Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | उत्तर प्रदेश: एक शहर का कहर- जयप्रकाश त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश: एक शहर का कहर- जयप्रकाश त्रिपाठी

Share this article Share this article
published Published on May 13, 2013   modified Modified on May 13, 2013
कहीं कब्रिस्तान और श्मशान पर कब्जा तो कहीं तालाब पाटकर बनती बहुमंजिला इमारतें. कहीं फर्जी रजिस्ट्री तो कहीं बिना मुआवजा दिए ही जमीन का अधिग्रहण. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक हाईटेक टाउनशिप की आड़ में हो रही इन कारगुजारियों से परेशान हजारों किसानों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं. जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट.

रसूखदार और ताकतवर के लिए उत्तर प्रदेश में नियम-कानून कोई मायने नहीं रखते, यह हाल के समय में कई बार दिखा है. इस सिलसिले में नई कड़ी है राज्य की राजधानी लखनऊ में हाईटेक टाउनशिप बनाने में हो रहा गड़बड़झाला. यह टाउनशिप बना रही रियल एस्टेट क्षेत्र की चर्चित कंपनी अंसल एपीआई कई अनियमितताओं को लेकर सवालों के घेरे में है. तहलका की पड़ताल बताती है कि 3,530 एकड़ क्षेत्रफल में फैली इस विशाल टाउनशिप के बीच में जो भी जमीन आई उस पर अंसल एपीआई का कब्जा हो गया चाहे वह कब्रिस्तान की जमीन रही हो या तालाब-पोखर की. नियमों के अनुसार ऐसी जमीनों को बिल्डर के नाम हस्तांतरित करने का अधिकार सरकार के पास भी नहीं है. फिर भी टाउनशिप के बीच में आने वाले गांवों के तालाब और पोखर पाट कर कहीं गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं तो कहीं सड़क और गोल्फ क्लब. कहीं जमीन पर जबरन कब्जा करने के उदाहरण हैं तो कहीं फर्जी रजिस्ट्री करके जमीन हड़पने के. इस सबके चलते टाउनशिप के बीच में आने वाले गांवों के हजारों किसान परेशान हैं. नियम-कानून तोड़ने का यह खेल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, दोनों के कार्यकाल में हुआ है. ये दोनों ही पार्टियां खुद को दलितों, पिछड़ों और किसानों की हितैषी कहती हैं. लेकिन इस मुद्दे पर वे खामोश ही रहीं, जबकि यह गड़बड़ी प्रदेश के किसी दूर-दराज के इलाके में नहीं बल्कि राजधानी लखनऊ में हो रही थी. ठीक उनकी नाक के नीचे.

अंसल हाईटेक टाउनशिप की आड़ में यह भ्रष्टाचार कैसे हुआ यह समझने के लिए करीब 13 साल पीछे जाना पड़ेगा. साल 2000 में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने सुल्तानपुर रोड पर 2,700 एकड़ जमीन पर आवास बनाने के लिए कई गांवों की जमीन अधिग्रहण करने के लिए नोटिस जारी किया था. इसका मकसद था राजधानी में बढ़ रही जनसंख्या को देखते हुए लोगों को सस्ते व सुलभ आवास मुहैया कराना. आवास विकास परिषद इन गांवों की जमीनों का अधिग्रहण करके अपनी योजना को अमली जामा पहनाती इससे पहले ही इसमें से 1,527 एकड़ जमीन हाईटेक टाउनशिप के नाम पर अंसल एपीआई को दे दी गई. यह 2004 की बात है. तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. अब आवास विकास परिषद के पास करीब 1200 एकड़ जमीन ही बची थी. इसके बाद उसने अपनी इस योजना से हाथ खींच लिया. 1,200 एकड़ बेशकीमती जमीन कई सालों तक ऐसे ही पड़ी रही. मार्च, 2012 में समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी के बाद आवास विकास परिषद को अपनी इस जमीन की याद आई और 26 जनवरी, 2013 को इस 1,200 एकड़ जमीन पर अवध विहार नाम की एक योजना शुरू कर दी गई.

