Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | उच्च शिक्षा में बढ़ती खाई-- शैलेन्द्र चौहान

उच्च शिक्षा में बढ़ती खाई-- शैलेन्द्र चौहान

Share this article Share this article
published Published on Feb 8, 2016   modified Modified on Feb 8, 2016
भारत सरकार ने विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल करने वाले शिक्षार्थियों की संख्या 2030 तक बढ़ा कर तीस प्रतिशत करने का लक्ष्य तय कर रखा है। जबकि भारत में सिर्फ बारह प्रतिशत लोगों को ही विश्वविद्यालयों में प्रवेश मिल पाता है। वर्तमान में भारत में दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस लर्निंग) यानी घर बैठे पढ़ाई करने वालों की तादाद पैंतीस लाख है। चिंताजनक बात यह कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने छात्रों और अभिभावकों से उच्च शिक्षा के लिए मुक्त तथा दूरस्थ शिक्षा के पाठ्यक्रमों के चुनाव में सावधानी बरतने को कहा है। आयोग ने खुद माना है कि दूरस्थ शिक्षा संस्थानों में कई पाठ्यक्रम बिना उसकी अनुमति से संचालित हो रहे हैं और उनकी कोई मान्यता नहीं है। आॅनलाइन शिक्षा की बढ़ती लोकप्रियता के बीच आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी विश्वविद्यालय या संस्थान को अब तक आॅनलाइन कोर्स चलाने की अनुमति नहीं दी गई है। दरअसल, नियामक संस्था के अभाव और ढीले-ढाले नियम-कायदों के चलते देश में दूरस्थ शिक्षा की हालत लगातार बदतर होती जा रही है।
 
 
नियमित संस्थानों में इस अकादमिक सत्र से चयन आधारित क्रेडिट सिस्टम लागू करने की तैयारी हो रही है, लेकिन दूरस्थ शिक्षा को इससे भी अब तक अलग रखा गया है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक 25.2 फीसद आबादी ही प्राइमरी शिक्षा हासिल कर पाती है। वहीं, 15.7 माध्यमिक, 11.1 फीसद मैट्रिक तक, सिर्फ 8.6 फीसद इंटरमीडिएट (हायर सेकेंडरी) तक पहुंच पाते हैं। देश में साढ़े चार फीसद लोग ही ग्रेजुएट हैं या इससे ऊपर की शिक्षा हासिल किए हुए हैं। ब्रिटिश कौंसिल ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि साल 2025 तक पढ़ाई करने वाली उम्र के सबसे ज्यादा लोग भारत में ही होंगे। भारत सरकार ने बहुत ही महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर रखा है। असल में इसे हासिल करना मुश्किल है। इसके लिए करीब दो हजार नए विश्वविद्यालय खोलने होंगे और मौजूदा संस्थानों का काफी विस्तार करना होगा। इस खाई को पाटने का काम आॅनलाइन विश्वविद्यालय ही कर सकते हैं। भारत में जिस तेजी से सॉफ्टवेअर उद्योग बढ़ रहा है, यहां कुशल कर्मचारियों की मांग आने वाले समय में काफी बढ़ेगी। आॅनलाइन विश्वविद्यालय चलाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों की निगाहें भारत पर टिकी हुई हैं। मौजूदा हालात और लक्ष्य के बीच की इस बड़ी खाई की वजह से भारत इन कंपनियों के लिए बहुत बड़ा बाजार है। इसका मतलब साफ है, भारत में अगले दशक में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में जबर्दस्त होड़ मचनी तय है।
 
