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न्यूज क्लिपिंग्स् | ऊर्जा जरूरतों के लिए दूरदर्शी नजरिया- जी पार्थसारथी

ऊर्जा जरूरतों के लिए दूरदर्शी नजरिया- जी पार्थसारथी

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published Published on Apr 19, 2018   modified Modified on Apr 19, 2018
हमारे पश्चिमी आसपड़ोस में आज शिया-सुन्नी झगड़े के अलावा अरब-फारसी-इस्राइली प्रतिद्वंद्विता से जिस तरह की भू-राजनीतिक स्थितियां बनी हैं, उस तरह के हालातों का सामना भारत को 1973 में हुए अरब-इस्राइली युद्ध के बाद वाले लगभग चार दशकों से नहीं करना पड़ा है। तब सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब तेल निर्यातक संघ (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अरब पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) ने कनाडा, जापान, नीदरलैंड, अमेरिका और यू.के. को तेल देने पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी थी क्योंकि यह संगठन इन देशों को इस्राइल समर्थक मानता था। उस वक्त 3 डॉलर प्रति बैरल वाली तेल की कीमत का अचानक 43 डॉलर मूल्य हो जाने से विदेशी नकदी की भारी किल्लत सह रहे भारत ने खुद को आर्थिक बदहवासी में पाया था। सऊदी अरब ने भारत से मांग की थी कि या तो वह मुंबई स्थित इस्राइली दूतावास को बंद करवा दे या अरब देशों से मिलने वाले तेल पर प्रतिबंध झेलने को तैयार रहे। इससे क्षुब्ध होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया था और ‘बॉम्बे हाई' में मिले खुद के तेल एंव गैस स्रोतों, सोवियत संघ से मिलने वाली सप्लाई और ईरान के शाह (जिनके इस्राइल से मधुर संबंध थे) से मिली ‘सहायता' की बदौलत भारत इस मुश्किल से बुरी तरह प्रभावित होने से बच गया था।


इस घटना के चार दशकों बाद, दुनिया की ऊर्जा और भू-राजनीतिक दृश्यावली में बहुत बदलाव आ चुके हैं। अमेरिका, कनाडा और वेनेज़ुएला में तेल के बड़े भंडार का पता चलने के अलावा अर्जेंटीना के तटों पर अकूत गैस भंडार की खोज के साथ मेक्सिको से होने वाले तेल निर्यात के बूते पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप का कुछ हिस्सा अरब देशों की ब्लैकमेलिंग की जद से बाहर हो चुका है। अब हालात यह हैं कि दुनिया में तेल की कीमतों को नियंत्रित करने हेतु सऊदी अरब को रूस की मदद लेने को मजबूर होना पड़ा है। तेल की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल से लुढ़ककर एक समय 30 डॉलर आ गई थी और पिछले कुछ समय से यह 60-70 डॉलर के बीच चल रही है। अरब-खाड़ी देशों से होने वाले तेल निर्यात में प्रतिदिन के हिसाब से चीन (84 लाख बैरल), भारत (44 लाख बैरल) और जापान (34 लाख बैरल) मुख्य खरीदार हैं। इसी बीच अरब सल्तनतें, जहां से अधिकांश तेल उत्पादन होता है, वे आज उस ईरान के बढ़ते प्रभाव का तोड़ निकालने में व्यस्त हैं, जिस पर पश्चिमी देशों की अगुवाई में लगे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों को हाल ही में उठाया गया है। यह भी साफ है कि खाड़ी के इस इलाके में ईरान प्रभुत्व रखने वाली शक्ति बनना चाहता है।


उधर अपने तेल की बदौलत पश्चिमी देशों की सामरिक परिस्थिति पहले वाले वक्त के मुकाबले बहुत अलग है। ईरान में इस्लामिक गणतंत्र के उद‍्भव के चलते इस्राइल के साथ उसके संबंध काफी तल्ख हो गए थे और इस्राइल ने दुनियाभर में ईरान के खिलाफ दुश्मनी निभाई थी। उधऱ ईरान ने भी उसके खिलाफ गैर-जिम्मेवाराना रुख अपनाते हुए न केवल उग्र फिलीस्तीनी गुट हमास की पीठ पर अपना हाथ बनाए रखा था बल्कि इस्राइल को मिटा देने का नारा भी देता रहता था। अरब दुनिया में सऊदी अरब के पुराने दबदबे को चुनौती देकर ईरान इस इलाके में शक्ति संतुलन में बदलाव लाना चाहता है, जिससे क्षुब्ध होकर पूर्व सऊदी सुल्तान दिवंगत अब्दुल्ला ने अमेरिकी कमांडर जनरल पैट्रोस से कहा था : ‘इस सांप का फन कुचल दो।' सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिका से ईरान पर पंगु कर देने वाले आर्थिक प्रतिबंध फिर से नाजिल करने को कहा है, जिसके लिए लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप पहले से मन बनाकर बैठे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के सधे हुए प्रयासों से अरब-खाड़ी देशों से हमारे संबंधों में खासकर सऊदी अरब और यूएई के साथ महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इसके चलते सऊदी अरब ने एयर इंडिया को इस्राइल तक अपनी उड़ानें करने पर सहमति दी है।