‘बिल्डर की यह मनमानी प्रशासन की उदासीनता का नतीजा है. यदि वह नियमों को अमल में लाने का प्रयास करता तो हजारों परिवारों की बदतर स्थिति न होती'

सवाल उठता है कि आम लोगों को सस्ते एवं सुलभ आवास देने के लिए सन 2000 में जिस जमीन के अधिग्रहण का नोटिस जारी कर दिया गया था वह जमीन सरकार ने निजी बिल्डर को क्यों दे दी. वह भी यह जानते हुए कि आवास विकास परिषद जितनी सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध करा सकती है निजी बिल्डर उससे कहीं ज्यादा मूल्य वसूलेगा. सूत्रों की मानें तो सरकार और अंसल एपीआई के बीच तालमेल बैठाने में एक रिटायर आईएएस रमेश यादव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही. यादव को अंसल एपीआई ने अपने यहां अधिशासी निदेशक (ऑपरेशंस) के पद पर रखा है. सपा सरकार के ही एक करीबी आईएएस बताते हैं कि रमेश यादव सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी हैं.

जिस विक्रमादित्य मार्ग पर सपा का प्रदेश कार्यालय और मुलायम सिंह सहित उनके परिवार के अन्य लोगों की कोठियां हैं, उसी विक्रमादित्य मार्ग पर सपा कार्यालय के सामने रमेश यादव की भी विशाल कोठी है. उक्त आईएएस कहते हैं, 'रमेश यादव जैसे रिटायर अधिकारियों को बड़े बिल्डर अपने यहां मोटी पगार पर इसीलिए रखते हैं कि सरकार चाहे जिसकी हो, ये अधिकारी सरकार में नीतिगत निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले पदों पर बैठे दूसरे अधिकारियों से कंपनी प्रबंधन का काम आसानी से करा लेते हैं. आज जो आईएएस अधिकारी नीतिगत निर्णय लेने वाले पद पर बैठा होगा वह कभी न कभी रिटायर आईएएस अधिकारी के साथ या उसके अंडर में काम जरूर कर चुका होगा, जिसके चलते अपने निजी संबंधों का फायदा उठा कर रमेश यादव जैसे रिटायर आईएएस अधिकारी कंपनी के पक्ष में हर तरह का काम कराने में सक्षम होते हैं.'

अंसल की इस हाईटेक टाउनशिप की शुरुआत भले ही समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुई हो लेकिन इसके विस्तार का क्रम बसपा सरकार में भी लगातार जारी रहा. 2004 में सपा सरकार की ओर से हाईटेक टाउनशिप के लिए 1,527 एकड़ जमीन दी गई थी. मई, 2007 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और सपा की सरकार चली गई. सूबे में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी. बसपा सरकार में भी जल्द ही कंपनी की घुसपैठ हो गई और योजना 1,527 एकड़ से बढ़ते हुए धीरे- धीरे 3,530 एकड़ की हो गई. यानी योजना के विस्तार के लिए राजधानी से सटी किसानों की कृषि योग्य बेशकीमती जमीन निजी बिल्डर को देने में खूब दरियादिली दिखाई गई. सूत्र बताते हैं कि अंसल पर सरकार की दरियादिली थी लिहाजा जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भी उसके सभी कामों की ओर से आंखें मूंदे रखीं.

अंसल एपीआई पर सरकारी मेहरबानी के बाद बात उसके कारनामों की. कुछ समय पहले तक राजधानी से निकल रहे हाइवे शहीद पथ के किनारे मकदूमपुर ग्राम सभा के भुसवल गांव का कब्रिस्तान होता था. पिछले साल जैसे ही सपा की सरकार बनी, टाउनशिप के पास बने इस कब्रिस्तान पर अंसल एपीआई का कब्जा हो गया. गांववालों के विरोध से कोई फर्क नहीं पड़ा. कंपनी ने डेढ़ बीघा (करीब 4,000 वर्ग फुट) कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा करके वहां चौड़ी सड़क बना दी. इतना ही नहीं, कब्रिस्तान के पास ही अस्पताल बनाने का एक बोर्ड भी लगा दिया गया. मौके पर कोई कब्रिस्तान भी था इसके सारे सबूत मिटा दिए गए. बस तीन पक्की कब्र हैं जो अब बची हैं. भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष हरनाम सिंह कहते हैं, 'ग्राम सभा के नक्शे पर वह जमीन आज भी कब्रिस्तान के रूप में ही दर्ज हैं.

