Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | उलझा मामला, लंबी जांच और अदालत-- कमलेश जैन

उलझा मामला, लंबी जांच और अदालत-- कमलेश जैन

Share this article Share this article
published Published on Dec 25, 2017   modified Modified on Dec 25, 2017
सीबीआई की विशेष अदालत से 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले के सभी आरोपियों के बरी होते ही सियासी तापमान का बढ़ना स्वाभाविक है। कांग्रेस अब केंद्र सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में देश को कथित रूप से गुमराह करने के लिए माफी मांगने की मांग कर रही है। जवाब देने के लिए सत्ता पक्ष की तरफ से वित्त मंत्री अरुण जेटली मैदान में उतर आए हैं। हालांकि इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात भी की जा रही है, लेकिन जब तक ऊपरी अदालत का कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं आता, तब तक विशेष अदालत के इस फैसले पर राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप चलेंगे ही। मगर सियासत से इतर इस फैसले की कानून की निगाह से पड़ताल भी जरूरी है।


दूरसंचार घोटाले के आरोपियों के बरी होने का फैसला फिलहाल निचली अदालत से आया है। हमारे देश में त्रि-स्तरीय न्यायिक व्यवस्था है, इसलिए इस फैसले को आखिरी नहीं माना जा सकता। फिर कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जब निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में बदल दिया गया। हाईकोर्ट की उसे स्वीकृति नहीं मिल पाई। हाल-फिलहाल में आरुषि तलवार की हत्या का ही मुकदमा देखिए। विशेष सीबीआई अदालत के फैसले से इलाहाबाद हाईकोर्ट सहमत नहीं हुआ और उसने तलवार दंपति को इस मामले में बरी कर दिया। मुझे यहां पर आनंद मार्ग के संस्थापक प्रभात रंजन सरकार आनंदमूर्ति पर आया ऊपरी अदालत का फैसला भी याद आ रहा है। हत्या के कई मामलों में दोषी मानते हुए निचली अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी, मगर हाईकोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया।


रही बात सीबीआई अदालतों की, तो यह सही है कि ऐसी अदालतें खास तरह के मामले ही देखती हैं। जज से लेकर वकील तक सभी दक्ष व योग्य होते हैं। मगर इसके फैसले भी वक्त-बेवक्त ऊपरी अदालतों में नहीं टिक पाए हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि सीबीआई की जांच काफी लंबी चलती है। कभी-कभी तो इसमें तमाम तरह की गैर-जरूरी जानकारियां भी शामिल कर ली जाती हैं। इससे मुकदमे के दौरान स्वाभाविक तौर पर कई तरह के तथ्यात्मक छिद्र रह जाते हैं, जिसका फायदा आरोपी उठा लेता है। 2-जी का मामला कोई छोटा नहीं है। इसमें भी तमाम तरह के साक्ष्य जुटाए गए हैं। मेरा मानना है कि ज्यादा तथ्य होने से उलझनें बढ़ सकती हैं और मुमकिन है कि इस मामले में भी ऐसा हुआ हो। यहां लंबी जांच-प्रक्रिया का यह अर्थ नहीं है कि जांच में कोई ढिलाई बरती गई हो। भारतीय दंड प्रकिया में एक विधान है, जो अदालती सुनवाई के दौरान कहीं भी नए तथ्यों को जोड़ने की बात कहता है। यानी निचली अदालतों में यदि किसी तथ्य पर चर्चा न हो पाई हो या अदालत को उसकी जानकारी न दी गई हो, तो उसे ऊपरी अदालत में पेश किया जा सकता है। न्यायसंगत फैसला हमारी न्यायिक व्यवस्था की बुनियाद है और इसमें किसी तरह की कोताही नहीं बरती जाती।


यह सीबीआई अदालत के फैसले पर टिप्पणी नहीं है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि अदालत से कोई चूक हुई है। यह संभव है कि सभी आरोपी ऊपरी अदालतों से भी बरी हो जाएं। मगर इस फैसले के बदलने की संभावना तो है ही। हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में फैसले इसलिए बदल जाते हैं, क्योंकि वहां तथ्यों की व्याख्या बिल्कुल अलग तरीके से होती है। हर अदालत में अलग-अलग तरीके से साक्ष्यों को परोसा जाता है। एक ही तथ्य के कई-कई अर्थ निकाले जाते हैं। दूरसंचार घोटाले में ही सर्वोच्च अदालत ने पूर्व में ए राजा के कार्यकाल में आवंटित सभी 122 लाइसेंस रद्द किए हैं। अदालत ने माना था कि लाइसेंस मनमाने और असांविधानिक तरीके से आवंटित किए गए। लाइसेंस आवंटित करने का आधार ‘पहले आओ, पहले पाओ' था, जिसे सर्वोच्च अदालत ने खारिज करते हुए नीलामी द्वारा आवंटित किए जाने की बात कही थी। यानी यह साफ है कि ऐसे मामलों में जिस तरह की प्रक्रिया अपनाकर आवंटन किया जाना चाहिए था, उसको पूरा नहीं किया गया। अदालत ने ‘पहले आओ, पहले पाओ' की व्यवस्था पर ही सवाल उठाए थे, क्योंकि इससे परोक्ष रूप से राजकोष को नुकसान होता है। अब देखना यह होगा कि सीबीआई अदालत ने इसकी कैसी व्याख्या अपने ताजा फैसले में की है, जो फिलहाल सार्वजनिक नहीं हुआ है। मगर यह तय है कि दोनों अदालत ने इस तथ्य की अलग-अलग व्याख्या की है। इसी तरह, ऊपरी और निचली अदालतों में कानूनी प्रावधानों की व्याख्या भी अलग-अलग तरीके से की जाती है। ऐसा भले ही सभी मामलों में न होता हो, लेकिन ज्यादातर मामलों में अदालतों की राय को अलग-अलग होते हमने देखा है।


बहरहाल, सीबीआई अदालत के ताजा फैसले के बाद ‘कैग' की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया जा रहा है। मगर मैं मानती हूं कि दूसरी किसी संस्था पर सवाल उठाने से पहले हमें अपनी न्यायिक व्यवस्था की गड़बड़ियों पर भी ध्यान देना चाहिए। अभी किसी भी पक्ष के लिए बहुत खुश होने का समय नहीं है। ‘वेट ऐंड वाच' यानी प्रतीक्षा कर प्रतिक्रिया जाहिर करने की कोशिश होनी चाहिए। हम इस मामले के बहाने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में किसी मुकदमे की सुनवाई के लिए एक समय-सीमा तय करने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि, ऐसा सभी मामलों में होना चाहिए। देश को इस तरह मंझधार में नहीं रखा जा सकता। स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी से 1.76 लाख करोड़ रुपये के घाटे का अनुमान लगाया गया था। यह ऐसा मामला है, जिस पर राजनीति की दिशा तक बदल गई। सरकार भी चली गई। इसलिए ऐसे मामलों में खास संजीदगी दिखानी चाहिए। ऐसे मामलों में तय वक्त पर फैसला न आने से आरोपी शख्स का सार्वजनिक जीवन ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि आम आदमी को भी खासा नुकसान पहुंचता है। कभी ऐसे ही किसी कथित घोटाले की बेदी पर कोई सरकार यदि सत्ता से बेदखल हो गई, तो उसका कुसूरवार कौन होगा? उसका खामियाजा कौन भुगतेगा? इसीलिए हमें आरोप-प्रत्यारोप में उलझने की बजाय तस्वीर बदलने की कोशिश करनी चाहिए।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/latest-blog/story-kamlesh-jain-over-2g-scam-in-hindustan-on-22-december-1709217.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close