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न्यूज क्लिपिंग्स् | इरोम के सशस्‍त्र कानून के खिलाफ अनशन के 12 साल

इरोम के सशस्‍त्र कानून के खिलाफ अनशन के 12 साल

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published Published on Nov 5, 2012   modified Modified on Nov 5, 2012
मणिपुर में सशस्त्र कानून के खिलाफ 12 साल से अनशन कर रही इरोम शर्मिला अहिंसक प्रतिरोध की जीती जागती मिसाल हैं। इतनी लंबी भूख हड़ताल का दुनिया भर में दूसरा उदाहरण नहीं है। हाल‌ांकि सरकार ने उन्हें आत्महत्या करने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर रखा है। इंफाल के जवाहर लाल नेहरु अस्पताल का एक सीलन भरा कमरा ही उनकी जेल है। उन्हें नाक के रास्ते लगातार तरल पदार्थ दिया जाता है ताकि वह जीवित रहें।

इरोम अपने नागरिकों के 'लोकतंत्र' के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनकी मांग ह‌ै क‌ि मणिपुर सहित पूर्वोत्‍तर के सभी राज्यों में लागू 'आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्‍ट' (आफ्स्पा) हटा लिया जाए। इरोम ने जब भूख हड़ताल शुरू की थी, तब वह महज 28 साल की थीं। उस वक्त कइयों को ये लगा कि यह एक युवा का भावुकता में उठाया गया कदम है। लेकिन उन्होंने इसे गलत साबित किया और संघर्ष की राह पर अनवरत रहीं। इसीलिए आज इरोम को मणिपुर की ‘लौह महिला’ के रूप में भी जाना जाता है।

इरोम जिस ‘आफ्स्पा’ को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं, उस कानून के तहत सेना को ऐसा विशेषाधिकार प्राप्त है जिसके अंतर्गत वह संदेह के आधार पर ही बिना वारंट के किसी की भी तलाशी ले सकती है। किसी को गिरफ्तार किया जा सकता है और शक होने पर किसी पर भी गोली चलाई जा सकती है।

इरोम के संघर्ष की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई। 12 साल पहले 2 नवंबर 2000 को मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगे मलोम में इरोम शर्मिला एक शांति रैली के आयोजन के सिलसिले में बैठक कर रही थीं। उसी समय मलोम बस स्टैंड पर कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं। इसमें दस लोगों की मौत हो गई। ये लोग वहां बस का इंतजार कर रहे थे। हालांकि मणिपुर में ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी थीं लेकिन इरोम को उस घटना ने व्यथित कर दिया।

इरोम के लिए यह दमन का चरम था। वह शांति रैली निकालकर सरकार का प्रतिरोध करती रहीं थीं। लेकिन अब यह उन्हें अप्रासंगिक लगने लगा। उन्होंने इस दमन को सत्‍ता का युद्घ करार दिया और मांग की कि मणिपुर में लागू आफ्स्पा हटाया जाए। इस एक सूत्री मांग को लेकर ही उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध का नया अध्याय शुरू किया। 4 नवंबर की रात में उन्होंने आखिर बार अन्न ग्रहण किया और 5 नवंबर की सुबह से उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी।

इस भूख हड़ताल के दूसरे दिन ही इरोम को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर आत्महत्या करने का आरोप लगाते हुए धारा 309 के तहत कार्रवाई की गई और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। तब से वह लगातार न्यायिक हिरासत में हैं। जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का वह वार्ड जहां उन्हें रखा गया है, उसे जेल का रूप दे दिया गया है। वहीं उन्हें नाक से तरल पदार्थ दिया जा रहा है।

गौरतलब है कि धारा 309 के तहत इरोम शर्मिला को एक साल से ज्यादा समय तक न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता। इसलिए एक साल पूरा होते ही उन्हें रिहा कर दिया जाता है और तुरंत ही उन्हें फिर गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है ।

इरोम शर्मिला ने पिछले अगस्त में अन्ना हजारे के जन लोकपाल आंदोलन को पत्र लिखकर समर्थन दिया था। हाल ही में उन्होंने कोई भी अवॉर्ड न लेने का फैसला भी किया। पिछले सप्ताह केरल के लेखकों के एक संगठन की ओर से दिए गए एक पुरस्कार को उन्होंने विनम्रतापूर्वक लेने से मना कर दिया।

http://www.amarujala.com/page.php?c=national&n=12-years-of-passive-resistance-of-irom-sharmila-against-afspa


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