मकदूमपुर ग्राम सभा के अंतर्गत ही 10 बीघे का एक श्मशान भी है. इस जमीन पर भी अंसल एपीआई की ओर से कब्जे का प्रयास शुरू किया गया. जमीन पर निर्माण कार्य कराने के लिए बिल्डर की ओर से उसे समतल करके मिट्टी डलवाने का काम किया जाने लगा. जब गांववालों को इसकी भनक लगी तो उनका सब्र जवाब दे गया. जिला प्रशासन में सुनवाई न होते देख गांववाले खुद ही लाठी-डंडा लेकर मौके पर डट गए तब कहीं जाकर बिल्डर ने काम रुकवाया. बीती मार्च में बिल्डर की करतूत से तंग आकर आत्महत्या करने वाले दलित किसान नौमी लाल का भी अंतिम संस्कार गांववालों ने इसी जमीन पर किया है.

कब्रिस्तान और श्मशान की जमीन कब्जा करने के बाद बिल्डर का अगला निशाना तालाब व पोखर हैं. गांव मुजफ्फरनगर के किसानों के लिए अपने पशुओं को चराने और पानी पिलाने का एक आसरा गांव के बाहर स्थित करीब चार बीघे का तालाब था. लेकिन अंसल एपीआई ने तालाब का अधिकांश हिस्सा पाट दिया है. इस पूरे तालाब की जमीन में से एक बड़े हिस्से पर तीन बहुमंजिला इमारतें बनाई जा रही हैं. इसी तालाब के एक हिस्से को सड़क बनाने के लिए पाटा जा रहा है और जो भाग बचा हुआ है उसमें गोल्फ क्लब का विस्तार किया जा रहा है. बिल्डर ने अपनी ओर से तालाब का अस्तित्व मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इसके बावजूद एक ओर तालाब का कुछ भाग बचा हुआ है जिसमें पानी होने के कारण बड़ी-बड़ी जलकुंभी उगी हुई हैं. गांव के अजय यादव बताते हैं कि यदि कभी वे अपने जानवरों को पानी पिलाने के लिए तालाब के बचे हिस्से की तरफ ले जाएं तो बिल्डर की ओर से लगाए गए गार्ड भगा देते हैं. उनके मुताबिक गार्ड कहते हैं कि जानवरों को पानी पिलाने की आड़ में गांववाले यहां चोरी करने आते हैं. अजय कहते हैं, 'आज हम अपने ही गांव के तालाब पर जाते हैं तो चोर कहलाते हैं.' पोखर-तालाब व कब्रिस्तान के लिए सख्त नियम है कि विकास के नाम पर ऐसी जमीनों पर कब्जा नहीं किया जा सकता. यदि टाउनशिप के बीच में तालाब या पोखर आते हैं तो इन्हें पाटने के बजाय इनका सौंदर्यकरण कर विकसित किया जाएगा. इसी तरह कब्रिस्तान के संबंध में नियम है कि उस पर निर्माण करने की बजाय उसके चारों ओर दीवार बनाकर छोड़ दिया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा.

ग्रामीणों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं. 3,530 एकड़ क्षेत्रफल में फैली हाईटेक टाउनशिप के बीच में बसे कई गांवों के किसान आज भी अपनी आजीविका खेतीबाड़ी करके चलाते हैं. लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि खेती की सिंचाई के लिए उनके खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए जो नहर बनी हुई थी उसे बिल्डर ने पाट दिया है. किसान आशीष यादव बताते हैं कि निजामपुर, महमूदपुर घुसवल, मजगंवा, बगियामउ, अहमामउ, हसनपुर खेवली आदि गांवों को पानी पहुंचाने के लिए सरकार की ओर से नहर खुदवाई गई थी जिससे किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते थे. यह नहर अब समाप्त हो गई है. वे कहते हैं, 'नहर को पाट कर कहीं टाउनशिप की सड़क बन गई है तो कहीं उसकी शोभा बढ़ाने के लिए पार्क. नहर पाट दिए जाने के कारण किसानों के खेत तो बीच-बीच में बचे हैं लेकिन उसमें लहलहाती फसलें अब नहीं दिखाई देतीं. लिहाजा किसान दो जून की रोटी को भी मोहताज हो गए हैं.'