 
मैसिव ओपन आॅनलाइन कोर्स (एसओओसी) के तहत काम करने वाली कंपनियों की कोशिश यह रहेगी कि वे पूर्ण डिग्री वाली पढ़ाई मुहैया कराएं। यहां जबर्दस्त आर्थिक संभावनाएं हैं और ढेर सारे प्रतिभाशाली युवाओं को उनकी योग्यता के मुताबिक शिक्षा नहीं मिल पाती है। अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित कोसेर्रा इस क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी है। इस समय भारत में तेरह लाख छात्र कोसेर्रा से पढ़ाई कर रहे हैं। यह एक सौ चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मुफ्त में शिक्षा दिलाने का काम कर रही है और विश्व भर में 1.70 करोड़ लोग इससे जुड़े हुए हैं। यह येल, स्टैनफोर्ड, कोलंबिया और एडिनबरा विश्वविद्यालयों की पढ़ाई मुफ्त कराती है। पर उनकी बाहरी परीक्षा नहीं होती और उनकी डिग्रियां मान्यता प्राप्त नहीं होतीं। ऐसे लोगों की दुनिया में सचमुच कमी नहीं है, जो परोपकार के भाव से अपना ज्ञान और अनुभव बांटना चाहते हैं। इसलिए यदि आप किसी नेक काम के लिए पवित्र भाव से आगे बढ़ते हैं, तो लोग आपकी मदद के लिए स्वत: आगे आ जाते हैं। आखिर पंडित मदनमोहन मालवीय ने गुलामी के उस दौर में चंदे से एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय खड़ा किया ही। आजादी से पहले ही गुरुकुल कांगड़ी बना, डीएवी आंदोलन खड़ा हुआ। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद उच्च शिक्षा को घोर उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। स्कूली शिक्षा में तो कुछ प्रयोग हुए भी, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर कोई उद्देश्यपरक महत्त्व का काम नहीं हुआ। दरअसल, हम पूरी तरह सरकार पर निर्भर हो गए। हमने यह समझ लिया कि सरकार ही हमारी भाग्य विधाता है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। इसलिए सरकार ने जो चाहा जैसा चाहा किया। भारत के सबसे अधिक लोकप्रिय दस पाठ्यक्रम सूचना प्रौद्योगिकी या डाटा साइंस से जुड़े हैं। भारत जैसे देश में जहां आज भी बहुत-से जिला मुख्यालयों तक में कॉलेज या विश्वविद्यालय नहीं हैं, वहां दूरस्थ शिक्षा का माध्यम खासा लोकप्रिय है। यह एक लचीला माध्यम है, जो छात्रों को पढ़ाई के दौरान दूसरे शौक भी पूरा करने की छूट देता है। सबसे बड़ी बात यह कि यह कामकाजी और नौकरीपेशा वाले लोगों को भी उच्च शिक्षा की राह दिखा रहा है।
 
 
इन दूरस्थ शिक्षा केंद्रों में डिप्लोमा, स्नातक, स्नातकोत्तर व मैनेजमेंट कोर्स चलाए जाते हैं। कई दूरस्थ शिक्षा केंद्र पेशेवर पाठ्यक्रम भी संचालित करते हैं जो रोजगारोन्मुख होते हैं। इनमें जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, लाइब्रेरी साइंस, कंप्यूूटर पाठ्यक्रम आदि शामिल हैं। पढ़ाई करने और करियर बनाने के लिए एक बेहतर मुक्त (ओपन) विश्वविद्यालय है इग्नू, जिसकी पढ़ाई का तरीका पारंपरिक विश्वविद्यालयों से अलग है। इग्नू ने पढ़ाई का एक मल्टीमीडिया नजरिया अपनाया है। विज्ञान, कंप्यूटर, नर्सिंग, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी में पाठ्यक्रम भी शामिल है। मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला लेना मुश्किल नहीं हैं। ये विश्वविद्यालय अपने नियमों के मामले में काफी लचीले होते हैं। यहां फीस भी अमूमन सामान्य संस्थानों के मुकाबले कम होती है। कई जगह सप्ताहांत कक्षाएं चलती हैं, जिससे कामकाजी लोगों को सहूलियत होती है। पढ़ाई और नौकरी के बीच के समय का इस्तेमाल करने वालों के लिए ये विश्वविद्यालय ई-क्लास से लेकर छोटी अवधि वाली नियमित कक्षाएं तक चला रहे हैं। भारत में इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती नौकरी देने वाली कंपनियों की ओर से है। समस्या यह है कि वे एमओओसी से हासिल की गई डिग्रियों को स्वीकार करें और उसके आधार पर लोगों को नौकरी दें। यही सबसे बड़ी मान्यता भी होगी। भारत में फिलहाल एक राष्ट्रीय और तेरह प्रांतीय मुक्त विश्वविद्यालयों और अलग-अलग संस्थानों के दो सौ से ज्यादा केंद्रों में दूरस्थ पाठ्यक्रम चलते हैं। करीब चालीस लाख छात्र इनमें पढ़ते हैं। उच्चशिक्षा संस्थानों में प्रवेश लेने वाले करीब बाईस प्रतिशत छात्र दूरस्थ पाठ्यक्रम चुनते हैं। वहीं देश भर के शिक्षण संस्थानों में हर साल होने वाले नामांकन में चौबीस प्रतिशत हिस्सेदारी दूरस्थ और मुक्त पढ़ाई की होती है। इसके बावजूद दूरस्थ शिक्षा के स्वरूप और नियंत्रण को लेकर पुख्ता व्यवस्था नहीं है। करीब दो साल से देश में दूरस्थ शिक्षा के नियमितीकरण की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।
 
