Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | एक साल में 70 लाख लोगों की मौत ‘काल’ बना वायु प्रदूषण

एक साल में 70 लाख लोगों की मौत ‘काल’ बना वायु प्रदूषण

Share this article Share this article
published Published on Apr 1, 2014   modified Modified on Apr 1, 2014

दुनियाभर में बीमारियों और इनसे मरनेवालों की तादाद में हो रही वृद्धि के बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. संस्था की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण जनित बीमारियों से हुई है. क्या हैं वायु प्रदूषण के खतरे, भारत में क्या है स्थिति और इससे कैसे निबटा जा सकता है, बता रहा है आज का नॉलेज.

नयी दिल्ली : उद्योग-धंधों, परिवहन के तमाम साधनों और तकनीकी उन्नति से भले ही हमारी जिंदगी आसान बन रही हो, लेकिन इसका एक बड़ा ‘साइड इफेक्ट’ दुनियाभर में देखने में आ रहा है. इससे वायु प्रदूषण इस कदर बढ़ चुका है कि इसके नतीजे भयावह होते जा रहे हैं. दुनियाभर में बढ़ती बीमारियों और इनसे मरनेवालों की तादाद में हो रही बढ़ोतरी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2012 के दौरान दुनियाभर में 70 लाख लोगों के वायु प्रदूषण से मौत होने का अंदाजा व्यक्त किया है. संगठन ने वायु प्रदूषण से हृदय की बीमारी, सांस संबंधी समस्याओं और कैंसर के जुड़ाव को पाया है. 

पूरी दुनिया में प्रत्येक आठ में से एक इंसान की मृत्यु वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों के चलते होती है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा एकमात्र पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम (एनवायरमेंटल हेल्थ रिस्क) भी बताया गया है. वायु प्रदूषण में कमी लाते हुए इंसानों की असमय मृत्यु को रोका जा सकता है.

दक्षिण-पूर्वी एशिया की भयावहता

वायु प्रदूषण से होनेवाली मौतों के बारे में किये गये अध्ययन के दौरान पाया गया कि दक्षिण-पूर्वी एशिया और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दुनिया को विभाजित किये गये क्षेत्रों में से एक पश्चिमी पेसिफिक क्षेत्र में 2012 में तकरीबन 60 लाख लोगों की मौत इस कारण से हुई है. इतना ही नहीं, तकरीबन 33 लाख लोगों की मृत्यु आंतरिक वायु प्रदूषण (इनडोर एयर पोल्युशन) और 26 लाख लोगों की मौत बाहरी वायु प्रदूषण (आउटडोर एयर पोल्युशन) के चलते हुई. खासकर उपरोक्त वर्णित क्षेत्रों के निम्न और मध्य आयवाले देशों में इस तरह के मामले ज्यादा पाये गये हैं.

इस नये अनुमान को उन्नत मानकों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए वायु प्रदूषण के चलते इंसानों पर पड़नेवाले दुष्प्रभावों का बेहतर तरीके से मूल्यांकन करते हुए किया गया है. इसमें ग्रामीण और शहरी इलाकों में व्यापक आबादी के बीच पैदा होनेवाली ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य जोखिमों का वैज्ञानिक पद्धति से विश्लेषण किया गया है.

अनुमान से कहीं ज्यादा जोखिम

वायु प्रदूषण से बढ़ रहे जोखिम को देखते हुए इसकी भयावहता बढ़ती जा रही है. खासकर ह्ृदय रोग और स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के डिपार्टमेंट फॉर पब्लिक हेल्थ, एनवायर्नमेंट एंड सोशल डिटरमिनेंट्स ऑफ हेल्थ की निदेशक डॉ मारिया नीरा का कहना है कि आज वैश्विक स्वास्थ्य को लेकर वायु प्रदूषण के चलते बड़े जोखिम देखने में आ रहे हैं. साक्ष्यों से प्राप्त संकेतों को देखते हुए अब हमें त्वरित कार्रवाई की जरूरत है, ताकि सांस लेने के लिए हमें स्वच्छ वायु मिल सके. डब्ल्यूएचओ के अनुमानों के मुताबिक, वर्ष 2012 में रसोई घरों में जलाये जानेवाले कोयले, लकड़ियों और बायोमास स्टोव की वजह से पैदा हुए आंतरिक वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के चलते 43 लाख लोगों की मौत हुई.