गड़बड़ी की झड़ी

हाईटेक टाउनशिप के निर्माण के दौरान कब्रिस्तान, श्मशान या तालाब की जमीन पर कब्जा किया जा रहा है जो गैरकानूनी है

हाईटेक टाउनशिप नीति के अनुसार बिल्डर को योजना के बीच में आने वाले गांवों का विकास भी करना होता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है

अपनी जमीन पर बिल्डर द्वारा कब्जा किए जाने और इसकी कहीं सुनवाई न होने से व्यथित एक दलित किसान ने हाल ही में आत्मदाह कर लिया

ऐसे भी मामले हैं जहां जमीन का भूउपयोग बदलवाए बिना ही बिल्डर ने जमीन बेच दी है और उस पर निर्माण कार्य भी हो चुका है

फर्जीवाड़े से एक ऐसे आदमी की जमीन की भी अंसल एपीआई के नाम रजिस्ट्री हो गई जो 1997 से ही लापता है

एक मामले में तो बिल्डर ने वह 150 एकड़ जमीन भी गांववालों से खरीद ली जिसके अधिग्रहण का नोटिस सरकार दे चुकी थी

हाईटेक टाउनशिप नीति के अनुसार बिल्डर को योजना के बीच में आने वाले गांवों का विकास भी करना होता है. लेकिन यहां भी रसूखदार बिल्डर ने किसानों के साथ छलावा ही किया है. महमूदपुर गांव में अंसल एपीआई की ओर से कई जगह बोर्ड लगाया गया है जिस पर लिखा है कि ग्राम सभा महमूदपुर की पेयजल व्यवस्था हेतु इंडियामार्का हैंडपंप के अधिष्ठापन का कार्य चार मई, 2008 को आरंभ किया गया है. बोर्ड के अनुसार पांच साल पूर्व गांव में साफ पानी मुहैया कराने के लिए हैंडपंप लगा दिए गए हैं. लेकिन जहां बोर्ड लगा है वहां एक भी हैंडपंप दिखाई नहीं देता. इसी तरह का एक बोर्ड खुशीराम यादव के घर के बाहर भी लगा हुआ है. यादव परिवार की एक महिला बताती हैं कि नल लगवाने के लिए कंपनी की ओर से एक दिन बोरिंग करने के लिए सामान तो लाया गया लेकिन अगले ही दिन सारा सामान चला गया. उसके बाद किसी ने खबर नहीं ली. नतीजा यह है कि आज भी पूरा गांव कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर है. ऐसा हाल किसी एक गांव का नहीं बल्कि योजना के अंतर्गत आने वाले हर एक गांव का है. किसानों की बदतर स्थिति का आलम यह है कि गांवों को कंटीले तारों या पक्की दीवारों से घेर दिया गया है. गांवों के एकदम बाहर से ही बिल्डर अपनी योजना को अमली जामा पहना रहा है जिसके कारण गांवों के पानी की ठीक से निकासी तक नहीं हो पा रही है.

भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष हरनाम सिंह कहते हैं, 'बिल्डर की यह मनमानी प्रशासन की उदासीनता का नतीजा है. यदि जिला प्रशासन हाईटेक टाउनशिप के नियमों को जरा भी अमल में लाने का प्रयास करता तो गांव में रहने वाले हजारों परिवारों की बदतर स्थिति न होती. यह किसानों का दुर्भाग्य है कि उनकी ही जमीन पर हाईटेक टाउनशिप बन रही है जहां उनकी चारदीवारी के बाहर चौबीसों घंटे बिजली-पानी की सुविधा सरकार की ओर से मुहैया कराई जा रही है वहीं उनके गांवों में कुल छह से सात घंटे ही बिजली मिल रही है.'