इसके बावजूद सऊदी अरब के पड़ोसी यमन में दखलअंदाजी से परिस्थितियां तनावग्रस्त और हिंसक बनी हुई हैं जहां ईरान की मदद प्राप्त यमिनी विद्रोहियों और सरकार के बीच संघर्षों में हजारों की संख्या में निर्दोष नागरिकों को जानें गंवानी पड़ी हैं। इस्लामिक दुनिया में आज प्रतिद्वंद्विता के पीछे शिया-सुन्नी टकराव महत्वपूर्ण है। इराक में अमेरिकी दखल से इस शिया बहुल मुल्क में शियाओं की सरकार बन गई है। इसका खासा असर पड़ोस के सीरिया में भी हुआ है। जहां वैसे तो सुन्नी लोग बहुसंख्यक हैं लेकिन राज शियाओं के हाथ में है, और अब वहां ईरान का समर्थन प्राप्त राष्ट्रपति असद की सरकार बचाने की खातिर रूस भी खुलकर आ गया है, जिससे अमेरिका को मजबूरन मुंह की खानी पड़ी है। इस प्रतिद्वंद्विता से खुद को दूर रखकर भारत ने समझदारी का परिचय दिया है। सऊदी अरब और ईरान को पछाड़कर आज इराक सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है।

ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लगाने की प्रबल संभावना को देखते हुए भारत को अपनी राह बड़ी सूझबूझ से निकालनी होगी। हमारी मुख्य चिंता खाड़ी देशों में काम कर रहे लगभग 70 लाख भारतीय अाप्रवासियों की सुरक्षा और भलाई है। हमारा ध्यान इस बिंदु पर होना चाहिए कि जहां हम ईरान के साथ सतत आर्थिक सहयोग बढ़ाने को अग्रसर हैं वहीं तेल आपूर्ति और संचार क्षेत्र में पिछले वर्षों की तरह अन्य अरब देश आगे भी हमारे लिए प्रमुख उत्पादक बने रहेंगे। भारत को सऊदी अरब, यूएई और ओमान के साथ संबंधों पर विशेष जोर देना होगा। हालांकि भारत की तेल आपूर्ति में ईरान तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है लेकिन उससे होने वाले आयात में कमी के संकेत मिल रहे हैं। अगले कुछ महीनों में ईरान पर ट्रंप प्रशासन द्वारा संभावित आर्थिक प्रतिबंधों के मद्देनजर हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए वैश्विक स्थिति का आकलन फिर से करना होगा।

भारत की तेल आपूर्ति में वेनेजुएला की भूमिका अब मुख्य बन सकती है। रूस में तटीय तेल और गैस खोज में भारतीय कंपनियां पहले से खासा निवेश करती आई हैं। अब इन्होंने अमेरिकी महाद्वीप की तरफ भी रुख किया है। तेल और गैस में अमेरिका शीघ्र ही दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बनने जा रहा है। अतएव अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तेल की खपत में तीसरा स्थान रखने वाले भारत ने अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने में संभावनाओं को बृहदता देकर समझदारी दिखाई है। इस बाबत हमने अपने इतिहास से सबक लिया है और किसी एक देश पर अपनी बहुत ज्यादा निर्भरता नहीं बनाई। यह सब करते हुए हमने इस्लामिक जगत की आपसी क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता, तनावों और विवादों में खुद को फंसने से बचाया है। हमें इन पश्चिमी पड़ोसी देशों में बनी विस्फोटक परिस्थितियों के मद्देनजर खुद को तैयार रखना होगा। हो सकता है वहां रह रहे भारतीयों को निकालने अथवा सुरक्षा देने के लिए नौसेना और वायुसेना का इस्तेमाल करना भी आवश्यक बन जाए। देश की ऊर्जा संबंधी सुरक्षा को सुनिश्चित करने पर ध्यान देकर हम समझदारी कर रहे हैं। आज की तारीख में संशोधित पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात में हम बड़े निर्यातक देशों में एक हैं, जिसका व्यापार वर्ष 2017 में लगभग 35.9 बिलियन डॉलर मूल्य का हुआ है।

लेखक पूर्व राजनयिक हैं।


http://dainiktribuneonline.com/2018/04/%E0%A4%8A%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%


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