समुचित नीतियों का अभाव

ट्रांसपोर्ट, ऊर्जा, वेस्ट मैनेजमेंट और उद्योग-धंधों आदि क्षेत्रों में समुचित नीतियों के अभाव के चलते इनमें अत्यधिक वायु प्रदूषण अकसर एक सह-उत्पाद के तौर पर देखने में आता है. ज्यादातर मामलों में स्वास्थ्य संबंधी रणनीतियां लंबी अवधि को देखते हुए बनाये जाने से ये ज्यादा से ज्यादा प्रभावी और इकॉनामिकल होंगी, क्योंकि इससे स्वास्थ्य-सुरक्षा संबंधी खर्चो में कमी आयेगी और मौसम संबंधी फायदे भी होंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोऑर्डिनेटर फॉर पब्लिक हेल्थ, एनवायरमेंटल एंड सोशल डिटरमिनांट्स ऑफ हेल्थ के डॉ कालरेस डोरा के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ और हेल्थ सेक्टर्स इस दिशा में खास भूमिका निभा सकते हैं, जिससे वायु प्रदूषण को कम करने और उसके दुष्प्रभावों से बचाव के संबंध में वैज्ञानिक साक्ष्य मुहैया कराते हुए नीतियां निर्धारित हों, ताकि इंसानों की जिंदगी को बचाया जा सके.

1,600 शहरों में वायु गुणवत्ता माप

हाल ही में जारी किये गये आंकड़े को वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से बचाव के लिए डब्ल्यूएचओ रोडमैप तैयार करने की दिशा में एक सराहनीय कदम माना जा रहा है. इससे वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य के संबंध में बेहतर आंकड़ों के सृजन के लिए डब्ल्यूएचओ की मेजबानी में वैश्विक मंच मुहैया कराया जा रहा है. साथ ही, वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों के बारे में विभिन्न देशों और शहरों तक दिशानिर्देश, सूचना और साक्ष्य को पहुंचाने में भी ये आंकड़े प्रभावी होंगे.

इसी वर्ष (2014 में) विश्व स्वास्थ्य संगठन घरों में इस्तेमाल किये जानेवाले जलावन के बारे में आंतरिक वायु प्रदूषण दिशानिर्देश जारी करेगा. साथ ही, विभिन्न देशों के आंतरिक और बाहरी वायु प्रदूषण के आंकड़े भी जारी करेगा, जिसमें मृत्यु दर संबंधी आंकड़े भी शामिल होंगे. इसके लिए दुनियाभर के 1,600 शहरों में सांस लेनेवाली हवा की गुणवत्ता की माप की जा रही है.

सभी देशों में है प्रदूषण

विकसित और विकासशील देशों समेत सभी इलाकों में बाहरी वायु प्रदूषण एक प्रमुख पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि वायु प्रदूषण संबंधी समयपूर्व मृत्यु के मामलों में 80 फीसदी पक्षाघात और स्ट्रोक प्रमुख कारण थे, जबकि 14 फीसदी मौत के मामलों में प्रमुख वजह क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव प्युल्मोनरी डिजीज या एक्यूट लोअर रेस्पिेरेटरी इन्फेक्शन रहा. शेष छह फीसदी मौत की वजह फेफड़े का कैंसर था.

मौत के कुछ मामलों में एक साथ एक से ज्यादा जोखिम के कारक हो सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, धूम्रपान और व्यापक वायु प्रदूषण दोनों ही फेफड़े को प्रभावित करते हैं, जो कैंसर का कारण बनते हैं. तंबाकू के सेवन को कम करते हुए या सांस लेनेवाली हवा की गुणवत्ता में सुधार लाते हुए कुछ प्रकार के फेफड़ों के कैंसर से होनेवाली मौतों से बचा जा सकता है.

कैंसर का कारण

डब्ल्यूएचओ की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएआरसी) द्वारा वर्ष 2013 में मूल्यांकन किया गया कि बाहरी वायु प्रदूषण इंसानों के लिए कैंसर का कारण है. साथ ही, वायु प्रदूषण के ‘पार्टिकुलेटर मैटर कंपोनेंट’ कैंसर के कारणों को बढ़ाते हैं, खासकर फेफड़ों के कैंसर को. इसके अलावा, बाहरी वायु प्रदूषण और यूरिनरी ट्रैक्ट/ ब्लाडर के कैंसर में बढ़ोतरी के बीच भी संबंध पाये गये हैं. 10 माइक्रोन्स या इससे कम डायमीटर वाले छोटे पार्टिकुलेट मैटर के दुष्प्रभावों के चलते ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोगों की मौत हो रही है.    