अंसल एपीआई की सरकार में पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह जब चाहे जहां चाहे अपनी योजना के आस-पास की सरकारी जमीनों पर भी कब्जे से नहीं हिचकता. इसका उदाहरण हाईटेक टाउनशिप के पास ही स्थित बरौना गांव में देखने को मिला. गांव के खसरा संख्या एक से 116 तक की करीब 150 एकड़ जमीन आवास विकास परिषद की ओर से अंसल एपीआई को स्थानांतरित नहीं की गई थी. इस जमीन के अपने पक्ष में अधिग्रहण के लिए आवास विकास परिषद साल 2000 में ही नोटिस जारी कर चुकी थी. इसके बावजूद बिल्डर ने आवास विकास परिषद की अनुमति के बगैर बरौना गांव की करीब 80 प्रतिशत जमीन किसानों से सीधे खरीद ली. आवास विकास परिषद को जब इसकी भनक लगी तो आनन-फानन में अधिकारी अपने बचाव के लिए हाई कोर्ट गए. कोर्ट ने कुछ समय पूर्व अपने निर्णय में खसरा संख्या एक से 116 तक की जमीन का फैसला आवास विकास परिषद के पक्ष में सुनाया. उधर, अंसल एपीआई किसानों को मुआवजा दे चुका है लिहाजा पूरा मामला फंस चुका है. गौरतलब है कि 2004 में अंसल को जो 1,527 एकड़ जमीन सरकार की ओर से दी गई थी वह भी आवास विकास परिषद की ही थी. बरौना गांव की जमीन भी आवास विकास परिषद के पास ही थी जो अंसल एपीआई को नहीं दी गई थी.

अंसल एपीआई के रुतबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो अधिकारी इसकी योजना के बीच में आता है उसका तबादला होने में भी देर नहीं लगती. इसका ताजा उदाहरण लखनऊ के पूर्व कमिश्नर संजीव दुबे हैं. सूत्र बताते हैं कि अप्रैल महीने में लखनऊ विकास प्राधिकरण बोर्ड की बैठक होनी थी, जिसमें कुछ ऐसे प्रस्तावों को भी मंजूरी दिलाए जाने की बात थी जो अंसल एपीआई को सीधे लाभ पहुंचा रहे थे. इसमें बरौना गांव की जमीन से जुड़ा मामला भी था. सूत्रों के मुताबिक यह जानकारी जब कमिश्नर को हुई तो उन्होंने मना कर दिया. जिसका नतीजा यह रहा कि दुबे का तत्काल तबादला कर दिया गया. इसके बाद इलाहाबाद के कमिश्नर देवेश चतुर्वेदी को लखनऊ का कमिश्नर बनाया गया. चतुर्वेदी को जब पूरा प्रकरण पता चला तो उन्होंने भी इस पद पर आने से मना कर दिया. लिहाजा थक-हार कर शासन को चतुर्वेदी का स्थानांतरण आदेश निरस्त करना पड़ा. सीनियर आईएएस अधिकारियों के बीच अब इस बात की चर्चा जोरों पर है कि सरकार एक ऐसे आईएएस अधिकारी की खोज कर रही है जो आसानी से अंसल के सारे फंसे हुए पेंच निकाल सके.

इस काम के लिए कोई अधिकारी तैयार नहीं हो रहा लिहाजा पिछले करीब डेढ़ सप्ताह से लखनऊ कमिश्नर का पद रिक्त चल रहा है. सूत्र बताते हैं कि बोर्ड की बैठक में जो निर्णय होने थे उनमें से कुछ भूउपयोग परिवर्तन किए जाने के बारे में भी थे. सूत्रों के मुताबिक दरअसल बिल्डर ने कुछ मामलों में जमीन का भू-उपयोग बदलवाए बिना ही उसे बेच दिया है. इसमें से एक बड़ी जमीन पर वॉलमार्ट का स्टोर काफी दिनों से चल रहा है तो उससे कुछ ही दूरी पर एक पांच सितारा होटल भी बन रहा है. कागजों में जिस जमीन का बिना भूउपयोग बदलवाए निर्माण कार्य हो गया है उसमें से 15.071 हेक्टेयर जमीन वाहन क्रय विक्रय केंद्र एवं 87.47 हेक्टेयर जमीन सामाजिक शोध संस्थाओं एवं सेवाओं के नाम दर्ज है. ऐसे में जो अधिकारी इस काम को अंजाम देता, आज नहीं तो कल जांच में उसकी गर्दन फंसना तय है.

