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न्यूज क्लिपिंग्स् | इंटरनेट विस्फोट के लाभ-- बिभाष

इंटरनेट विस्फोट के लाभ-- बिभाष

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published Published on Oct 19, 2016   modified Modified on Oct 19, 2016
हाल ही में एक बड़ी कंपनी द्वारा मोबाइल सेवाएं प्रारंभ करने के बाद मोबाइल सिम हासिल करने के लिए लोगों की भारी भीड़ कंपनी-विशेष के काउंटरों पर जमा हो गयी है. लोग सिम पाने के लिए हर प्रकार का जुगत कर रहे हैं. कारण है बड़े ही सस्ते दर पर मोबाइल सेवाएं, खासकर इंटरनेट देने का प्लान. हालांकि, मुफ्त फोन काॅल दर भी आकर्षण का एक कारण है, लेकिन सस्ता इंटरनेट सबसे बड़ा कारण है इस मोबाइल सेवा प्रदान करनेवाली कंपनी का. ऐसा लगता है लोग भूखे हैं डाटा और इंटरनेट के. 

एक रिपोर्ट (www.internetlivestats.com) के अनुसार भारत इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाली 46.21 करोड़ जनसंख्या के साथ चीन के साथ दूसरे नंबर पर है. चीन की कुल 138 करोड़ जनसंख्या में 52.2 प्रतिशत यानी 72.14 करोड़ जनसंख्या इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. भारत के आज अनुमानित 132 करोड़ जनसंख्या में से अभी मात्र 34.8 प्रतिशत जनसंख्या ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. हाल तक दूसरे नंबर पर चल रहे और अब तीसरे नंबर पर खिसक आये अमेरिका में हालांकि कुल 28.69 करोड़ ही इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले लोग हैं, लेकिन यह जनसंख्या कुल जनसंख्या का 88.5 प्रतिशत है. कुल 201 देशों की सूची में सबसे ज्यादा डेनमार्क देश के स्वशासित फेरो आइलैंड में कुल जनसंख्या का 98.5 प्रतिशत इंटरनेट इस्तेमाल करता है. 

इंटरनेट उपभोक्ताओं की वृद्धि के मामले में भारत में स्थिति 'विस्फोटक' है. भारत में जहां गत एक वर्ष में जनसंख्या में 1.2 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है, वहीं इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों की जनसंख्या में अभूतपूर्व 30.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है. चीन में जहां गत एक वर्ष में मात्र 1.55 करोड़ नये इंटरनेट उपभोक्ता जोड़े जा सके, वहीं भारत में 10.80 करोड़ नये उपभोक्ताओं ने इंटरनेट प्रयोग करना शुरू किया. इस प्रकार अगर देखें, तो इंटरनेट भारत के जीडीपी में अभूतपूर्व योगदान देने की स्थिति में आ गया है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी वर्ल्ड डेवलपमेंट इंडिकेटर और एक वेबसाइट (www.statista.com) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में 18.31 प्रतिशत जनसंख्या इंटरनेट इस्तेमाल करती थी, जो 2021 में बढ़ कर 37.36 प्रतिशत तक जा सकती है. इन आंकड़ों के अनुसार जून 2012 में जहां 4.40 करोड़ शहर में रहनेवाले लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, गांव में यह मात्र 40 लाख था. जून 2016 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार शहरों में रहनेवाले 26.20 लाख लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे, वहीं गांव में यह जनसंख्या 1.09 करोड़ तक पहुंच चुकी थी. इंटरनेट के प्रयोग पर उपलब्ध आंकड़े यह बताते हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल के मामले में भी गांव शहरों से पीछे हैं. जून 2012 से जून 2016 के बीच शहरी उपभोक्ताओं में जहां लगभग छह गुना वृद्धि दर्ज की गयी, वहीं गांव में इंटरनेट उपभोक्ताओं में मात्र 2.75 गुना वृद्धि हुई. गांव-शहर के विभाजन के साथ लैंगिक स्तर पर भी अंतर दिखता है. अक्तूबर 2015 के आंकड़ों के अनुसार, महिला इंटरनेट उपभोक्ताओं का अनुपात मात्र 29 प्रतिशत है, बाकी 71 प्रतिशत पर मर्दों का कब्जा है. इसका मतलब यह है कि इंटरनेट विकास समावेशी नहीं है, भले हम रिकॉर्ड दर्ज कर रहे हों.

इंटरनेट के उपयोग-पैटर्न की जानकारी भी उपलब्ध है. जनवरी 2016 के आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण कोरिया की 76 प्रतिशत जनसंख्या मोबाइल सोशल मीडिया का सक्रिय उपयोग कर रही थी, जबकि भारत में यह आंकड़ा मात्र 9 प्रतिशत है. चीन में ही 42 प्रतिशत जनसंख्या सोशल मीडिया का सक्रियता से उपयोग कर रही थी. वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, 2014 में जहां 30.3 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता ऑनलाइन खरीदारी कर रहे थे, वहीं आज यह अनुपात बढ़ कर 37.3 प्रतिशत हो गया है. अनुमान है कि 2020 तक 70.7 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता इंटरनेट के माध्यम से खरीदारी कर रहे होंगे. रिटेल ई-कॉमर्स बिक्री जहां 2012 में 2.31 बिलियन डॉलर था, जो कि आज दस गुना बढ़ कर 23.39 बिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है. रिटेल ई-कॉमर्स बिक्री 2020 में बढ़ कर 79.41 हो जाने का अनुमान लगाया गया है. रिटेल मॉल मॉडल भारत में बहुत सफल नहीं रहा, लेकिन रिटेल ई-कॉमर्स में रोज नये नये खिलाड़ी अनेक तरह के उत्पादों के साथ उतर रहे हैं. सबसे बड़ी बात है कि रिटेल ई-कॉमर्स पारदर्शी परिचालन से अपनी विश्वसनीयता भी बनाता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इस दिशा में अभी भी असीम संभावनाएं हैं. 

इंटरनेट स्पीड बढ़ती हुई आकांक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए. टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, औसत अपलोड स्पीड मात्र 0.8 एमबीपीएस है और अधिकतम 2.5 एमबीपीएस जियो का है. इसी प्रकार डाउनलोड स्पीड का औसत 2.2 एमबीपीएस है और अधिकतम जियो का 6.4 एमबीपीएस है. लेकिन, ग्राहकों को फेयर यूसेज पॉलिसी के कारण इंटरनेट की अबाध स्पीड नहीं मिल पाती है.
भारत के संबंध में जितने भी आंकड़े उपलब्ध हैं, वे निजी एजेंसियों से ही प्राप्य हैं. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया या सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़े पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं. भारत के जीडीपी में इंटरनेट के योगदान पर विश्लेषणात्मक और विश्वस्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. मेकेंजी की मार्च 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट उपभोक्ताओं की लगातार वृद्धि के बाद भी इसका जीडीपी में योगदान आशानुरूप नहीं है. 2011 में इंटरनेट के माध्यम से खर्च जीडीपी का मात्र 1.6 प्रतिशत था, जबकि विकसित देशों में यह 3.4 प्रतिशत था. निजी स्तर पर इंटरनेट का उपभोग भी विकसित देशों के मुकाबले लगभग आधा था.

समुचित और समावेशी इंटरनेट का विकास देश के जीडीपी में अभूतपूर्व योगदान दे सकता है. इसके लिए देश के कोने-कोने में सस्ती, उच्च गुणवत्ता की हाइ स्पीड इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए. अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र कृषि, एसएमइ-स्वरोजगार और सेवा क्षेत्र में इंटरनेट का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/878448.html


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