Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | उच्च शिक्षा की होड़ से पहले- चंदन श्रीवास्तव

उच्च शिक्षा की होड़ से पहले- चंदन श्रीवास्तव

Share this article Share this article
published Published on Oct 1, 2015   modified Modified on Oct 1, 2015
उच्च शिक्षा-संस्थानों में कौन कितना बेहतर है, यह निर्धारित करने के लिए सरकार ने एक देसी फ्रेमवर्क बनाया है. संस्थानों को उनकी श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर से नीचे सजाने की तरकीब आकर्षक लग सकती है और जरूरी भी. जो अभिभावक अपने होनहारों की उच्च शिक्षा पर बरसों की जमा रकम खर्च करने का फैसला लेते हैं, या फिर जो छात्र अपनी पढ़ाई के लिए सूद की ऊंची दरों पर कर्जा लेने की हिम्मत रखते हैं, उन्हें यह तरकीब जरूर अच्छी लगेगी. ग्राहक के लिए अच्छा यही है कि वह अपनी एक-एक पाई की कीमत वसूले और यह तभी हो सकता है, जब ग्राहक के पास खरीदी जानेवाली वस्तु की गुणवत्ता के बारे में पुख्ता सूचना रहे.

उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में पुख्ता सूचना देने का यही काम सरकारी फ्रेमवर्क करेगा. मुश्किल यह है कि जैसे ही आप शिक्षा को वस्तु और छात्र को ग्राहक मान लेते हैं, उच्च शिक्षा की पूरी धारणा ही उलट जाती है. उच्च शिक्षा आलोचना-शक्ति और नवोन्मेष की क्षमता के विकास-विस्तार की युक्ति नहीं रह जाती, जो हर नागरिक के लिए जरूरी और इसलिए सरकार की जिम्मेवारी है, बल्कि एक ऐसा अवसर बन जाती है, जिसमें भावी धनलाभ की आशा में कुछ पूंजीधारक जोखिम मोल लेते हुए निवेश करें.

जो भारत-प्रेमी देश को जल्दी से विश्वगुरु बनते देखना चाहते हैं, उन्हें यह तरकीब आकर्षक लगेगी. ऐसे भारत-प्रेमी समाचारों में पढ़ कर कि भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में किसी एक को भी विश्व के सर्वश्रेष्ठ 100 संस्थानों में जगह नहीं मिली है, अकसर अफसोस करते हैं.

वे तर्क देते हैं कि उच्च शिक्षा संस्थाओं की वैश्विक रैंकिंग करनेवाली संस्थाएं भेदभाव बरतती हैं. यह सच है कि टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड रैकिंग, क्वेकक्वारेली सायमंड्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग या एकेडमिक रैंकिंग ऑफ वर्ल्ड यूनिवर्सिटीज में अपनाये जानेवाले मानक ऐसे हैं कि विश्व की महज पांच फीसदी उच्च शिक्षण संस्थाएं ही उनके दायरे में आ पाती हैं.

फ्रेमवर्क के बनने और अमल में आने से भारत भी दुनिया के सामने कह सकेगा कि उच्च शिक्षा की उसकी फलां-फलां संस्था गुणवत्ता के हिसाब से श्रेष्ठ और किन्ही मायनों में विश्व की श्रेष्ठ उच्च शिक्षा संस्थाओं के समतुल्य है.

सरकार ने देसी फ्रेमवर्क बनाने के पीछे जो तीन मुख्य तर्क दिये हैं, वे वर्ल्ड रैकिंग में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के पिछड़ने की पीड़ा से उपजे हैं. मसलन, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री का यह कहना कि भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में ज्यादातर शोध अंगरेजी में ना होकर देसी भाषाओं में होते हैं, जबकि वैश्विक रेटिंग करनेवाली संस्थाएं मात्र अंगरेजी में होनेवाले शोध को ही अपने आकलन में मान्यता देती हैं.

वैसे यह तर्क लचर है, क्योंकि भारत में उच्च शिक्षा की भाषा बड़े हद तक अंगरेजी ही है. मंत्री जी का दूसरा तर्क है कि भारत में उच्च शिक्षा संस्थाओं में सामाजिक न्याय के तहत आरक्षण का नियम अपनाया जाता है, जबकि वैश्विक रेटिंग करनेवाली संस्थाएं इस बात को कोई तवज्जो नहीं देतीं. यह तर्क भी पर्याप्त नहीं है.

यूजीसी ने 2015 के सितंबर महीने में देश में प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की संख्या 225 बतायी है और इनमें किसी में आरक्षण के नियम के पालन की बाध्यता नहीं है. दूसरे, स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में दर्ज है कि उच्च शिक्षा के मामले में एससी छात्रों का सकल नामांकन प्रतिशत 15.1 प्रतिशत और एसटी छात्रों का 11 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 21.1 प्रतिशत है. ऐसे में क्यों माना जाये कि सीटों में आरक्षण को एजेंसियां मानक के तौर पर बरतें, तो भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की वैश्विक रेटिंग बेहतर होगी.

दरअसल, देश में उच्च शिक्षा की मुख्य समस्या यह नहीं है. समस्या है जरूरत की तुलना में उसकी पूर्ति का कम होना. खुद एचआरडी मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि देश में कॉलेज जाने की उम्र (18-23 वर्ष) के करीब 14 करोड़ लोग हैं.

कॉलेजों की संख्या के लिहाज से ऐसे एक लाख लोगों पर देश में औसतन 25 ही कॉलेज हैं. बिहार जैसे राज्य तो इस राष्ट्रीय औसत से भी चार गुना पीछे हैं. उच्च शिक्षा में सकल नामांकन प्रतिशत के मामले में भारत (21.1 प्रतिशत) के साथ चीन (30 प्रतिशत), जापान (55 प्रतिशत), ब्रिटेन (59 प्रतिशत) और अमेरिका (34 प्रतिशत) की तुलना में बहुत पीछे है.

अच्छा तो यही होगा कि भारत को विश्वगुरु बनाने की अपनी इच्छा में विकसित देशों से रेटिंग में होड़ लेने की जगह हम पहले जरूरत भर के कॉलेज और शोध-संस्थान ही खोल लें.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/546072.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close