उधर, इस पूरे मामले में किसान हर कदम पर अपने आप को छला महसूस कर रहा है. बिल्डर की कारगुजारी से तंग आकर इसी साल 21 मार्च को दलित किसान नौमीलाल ने आत्मदाह कर लिया. नौमीलाल की पत्नी सुंदरा देवी बताती हैं कि नौ मार्च को उनकी जमीन पर कब्जा करके अंसल ने सड़क बनाने का काम शुरू किया. नौमीलाल ने पहले अंसल एपीआई के अधिकारियों से मिल कर इसकी शिकायत करने का प्रयास किया लेकिन सुनवाई नहीं हुई तो 11 मार्च को नौमीलाल की ओर से पीजीआई थाने में एक लिखित शिकायत की गई. थाने वालों ने भी प्रार्थना पत्र तो रख लिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की. 14 मार्च को भाकियू कार्यकर्ताओं ने नौमीलाल के समर्थन में अंसल के कार्यालय के बाहर धरना भी दिया लेकिन कोई असर नहीं हुआ. हर जगह से निराशा मिलते देख नौमीलाल ने 21 मार्च की सुबह खुद को आग के हवाले कर दिया. राजधानी में ही बिल्डर के उत्पीड़न से त्रस्त किसान द्वारा अत्महत्या किए जाने की घटना से प्रशासन का चिंतित होना स्वाभाविक स्वाभाविक था. इसके बाद कार्रवाई के नाम पर अंसल प्रबंधन पर गोसाईगंज थाने में मुकदमा लिखा गया. नौमीलाल छह दिन जिंदगी और मौत से जूझते रहे. अंत में 26 मार्च को उनकी मृत्यु हो गई. नौमीलाल की मृत्यु के बाद अंसल एपीआई ने जिला प्रशासन के माध्यम से उसके परिजनों को 15 लाख का मुआवजा दिया.

उधर, कंपनी के अधिशासी निदेशक (ऑपरेशंस) रमेश यादव कहते हैं, 'नौमीलाल की जिस जमीन पर सड़क बनाई जा रही थी उसका मुआवजा उसे 2004 में ही दिया जा चुका था.' लेकिन नौमी के परिजन इस बात को सिरे से नकारते हैं. नौमी की बेटी संगीता बताती है, 'पिता जी के नाम एक ही एकाउंट था. उसमें यदि कोई रकम 2004 में आई होती तो उसका रिकार्ड जरूर होता.' भाकियू नेता हरनाम सिंह कहते हैं, 'अंसल एक बार नौमी की जमीन का मुआवजा दे चुका था तो उसने नौमीलाल की मौत के बाद 15 लाख रुपये क्यों दिए. कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है जिसके कारण कंपनी प्रबंधन को खुद के फंसने का डर सता रहा था. परिवार शांत हो जाए और मामला दब जाए, इसीलिए 15 लाख रुपये दिए गए.'

150 एकड़ जमीन के लिए आवास विकास परिषद साल 2000 में ही नोटिस दे चुकी थी. इसके बावजूद बिल्डर ने इसमें से 80 फीसदी जमीन किसानों से सीधे खरीद ली

उदाहरण जमीन पर कब्जा करने के ही नहीं फर्जी तरीके से जमीन की रजिस्ट्री करने के भी हैं. बगियामउ गांव का किसान राम सागर यादव जुलाई, 1997 में घर से बाजार दवा लेने के लिए निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. परिजनों ने काफी दिनों तक उसकी खोजबीन की. जब कहीं भी उसका पता नहीं चला तो छह अगस्त, 1997 को गोसाईगंज थाने में राम सागर के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई. राम सागर के भाई राम रूप बताते हैं कि तीन भाइयों के पास 10 बीघा जमीन थी. पूरी जमीन की रजिस्ट्री तीन जून, 2006 को अंसल एपीआई के नाम हो गई. हैरानी की बात यह है कि रजिस्ट्री में तीनों भाइयों राम सागर, राम रूप और रामदेव की फोटो लगी हुईं हैं.

