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न्यूज क्लिपिंग्स् | उत्तराखंड की बाढ़ से सबक- हरीश चंद्र पंत

उत्तराखंड की बाढ़ से सबक- हरीश चंद्र पंत

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published Published on Jul 1, 2015   modified Modified on Jul 1, 2015
उत्तराखंड में मूसलाधार बारिश के कारण चारधाम यात्रा रोक दी गई है। इस वर्षा ने दो साल पुरानी उस त्रासदी की याद दिला दी है, जिसमें लोगों ने अपना सब कुछ खो दिया था। हम उस आपदा के लिए भगवान को दोषी ठहराते रहे, जबकि वह बाढ़ मानव निर्मित थी। ऐसी विपदाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रबंधन बोर्ड की स्थापना की गई थी। पर उसका कोई लाभ नहीं हुआ। उस त्रासदी से जो आर्थिक नुकसान हुआ, वह तो हुआ ही, पर उससे अधिक महत्वपूर्ण उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति है, जिसका हम ध्यान नहीं रखते।

इसके पूर्व में नेपाल तथा उत्तर में तिब्बत तथा चीन हैं। चीन से निपटने के लिए हमने उत्तराखंड में कोई तैयारी नहीं कर रखी है। केदारनाथ में आई बाढ़ के दौरान हम अपने नागरिकों को उत्तरकाशी से बाहर नहीं ला सके थे, और न ही रसद, ईंधन या पानी वहां पहुंचा सके थे। तो कल्पना करें कि जब चीन हमें निशाना बनाने की कोशिश करेगा, तो क्या हम अपनी मातृभूमि की रक्षा कर सकेंगे। इस इलाके में न कोई हवाई पट्टी है, न हेलीपैड, न रेलवे स्टेशन। गौचर में एकमात्र जो समतल मैदान है, उसी का पिछली त्रासदी में वायुसेना ने जहाजों को उतारने के लिए उपयोग किया था। आक्रमण की स्थिति में तो वह चीनियों के निशाने पर सबसे पहले होगा। हां, एक उपेक्षित हवाई पट्टी पिथौरागढ़ के पास नैनी-सैनी में है, जो पिछले चालीस वर्षों से हवाई पट्टी बनने की प्रतीक्षा कर रही है।

सरहद की ओर जाने वाली सड़कों की बात करें, तो हरिद्वार-बदरीनाथ मार्ग के अलावा दूसरी भरोसेमंद सड़क नहीं है। यह सड़क पिछली त्रासदी में टूट गई थी, क्योंकि यह चूना पत्थर, डोलोमाइट व बालू के पहाड़ों पर बनी है। फिर इसे अलकनंदा के करीब से निकाला गया है, जहां पर चट्टानों की ढलान सड़क की तरफ होने से भूस्खलन होता रहता है, इसलिए बरसात में अक्सर इसमें व्यवधान आता रहता है। दूसरा रास्ता पिथौरागढ़-कालापानी मार्ग है, जिसे मानसरोवर यात्रा के लिए उपयोग किया जाता है, वह भी मात्र दो महीने के लिए। जरा-सी बारिश में यह मार्ग बंद हो जाता है। इस मार्ग पर कारें भी सरहद तक नहीं जातीं। दूसरी ओर, चीन ने थिंपू को हवाई ही नहीं, रेलमार्ग से भी जोड़ दिया है। उसने सीमा पर अपनी तरफ सड़कों का जाल बिछा दिया है, कई हेलीपैड भी बना लिए हैं।

हम पिछले पचास साल से बागेश्वर-टनकपुर तथा श्रीनगर-कोटद्वार रेल लिंक की योजना बना रहे है। गौचर और नैनी-सैनी की उपेक्षित हवाई पट्टियां कभी-कभी विशिष्ट व्यक्तियों के आगमन के लिए जीवंत कर दी जाती हैं, फिर वहां जानवर चरने लगते हैं। पूरे उत्तराखंड में नदियों का जाल है। यदि यहां नौवहन सुविधाओं की व्यवस्था हो, तो सेना व जनता के आवागमन तथा रसद आदि आसानी से ले जाए जा सकते हैं। इसके अलावा अच्छे ग्राउंड हैंडलिंग उपकरणों, रात्रि दृष्टि और कोहरे में पैठ के उपकरणों से लैस स्थायी सतर्क दल व सभी मौसम के हेलीपैड के नेटवर्क की भी जरूरत है।� उम्मीद है� कि हमारी सरकारें इस खतरे को गंभीरता से लेंगी और 1962 की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगी। पहाड़ के लोगों को मानसून की आदत है, पर भौगोलिक रूप से संवेदनशील यह राज्य बाहरी खतरों से तो सुरक्षित हो।

-भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/lesson-from-uttarakhand-flood-hindi/


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