 
जून, 2013 में सरकार ने दूरस्थ शिक्षा परिषद से यह अधिकार छीन लिया था। इसकी जिम्मेदारी यूजीसी और एआईसीटीई को दी गई थी, लेकिन इन दोनों संस्थानों के पास इसके लिए जरूरी संसाधन नहीं हैं। मुक्त एवं दूरस्थ पढ़ाई के संस्थान इनकी बात नहीं मानते, क्योंकि कार्रवाई के लिए जरूरी अधिकार यूजीसी के पास नहीं हैं। प्रस्तावित डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल आॅफ इंडिया बिल, 2014 में नियामक के गठन के साथ कई अन्य प्रावधान भी हैं, लेकिन इसे अब तक संसद में पेश नहीं किया गया है। हालांकि निजी विश्वविद्यालय इसके प्रावधानों से भी संतुष्ट नहीं हैं। गौरतलब है कि भारत के ज्यादातर छात्र अमेरिका के पारंपरिक विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं। पिछले वर्ष ऐसे छात्रों की संख्या में तीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों में चीन के बाद भारत के ही लोग हैं। ब्रिटेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार चौथे साल गिरावट दर्ज की गई है। वहां साल 2010-11 की तुलना में आधे भारतीय छात्र इस समय पढ़ रहे हैं। पर ब्रिटेन के मुक्त विश्वविद्यालयों ने भारत को लेकर काफी महत्त्वाकांक्षी योजनाएं बना रखी हैं। उनकी योजना भारत में सीधे पाठ्यक्रम शुरू करने की नहीं है; वे स्थानीय साझेदारों के साथ मिल कर काम करेंगे और यहां पहले से चल रही मान्यताप्राप्त डिग्रियों की पढ़ाई मुहैया करवाएंगे। अगले पंद्रह वर्षों में 1 करोड़ 40 लाख छात्रों को पढ़ाई की सुविधा मुहैया कराने के लिए आॅनलाइन पढ़ाई सर्वाधिक उपयुक्त है। एक मुक्त विश्वविद्यालय के बाह्य विनियोजन निदेशक (एक्सटर्नल इंगेजमेंट डाइरेक्टर) स्टीव हिल के अनुसार, स्थानीय साझेदार अपनी डिग्री और प्रमाणपत्र जारी करेंगे, पर सामग्री आॅनलाइन होगी और मुक्त विश्वविद्यालय की होगी। हिल के मुताबिक, स्थानीय साझेदारों के साथ मिल कर चीन में दो लाख छात्रों को पढ़ाई मुहैया कराई गई है। उन्हें भारत में भी ऐसा ही कुछ करने की उम्मीद है। बहरहाल, सरकार के सामने कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियां हैं। एक तो शिक्षा को अनाप-शनाप ढंग से महंगी होने से रोकने की। और दूसरी, उसकी गुणवत्ता बनाए रखने की। जो बात प्राइवेट अस्पतालों के बारे में सही है, वही निजी स्कूलों और निजी विश्वविद्यालयों के बारे में भी। ज्यादातर निजी विश्वविद्यालयों का ध्येय मुनाफा कमाना है।
 
 
इसलिए वे विद्यार्थी को विद्यार्थी के तौर पर नहीं, ग्राहक के तौर पर देखते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में खूब कमाई के इरादे से पूंजी लगाने वाले ऐसी ही जगह विश्वविद्यालय खोलना चाहते हैं, जहां के लोगों के पास खर्च करने को पर्याप्त पैसा हो। वे गरीब-गुरबों, गांव-देहात या दूरदराज के लोगों के लिए विश्वविद्यालय नहीं बनाना चाहते। जो लोग पहले से ही धनी हैं, वे उन्हीं के बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। इसलिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी खाई पैदा हो गई है।

- See more at: http://www.jansatta.com/politics/jansatta-article-jansatta-opinion-jansatta-editorial-higher-education/66541/?utm_source=JansattaHP&utm_medium=referral&utm_campaign=politics_story#sthas


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close