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न्यूज क्लिपिंग्स् | इन नीतियों से कृषि नहीं उबरेगी

इन नीतियों से कृषि नहीं उबरेगी

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published Published on Jan 10, 2020   modified Modified on Jan 10, 2020
“नीतियों का फोकस बदलें और प्रतिबंधों से मुक्त कर किसान को अपनी बुद्धिमानी से चयन करने दें”
कृषि क्षेत्र की नीतियां बनाने में खाद्य सुरक्षा पर फोकस रहा है। यह वाजिब भी है क्योंकि देश में खाद्य वस्तुओं की कमी और आयात पर निर्भरता से निपटने के लिए हरित क्रांति इसी वजह से शुरू की गई। वाजिब कीमत पर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता हमारी नीतियों के केंद्र में रही और बाद में यह जुनून बन गई। इस तर्क के दायरे में तमाम जिंस आ गईं, यहां तक कि चीनी भी। अनाज उत्पादन पर फोकस, एमएसपी व्यवस्था और उपभोक्ता हितैषी रुख इसी नीति का हिस्सा है। लेकिन इस नीति में किसान और पर्यावरण नजरअंदाज हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई उम्मीद जगाने का प्रयास किया कि सरकार 2022 तक वास्तविक अर्थ में किसानों की आय दोगुना करना चाहती है। कृषि अर्थशास्त्रियों ने इस विचार का उपहास उड़ाया। लेकिन यह स्वागत योग्य बदलाव है क्योंकि इससे किसानों की भलाई नीतियों के केंद्र में आ गई। लेकिन कृषि मंत्रालय की कमेटी ने शुरुआती विचार में ही दो साल से ज्यादा समय लगा दिया जिससे इसे लागू करने के लिए समय बहुत कम बचा है। उसके बाद भी हाल में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। इस बीच चुनाव आ गए और तेलंगाना की ‘रायतू बंधु’ स्कीम ने नीतिनिर्धारकों का ध्यान खींचा। यह राजनीतिक फायदे के लिए तैयार हुई थी। ओडिशा ‘कालिया’ के साथ एक कदम आगे बढ़ गया, जो परिष्कृत और बेहतर स्कीम है। देश के 14.5 करोड़ किसान परिवारों को हर साल 6,000 रुपये की त्वरित मदद देने वाली योजना पीएम किसान निधि शुरू की गई।

लेकिन समय-समय पर मूल्य वृद्धि से निपटने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अभी भी अस्थायी और बिना सोचे-समझे उपाय किए जा रहे हैं। एफसीआइ के पास अनाज की भरमार है जिससे करदाताओं का पैसा बर्बाद हो रहा है। चीनी उद्योग सब्सिडी और सरकारी मदद पर चल रहा है। नारे तो बदल गए लेकिन नीतिगत उपाय वही हैं।

विजन 2020 बीत गया। अब नए तरीके से सोचने का वक्त है। किसान और जलवायु पर विचार करिए। मेरे विचार से अगले दस साल में इन दस बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः

किसानों को सभी बंधनों से मुक्त करेंः नए विचार की शुरुआत इस सिद्धांत से होनी चाहिए कि किसानों को सभी प्रतिबंधों से मुक्त करो। बीज, उर्वरक, बाजार और निर्यात से संबंधित तमाम कानूनों के तहत मंजूरियों की अनिवार्यता खत्म करो। अगर कानून के तहत प्रतिबंध नहीं है, तो किसानों को आर्थिक गतिविधियों की छूट होनी चाहिए। अस्थायी अधिसूचनाओं से भी बचना चाहिए। किसी खास तकनीक या प्रक्रिया (बीज वेरायटी, उर्वरक, बैंक लोन, इंश्योरेंस) को बढ़ावा देने वाली रियायतें खत्म की जाएं। सभी तरह की सब्सिडी मिलाकर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत दी जा सकती है। बाजार, एपीएमसी, स्टॉक लिमिट, परिवहन संबंधी बंदिशें समाप्त कर देनी चाहिए।
 
पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.  

टी. नंद कुमार, https://www.outlookhindi.com/story/agriculture-economy-2153
 

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