क्षतिग्रस्त योजना और किसानों द्वारा अस्थाई बंध का निर्माण कर की जा रही फसल की सिंचाई के काम को देखा और सराहा भी साथ ही क्षेत्र के विभागीय इंजीनियरों को उनके झूठे दावों के लिए फटकार भी लगाई। विदित हो कि इंजीनियर पिछले छह माह से योजना को लेकर लगातार उच्चाधिकारियों को गुमराह करते आ रहे थे कि मावलीभाटा, रायकोट, तुर्रेमारका आदि तोकापाल ब्लाक क्षेत्र की अधिकांश सिंचाई योजनाओं से किसान फसल की सिंचाई के लिए भरपूर पानी ले रहे है।
रायकोट डायवर्सन योजना के समीप स्थित खेतों के मालिक किसानों ने बताया कि उनके द्वारा लंबे समय से क्षतिग्रस्त योजना के मरम्मत की मांग की जा रही है पर विभाग के कोई सुनवाई नहीं हो रही है इसलिए उन्होंने खुद की अस्थाई बंध बना लिया। किसान रामूराम, रायधर, समलू आदि ने बताया कि अस्थाई बंध बनने के बाद फसल की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल जाता है।
क्या किया किसानों ने?
किसानों ने रायकोट डायवर्सन स्कीम के वियर से लगभग 20 मीटर अपस्ट्रीम में स्थल के आसपास तथा खेतों में उपलब्ध फर्शी पत्थर से लगभग डेढ़ मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर चौड़ा पत्थर की दीवाल बनाकर पानी को बंंाई ओर एफ्लक्स बंध को काटकर सीधे नहर मंें पानी प्रवाहित किया जा रहा है। उक्त पानी से लगभग सौ हेक्टेयर क्षेत्र में किसान सिंचाई कर पा रहे हैं। रायकोट के उन्न्त कृषक डोमूराम ने किसानों की सोच की तारीफ करते हुए कहा कि जल संसाधन विभाग के एसडीओ व मैदानी इंजीनियरों की अकर्मण्यता के कारण ही विभागीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यदि विभाग थोड़ी मेहनत कर क्षतिग्रस्त योजना को सुधार देता तो किसानों को यह दिन नहीं देखना पड़ता।
कैसी है रायकोट डायवर्सन स्कीम की हालत?
रायकोट डायवर्सन योजना का निर्माण मार्च 1974 में 69 हजार रूपए की लागत से किया गया है। सरकारी रिकार्ड में इस योजना से 105 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होनें की बात कही गई है। इस योजना को कुछ सालों से विभाग की जीरों इरीगेशन स्कीम के नाम से जाना जाता है। योजना के शीर्ष कार्य के अंतर्गत वियर के बांई ओर विंगवाल क्षतिग्रस्त है। साथ ही स्काउरिंग स्लूस भी क्षतिग्रस्त है।
स्काउरिंग स्लूस एवं हेड स्लूस का राड एवं हेडस्टॉक गायब है। वियर एवं दायी ओर विंगवाल सुरक्षित है। योजना को सुधारने एक से दो लाख रूपए खर्च होने का अनुमान है पर विगत दस सालों से विभाग द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एसडीओ ओपी गुप्ता ने कहा कि उन्हेंं पदस्थ हुए आठ-नौ माह हुए हैं। उन्होंने पहली बार यहां का दौरा किया है। उपसंभाग में वाहन की सुविधा नहीं होने से योजनाओं का विजिट नहीं के बराबर हो पाता है।
इनका कहना है
कृषकों के प्रयास प्रशंसनीय है। किसान अस्थाई बंध का निर्माण कर अपने सतत प्रयास से काफी बड़े क्षेत्र में फसल की सिंचाई कर पा रहे हैं। क्षतिग्रस्त योजना को सुधारने के निर्देश दे दिए गए हैं। क्षतिग्रस्त ऐसी योजनाएं जो जीरों इरीगेशन स्कीम मानी जा रही हैं सभी को अभियान चलाकर ठीक किया जाएगा।
पीके वर्मा, अधीक्षण यंत्री इंद्रावती परियोजना मंडल

 


http://naidunia.jagran.com/special-story-farmers-lost-to-engineers-himself-into-a-temporary-bond-492715


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