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न्यूज क्लिपिंग्स् | इरोम: कौन सुनेगा 'आयरन लेडी' की दिल की बात

इरोम: कौन सुनेगा 'आयरन लेडी' की दिल की बात

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published Published on Aug 11, 2016   modified Modified on Aug 11, 2016
यूँ तो अपने आप में हर प्रेम कहानी अनोखी होती है, लेकिन 16 साल तक भूख हड़ताल करने वाली शर्मिला की प्रेम कहानी कई मायनों में अलग है.

भारतीय मूल के ब्रितानी नागरिक डेसमंड कूटिन्हो इरोम की ज़िदंगी में ऐसे समय में आए जब वो दुनिया से अलग-थलग इम्फ़ाल के एक अस्पताल में कई सालों से बंद थीं.

शर्मिला से जुड़ी ख़बरों को सालों से कवर रहती रहीं पत्रकार चित्रा बताती हैं, "इरोम ने मुझे बताया था कि उन पर लिखी किताब 'बर्निंग ब्राइट-इरोम शर्मिला' पढ़ने के बाद डेसमंड ने उन्हें पहली बार चिट्ठी लिखी. और खतो-खिताबत का सिलसिला शुरू हो गया. बर्निंग ब्राइट में लिखा गया था कि इरोम को पुस्तकों का शौक़ है. डेसमंड उन्हें तोहफ़े में अस्पताल के पते पर किताबें भेजते."

"उस समय इरोम ज़्यादातर लोगों से कटी हुई थीं क्योंकि सरकार ने उनसे मिलने को लेकर कड़ी शर्तें लगा रखी थीं. ऐसे में जब आप सबसे कटे हैं और कोई आपका साथ दे रहा है तो ज़ाहिर सी बात है कि दोनों के बीच एक रिश्ता तो बनेगा ही."

ये तो इरोम पहले ही ज़ाहिर कर चुकी थीं कि उनकी ज़िंदगी में कोई है जिनके साथ वो पूरा जीवन बिताना चाहती हैं. लेकिन उनसे शादी करने के फ़ैसले की घोषणा ने इरोम को कटघरे में खड़ा कर दिया है.

मोमोन लाइमा उन औरतों में से एक हैं जिन्होंने 2004 में मनोरमा नाम की महिला के कथित बलात्कार के बाद मणिपुर में सेना के ख़िलाफ़ नग्न प्रदर्शन किया था.

जब साल में एक बार चंद घंटों के लिए इरोम शर्मिला जेल से छूटती थीं तो वो मोमोन और उनकी साथियों के बनाए छोटे से शामियाने में ही रहती थीं. वो ख़ुद को इरोम की माँ समान कहती हैं.

लेकिन एक ग़ैर मणिपुरी से शादी की बात उन्हें गवारा नहीं है.

मोमोन ने हमें बताया, "अगर वो मणिपुर से किसी को चुनती तो हमें आपत्ति नहीं होती. हम इस बारे में सोचते. अब तो लोग इरोम को बस यूँ ही समझ रहे हैं क्योंकि उन्होंने एक बाहरी व्यक्ति को चुना है."

ऐसा सोचने वाली मोमोन अकेली नहीं है.

मणिपुर के स्थानीय अख़बारों में भी ये ख़बर सुर्खियों में है जिसमें अलगाववादी संगठन एसयूके ने इरोम शर्मीला से कहा कि वो एक ग़ैर मणिपुरी से शादी करने के फ़ैसले पर दोबारा विचार करें.

ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या शर्मिला को अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का हक़ नहीं है.

जब नौ अगस्त को इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तोड़ी तो किसी ने उनसे पूछा, आर यू ए वूमन इन लव ?

इरोम का जवाब था, "ये मेरा हक़ है कि मैं आम इंसान की तरह ज़िंदगी बिताऊँ. और ये नेचुरल है."

जिस किताब के ज़रिए डेसमंड शर्मिला के संपर्क में आए, उसकी लेखिका दीप्ति प्रिया महरोत्रा समाज के ही रवैये पर सवाल खड़ी करती हैं.

उनका कहना है, "इरोम के नज़दीकी लोगों की अपनी चिंता हो सकती है कि इरोम ने पहले ही बहुत तकलीफ़ें झेली हैं, वो कोई ग़लत फ़ैसला न लें. लेकिन समाज किस मंच पर खड़े होकर इरोम पर सवाल उठा रहा है. मैं अपने समाज का ये बहुत बड़ा पिछड़ापन मानती हूँ कि हम हम दूसरों की निजी ज़िंदगी में दख़ल देने को अपना अधिकार समझते हैं."

मणिपुर में पिछले कुछ समय ये इनर लाइन परमिट का मुद्दा पूरी राजनीति पर छाया हुआ है. स्थानीय लोग चाहते कि उनके इलाक़े में बाहर से आए लोगों को बसने का अधिकार न हो.

ऐसे में एक मणिपुरी महिला का एक ग़ैर मणिपुरी पुरुष के साथ संबंध बड़ा मुद्दा बन गया है, ख़ासकर तब जब वो महिला इरोम शर्मिला हो.

मणिपुर के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप पंजोबम की इस पर अपनी राय है.

वो कहते हैं, "डेसमंड अचानक से इरोम की ज़िंदगी में आए. लोग भी सकते में आ गए. लोगों को उनके बारे में कुछ मालूम नहीं था. लोगों ने हमेशा उन्हें शक़ की नज़र से देखा कि क्या वो अफ़्सपा के अभियान को भंग करने तो नहीं आए. लोगों को कहीं न कहीं ये भी डर है कि अगर शर्मिला की शादी हो गई तो अभियान का क्या होगा."

प्रदीप इसे पूरे अफ़्सपा अभियान की एक बड़ी कमज़ोरी मानते हैं कि पूरी मुहिम इतने सालों तक सिर्फ़ शर्मिला पर ही टिकी हुई थी और उनके जाने की आशंका भर से ही लोग डरे हुए हैं.

उनका कहना है कि ये पूरा विवाद अफ़्सपा से जुड़े लोगों के लिए वेक अप कॉल है.

डेसमंड पिछले कुछ सालों में जब कभी इम्फ़ाल आए तो उन्हें स्थानीय लोगों का विरोध झेलना पड़ा है और वे इरोम से बिना मिले वापस लौट गए.

इन सब विवादों से दूर एक तन्हा ज़िंदगी बिताती आईं इरोम डेसमंड के साथ ज़िंदगी बिताने का फ़ैसला कर चुकी हैं

लेकिन उन्हें आइरन लेडी का दर्जा दे चुके उनके इर्द गिर्द के कई लोग अपनी 'आयरन लेडी' की दिल की बात सुनने को तैयार नहीं दिखते.

शायद इसीलिए किसी ने इरोम को केजड आइकन कहा था..मानो इरोम अपनी ही छवि का शिकार हो गई हों, छवि जो उन्होंने न ख़ुद गढ़ी और न शायद अपने लिए चाही.

अब उनकी लड़ाई दोहरी हो गई - एक लड़ाई मणिपुर के अपने लोगों के लिए और दूसरी लड़ाई अपने ही लोगों के ख़िलाफ़.


http://www.prabhatkhabar.com/news/bbc-news/story/843196.html


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