सवाल उठता है कि जो राम सागर 1997 से अब तक गायब है उसके हिस्से की भी जमीन अंसल एपीआई के नाम कैसे रजिस्ट्री हो गई. राम रूप बताते हैं, 'जिस समय रजिस्ट्री हुई उस समय मेरी और मेरे भाई रामदेव की ही फोटो कागज पर लगी थी. राम सागर की फोटो उस पर नहीं थी. लिहाजा हम दो भाइयों के हिस्से की ही जमीन अंसल को बेची जानी थी लेकिन बाद में पता चला कि अंसल ने पूरी दस बीघा जमीन ले ली है. जब दौड़-भाग कर तहसील से कागजात निकलवाए गए तो सभी अवाक रह गए. दो भाइयों के साथ-साथ राम सागर के हिस्से की जमीन भी अंसल के नाम दर्ज हो चुकी थी और कागजों में दो के स्थान पर तीन फोटो लगी थीं. जिस तीसरे व्यक्ति की फोटो लगी थी उसे राम सागर बना कर जमीन ली गई है. रजिस्ट्री में राम सागर के स्थान पर जिस व्यक्ति की फोटो लगी है उसकी उम्र 50 से 55 साल के बीच की मालूम होती है, जबकि राम सागर की उम्र महज 30 साल थी. '

और उदाहरण सिर्फ बड़ी जमीनों के ही नहीं हैं. मेहनत-मजदूरी करके परिवार का पेट पालने वाले ग्रामीणों की छोटी-छोटी जमीनें भी उनसे छिन गईं. राम गोपाल लोधी बताते हैं कि उनके पास कुछ 13 बिस्वा (20 बिस्वा में एक बीघा होता है) जमीन थी. वे कहते हैं, ‘आठ बिस्वा जमीन पर दो भाई मकान बनाकर रहते हैं, पांच बिस्वा जमीन घर के एकदम बाहर तीसरे भाई के हिस्से की बची थी. अंसल एपीआई ने पांच बिस्वा जमीन पर कंटीला तार लगा कर उसे टाउनशिप में ले लिया.' इस जमीन का न तो राम गोपाल के परिजनों को मुआवजा मिला और न ही कोई लिखा पढ़ी हुई. अकेले राम गोपाल ही नहीं बल्कि मदन, जानकी, प्रेम कुमार, अशोक सहित दर्जनों ऐसे ग्रामीण हैं जिनकी घर के बाहर जो थोड़ी-बहुत जमीन थी उस पर आज बिल्डर का कब्जा हो चुका है.

महमूदपुर निवासी राजपती की तीन बीघा जमीन अंसल एपीआई ने ले तो 2006 में ली थी लेकिन उसका जो चेक दिया गया वह बाउंस हो गया. राजपती बताती हैं कि जमीन उनके पति केसन के नाम थी. तीन बीघा जमीन के बदले उन्हें 3,86, 545 रुपये का बैंक ऑफ इंडिया का चेक दिया गया. चेक पर किसी संजीव नाम के व्यक्ति के हस्ताक्षर थे. राजपती के परिजनों ने जब चेक को गोसाईगंज स्थित विजया बैंक में लगाया तो वह बाउंस हो कर वापस आ गया. राजपती बताती हैं, 'चेक को लेकर काफी भागदौड़ की गई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.' परिवार के लोग आज भी चेक को संभाल कर रखे हुए हैं.

नौमीलाल, रामगोपाल, राम सागर और राजपती तो एक उदाहरण भर हैं. हाईटेक टाउनशिप के बीच में आने वाले दर्जनों गांवों के सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जिनकी गिनती कल तक अच्छे किसानों में होती थी लेकिन बिल्डर की कारगुजारी के चलते आज वे परिवार का पेट पालने को भी मोहताज हैं. राजपती, राम सागर और राम गोपाल के मामलों में अंसल के अधिशासी निदेशक (ऑपरेशंस) रमेश यादव कहते हैं कि उन्हें इस तरह की कोई जानकारी ही नहीं है. धन-बल के आगे राजधानी लखनऊ में जब किसानों का यह हाल है तो दूर-दराज के इलाकों में विकास के नाम पर जमीन अधिग्रहण के चलते किसानों की क्या दशा होगी, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं.


http://www.tehelkahindi.com/rajyavar/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/1790.html?print


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close