(स्नेत : डब्ल्यूएचओ)

समस्या से निबटने के कुछ उपाय

बाहरी वायु प्रदूषण (आउटडोर एयर पोल्युशन) के ज्यादातर स्नेत व्यक्तिगत नियंत्रण से पूरी तरह से बाहर हैं. इस समस्या से निबटने के लिए दुनियाभर के तमाम शहरों और देशों समेत परिवहन, ऊर्जा, वेस्ट मैनेजमेंट, भवन निर्माण और कृषि क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय नीति-निर्माताओं को त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है. परिवहन, शहरी नियोजन, ऊर्जा उत्पादन और उद्योग-धंधों में वायु प्रदूषण को करने के संबंध में अनेक सफल नीतियों के उदाहरण इस प्रकार हैं:

उद्योग-धंधे : स्वच्छ तकनीक, ताकि औद्योगिक धुएं से पैदा प्रदूषित उत्सजर्न को कम किया जा सके. शहरों में पैदा होनेवाले कचरे और एग्रीकल्चर वेस्ट (खेती से पैदा होनेवाले कचरे) का उन्नत प्रबंधन. साथ ही, कचरा जमा किये जानेवाली जगहों से मीथेन गैस के उत्पादन को बढ़ावा देना, ताकि बायोगैस के तौर पर उसका बेहतर इस्तेमाल किया जा सके.

परिवहन क्षेत्र : वाहनों का संचालन ईंधन के स्वच्छ माध्यमों से किया जाना. रैपिड शहरी सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को प्राथमिकता देना. शहरों में पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के लिए अलग से ट्रैक निर्धारित करने हुए उन्हें पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराना, रेल से सामान ढुलाई को व्यापक बनाने समेत ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को रेल से ढोये जाने के दायरे में लाना. वाहनों में स्वच्छ डीजल और कार्बन उत्सजर्न-मुक्त ईंधन को प्रोत्साहित करना. साथ ही, ईंधन में सल्फर की मात्र को न्यूनतम करना.

शहरी नियोजन : शहरों में बनाये जानेवाले मकानों में नयी तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए ऊर्जा संरक्षण को उन्नत बनाना, ताकि ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बचायी जा सके.

ऊर्जा उत्पादन : कम-उत्सजर्न वाले ईंधनों और दहन-मुक्त नवीकरणीय ऊर्जा के स्नेतों (जैसे सौर, पवन या हाइड्रोपावर) के इस्तेमाल को बढ़ावा देना.

शहरी और कृषि से पैदा हुए कचरे का प्रबंधन : कूड़ा कम से कम करने, कचरों को अलग करने, इसकी रिसाइकिलिंग करने या दोबारा इस्तेमाल में लाने लायक बनाने से संबंधित रणनीतियां बनाना. साथ ही, बायोलॉजिकल वेस्ट मैनेजमेंट को उन्नत बनाना, जिससे बायोगैस का उत्पादन किया जा सके. यह घरेलू ईंधन का एक बेहतर और सस्ता विकल्प हो सकता है, जिसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

भारत में भयावह स्तर पर वायु प्रदूषण

अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में हाल ही में बताया गया है कि दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में चीन की राजधानी बीजिंग को मात दे दी है. भले ही संबंधित भारतीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा यह कहा जा रहा हो कि मौजूदा वायु प्रदूषण के पीछे मौसम प्रमुख कारण है, लेकिन सालाना औसत के लिहाज से दिल्ली अब भी बीजिंग से पीछे है. अध्ययन के मुताबिक, ताजा एनवायरमेंट परफार्मेस इंडेक्स (इपीआइ) में 178 देशों के शहरों में भारत का स्थान 32 अंक गिर कर 155वां हो गया है. वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों (चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका) में सबसे खस्ताहाल है. प्रदूषण के मामले में भारत के मुकाबले पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और चीन की स्थिति बेहतर है, जिनका इस इंडेक्स में स्थान क्रमश: 148वां, 139वां, 69वां और 118वां है. 

इस इंडेक्स को नौ कारकों- स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल एवं स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, मछली पालन, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के आधार पर तैयार किया गया है. इंडेक्स के अनुसार, दुनिया में पांच सबसे स्वच्छ देश हैं- स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और चेक गणराज्य. इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण की हालत सबसे बुरी है. दरअसल, नासा के सैटेलाइट द्वारा इकट्ठा किये गये आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में पीएम-25 (पार्टीकुलेट मैटर-2.5 माइक्रोन से छोटे कण) की मात्र सबसे ज्यादा थी. लैंसेट ग्लोबल हेल्थ बर्डन 2013 के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए छठा सबसे घातक कारण बन चुका है. भारत में श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण होनेवाली मौतों की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है. यहां अस्थमा से होनेवाली मौतों की संख्या किसी भी अन्य देश से ज्यादा है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/102738-70-million-deathsyear-period-For-Air-Pollution.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close